TMC should be brought to Bengal

Editorial: बंगाल में टीएमसी को लाना चाहिए अपने रवैये में सुधार

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TMC should be brought to Bengal

पश्चिम बंगाल में प्रवर्तन निदेशालय की टीम पर हमला राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। भारत एक संघीय देश है, जोकि राज्यों में बंटा हुआ है और प्रत्येक राज्य में अपनी शासन व्यवस्था है, लेकिन सीबीआई, ईडी, एनआईए आदि जांच एजेंसियां केंद्र के नियंत्रण में काम कर रही हैं। अगर देश में कहीं जांच की जरूरत होती है, तो क्या एक राज्य सरकार का दायित्व नहीं बनता है कि वह केंद्र की एजेंसियों को इसमें सहयोग करे। हालांकि पूरे देश में पश्चिम बंगाल में ही यह नजर आ रहा है कि यहां केंद्रीय जांच एजेंसियों सीबीआई, ईडी आदि को न केवल विरोध का सामना करना पड़ता है, अपितु उन पर जानलेवा हमला होता है। पश्चिम बंगाल में यह नया मामला तृणमूल नेता के घर पर छापे से जुड़ा है।

वह चाहे विधानसभा चुनाव हो या फिर लोकसभा चुनाव पश्चिम बंगाल में अशांति और अव्यवस्था देखने को मिलती ही है। बीते विधानसभा चुनाव के दौरान भी राज्य में चरम अराजकता देखने को मिली थी। इसके बाद वहां तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनखड़ को सहयोग न देने के आरोप भी राज्य सरकार पर लगे थे। यह पूछा जा सकता है कि क्या पश्चिम बंगाल संघ से बाहर है और वहां किसी पार्टी विशेष की सरकार नहीं अपितु हुकूमत चल रही है

गौरतलब है कि बंगाल के बोंगांव में राशन घोटाला मामले में टीएमसी नेता शंकर आध्या को ईडी ने आखिरकार गिरफ्तार कर लिया। हालांकि इस दौरान टीएमसी समर्थकों ने कानून व्यवस्था का जो मखौल बनाया है, उसने बंगाल में सरकारी सिस्टम को संदेह के घेरे में ला दिया है।

अगर विपक्ष के नेताओं की ओर से यहां राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की मांग की जा रही है तो यह और भी गंभीर हो जाता है। ताज्जुब की बात तो यह है कि खुद कांग्रेस ने इसकी मांग उठाई है, जिसके साथ तृणमूल कांग्रेस इंडिया गठबंधन में शामिल है। माकपा का बयान आया है कि संदेशखाली जहां पर यह पूरा घटनाक्रम घटा है, में गणतंत्र की हत्या की गई है। मालूम हो, राजधानी कोलकाता से सटे उत्तर 24 परगना जिले के संदेशखाली में ईडी के छापे के दौरान अधिकारियों पर हमला किया गया, जिसमें अनेक अधिकारी जख्मी हुए हैं। इनमें से तीन की हालत गंभीर है। उनके सिर फट चुके हैं। ऐसा बताया गया है कि छापे के दौरान टीएमसी समर्थकों ने ईडी अधिकारियों की चुन-चुन कर पिटाई की। अधिकारियों से उनका सामान भी छीन लिया गया।

इस दौरान अधिकारियों के वाहनों में भी तोडफ़ोड़ की गई। इसके अलावा वहां तैनात केंद्रीय बल के जवानों और मीडिया कर्मियों से भी मारपीट की गई। क्या इस प्रकार के हालात का कोई अंदाजा लगा सकता है। क्या पश्चिम बंगाल में कानून का शासन समझा जा सकता है। ईडी को जो दायित्व मिला है, उसके अधिकारी उसी का निर्वाह करने के लिए वहां पहुंचे थे। उनका कार्य जांच को आगे बढ़ाते हुए संबंधित आरोपी को गिरफ्तार करना था, लेकिन इससे रोक कर टीएमसी समर्थकों ने सिर्फ अव्यवस्था का परिचय दिया है।

गौरतलब है कि बंगाल में सत्तारूढ़ टीएमसी समर्थकों की ओर से हमला करना नई बात नहीं है, हालांकि ईडी अधिकारियों पर जानलेवा हमला करने की वारदात पहली बार सामने आई है। साल 2023 में कूचबिहार जिले के दिनहाटा में टीएमसी समर्थकों ने केंद्रीय गृह राज्य मंत्री निशिथ प्रमाणिक के काफिले पर हमला किया था। इससे पहले साल 2020 के दिसंबर में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर भी टीएमसी कार्यकर्ताओं ने हमला किया था, हमले में कई नेता घायल हुए थे। वहीं साल 2021 में विधानसभा में विपक्ष के
नेता सुवेंदु अधिकारी के काफिले पर भी टीएमसी कार्यकर्ताओं ने हमला किया था। इसके अलावा और कई अन्य घटनाएं हैं, जोकि बंगाल में व्यवस्थित शासन व्यवस्था का मखौल बनाती है। राज्य के पुलिस प्रमुख पर सरकार के दबाव में काम करने का आरोप भी सामने आ चुका है, हालांकि वे भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी थे और केंद्र सरकार के नियमों से आबद्ध थे।

राज्य में मौजूदा परिस्थितियों को लेकर कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायाधीश अभिजीत गंगोपाध्याय की यह टिप्पणी बेहद गंभीर है कि यहां संवैधानिक ढांचा ढह चुका है। वहीं राज्यपाल की ओर से भी चेताया गया है। वास्तव में बंगाल में मौजूदा सत्ताधारी टीएमसी को अपने रवैये को सुधारे जाने की जरूरत है। देश संविधान से संचालित है, अगर टीएमसी को आपत्ति है तो उसे कानून का सहारा लेना चाहिए लेकिन उसे कानून अपने हाथ में लेने की छूट नहीं मिल सकती। 

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