truck drivers strike

Editorial: ट्रक चालकों की हड़ताल से देश में सप्लाई हो रही प्रभावित

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देशभर में सडक़ों पर दौडऩे वाले ट्रकों की वजह से जितने हादसे होते हैं, वे सालभर में किन्हीं दूसरी वजह से होने वाले हादसों से कहीं ज्यादा होते हैं। ऐसे में इसकी जरूरत है कि ट्रक एवं भारी वाहन चालकों को नियंत्रित किया जाए। लेकिन इसके लिए भारतीय न्याय संहिता 2023 में हुए संशोधन के बाद हिट एंड रन के मामलों में दोषी ड्राइवर पर सात लाख रुपये तक का जुर्माना और 10 साल तक कैद का प्रावधान, ट्रक चालकों के लिए मुद्दा बन गया है। इसे लेकर ट्रक चालकों ने हड़ताल कर दी है, जोकि अब समस्या बनती जा रही है।   नए हिट एंड रन कानून के विरोध में बस और ट्रक ड्राइवरों की बेमियादी हड़ताल दूसरे दिन भी जारी रही। दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों में ट्रक ड्राइवर हड़ताल कर रहे हैं। हड़ताल की वजह से पेट्रोल पंपों पर लोगों की भारी भीड़ देखी जा रही है। कई शहरों में पेट्रोल-डीजल की कमी भी हो रही है। दिल्ली में बसों और ट्रक की कतारें लगी हुई हैं। यात्री परेशान हो रहे हैं, लेकिन बस ड्राइवर चलने को तैयार नहीं है। ट्रक ड्राइवरों की इस हड़ताल का असर आम आदमी की जेब पर पड़ सकता है। हड़ताल की वजह से खाद्यान्न, दवाइयां और रसोई गैस जैसी आवश्यक वस्तुओं की किल्लत हो सकती है।

 नए कानून का ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस विरोध कर रही है। उसका कहना है कि नए नियम आने के बाद भारी वाहन चालक अपनी नौकरियां छोड़ रहे हैं। यूनियन का तर्क है कि नए कानून ने परिवहन उद्योग को खतरे में डाल दिया है। गौरतलब है कि हिट एंड रन मामले को आईपीसी की धारा 279 (लापरवाही से वाहन चलाना), 3०४ (लापरवाही के कारण मौत) और 338 (जान जोखिम में डालना) के तहत केस दर्ज किया जाता है। इसमें दो साल की सजा का प्रावधान है। विशेष केस में आईपीसी की धारा 302 भी जोड़ दी जाती है। लेकिन अब संशोधन के बाद सेक्शन 104 (2) के तहत हिट एंड रन की घटना के बाद अगर कोई आरोपी घटनास्थल से भाग जाता है।

पुलिस या मजिस्ट्रेट को सूचित नहीं करता है, तो उसे 10 साल तक की सजा भुगतनी होगी और जुर्माना देना होगा। यूनियन का यह भी कहना है कि कानून में संशोधन से पहले स्टेक होल्डर्स से सुझाव नहीं लिए गए, प्रस्तावित कानून में कई खामियां हैं। उनका यह भी कहना है कि देशभर में पहले से ही 25-30 प्रतिशत ड्राइवरों की कमी है और तरह के कानून से ड्राइवरों की और कमी बढ़ेगी। ड्राइवरों की परेशानी की तरफ सरकार का ध्यान नहीं है। देश की अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा योगदान रोड ट्रांसपोर्ट और ड्राइवरों का है। यूनियन का तर्क है कि देश में एक्सीडेंट इन्वेस्टिगेशन प्रोटोकॉल का अभाव है। इसके कारण मामले की निष्पक्ष जांच नहीं हो पाती और ड्राइवर को दोषी करार दिया जाता है। दुर्घटनास्थल से भागने की किसी ड्राइवर की मंशा नहीं होती है, लेकिन आसपास जमा भीड़ से बचने के लिए ऐसा करना पड़ता है।

वास्तव में ट्रक चालकों की हड़ताल का आम आदमी पर सीधा असर देखने को मिलने लगा है। ट्रकों की हड़ताल होने से दूध, सब्जी और फलों की सप्लाई नहीं हो रही और कीमतों पर इसका सीधा असर देखने को मिल रहा है। बेशक, यह मामला गंभीर है, क्योंकि ट्रकों के जरिये ही देशभर में सभी प्रकार के सामान की सप्लाई होती है, लेकिन मौजूदा स्थिति में यह सप्लाई बाधित हो रही है। हालांकि संशोधित कानून के संबंध में भी विचार किया जाना चाहिए, अभी इसे लागू नहीं किया गया है लेकिन इसकी जरूरत क्यों जान पड़ी। होता यही है कि ट्रक चालक सडक़ पर ओवर स्पीड से वाहन को दौड़ाते हैं, हालांकि आजकल ओवर स्पीड वाहन दौड़ाने का आरोप महज ट्रक चालकों पर ही नहीं लगाया जा सकता, ऐसा दूसरे वाहन चालक भी कर रहे हैं, तब एक्सीडेंट की स्थिति में महज ट्रक चालक की गलती निकाल कर उसे आरोपी ठहराना कमोबेश उचित नहीं जान पड़ता। आजकल सडक़ें बेहद असुरक्षित हैं और उन पर वाहन चलाना दुर्गम काम हो गया है।

वैसे आजकल देश में यह व्यवहार बढ़ गया है कि किसी भी नए नियम को स्वीकार नहीं किया जाता। हिट एंड रन के मामलों में दोषी चालक के खिलाफ कड़ी सजा का प्रावधान समय की मांग है, ट्रक चालक अपने काम की एवज में इसमें छूट की मांग नहीं कर सकते। देश में सडक़ दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए ऐसे प्रावधान किए जाने जरूरी हैं, हालांकि कोई बीच का रास्ता तलाशा जा सकता है। 

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