The journey from Hisar to Delhi is not easy

लोकसभा चुनाव: आसान नहीं हिसार से दिल्ली तक का सफर, शरूआती दौर में अपना उम्मीदवार घोषित कर बढ़त लेने के प्रयास में जुटी बीजेपी

The journey from Hisar to Delhi is not easy

The journey from Hisar to Delhi is not easy

The journey from Hisar to Delhi is not easy- चंड़ीगढ़। धर्म की कलम, मैं वक्त हंू, बात वक्त की में आज बात होने जा रही है  हाट बनती जा रही हिसार लोकसभा सीट की। लोकतंत्र का महत्व उन देशों के वासिंदों से पूछिए जहां पर लोकतंत्र नही है। उन देशों में आए दिन मानवाधिकारों का हनन किसी ना किसी रूप में होता है। जहां तक भारत की बात है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र माना जाता है।

देश में लोकतंत्र के चूनावी महासमर के लिए सभी संबंधित राजनैतिक दल मैदान में उतर चूके है। देश में सात चरणों में चुनाव करवाए जा रहे  है। हरियाणा में छटे चरण में आगामी 25 मई को 18वीं लोकसभा के लिए सभी दस सीटों पर वोट डाले जांएगे। इनमें हिसार लोकसभा सीट भी शामिल है।

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में हिसार सीट से बृजेन्द्र सिंह बीजेपी से सांसद बने थे। वे अब पार्टी छोडक़र कांग्रेस में चले गए है। वर्ष 2014 में इसी सीट से दुष्यंत चौटाला सांसद थे। अब वर्ष 2024 के चुनाव के लिए बीजेपी ने ताऊ देवी लाल के बेटे रणजीत सिंह को टिकट थमा दिया।

रणजीत ङ्क्षसह हरियाणा सरकार में मंत्री है और अभी हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए है। आगामी 25 मई को होने वाले चुनाव के लिए 29 अप्रैल को अधिसूचना जारी हो जाएगी। आगामी 6 मई तक नामांकन पत्र दाखिल किए जा सकेंगे। आगामी 7 मई को नामांकन पत्र की जांच होगी तथा 9 मई को संबंधित इच्छुक उम्मीदवार अपना नामांकन पत्र वापिस ले सकेंगे। इसके बाद 25 मई को चुनाव होगा तथा चार जून को मतों की गणना होगी और 6 जून को 2024 चुनावी प्रक्रिया सम्पन्न हो जाएगी। चुनाव शांतिपूर्वक सम्पन्न हो, इसके लिए आयोग द्वारा 1950 टोल फ्री न0 जारी किया गया है।

कौन किस पर रहेगा भारी, किसकी है कैसी तैयारी

बीजेपी उम्मीदवार रणजीत सिंह सहित किसी भी पार्टी के लिए हिसार से दिल्ली का रास्ता आसान नही लगता। सभी को कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। भाजपा शरूआती दौर में अपना उम्मीदवार घोषित कर बढ़त लेने के प्रयास में जुटी है। वही यदि इनैलों से सुनैना चौटाला मैदान में आती है तो मुकाबला और रोचक बन सकता है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है। हिसार से कांग्रेस मजबूत उम्मीदवार तलाशने में जुटी है। देश की 18वीं लोकसभा के लिए इस सीट से कौन अपनी उपस्थिति का अहसास कराएगा। इसका पता तो आने वाली 4 जून को पता चल ही जाएगा। वैसे देखा जाए तो इस सीट से सियासत की सतरंज पर सियासतदानों के पैर  जमते और उखड़ते रहे है। हिसार लोकसभा क्षेत्र के तहत 9 विधासभा क्षेत्र आते है,जिनमें हिसार, हांसी, उकलाना, आदमपुर, बरवाला, नलवा, उचाना, बवानी खेड़ा तथा नारनौद शामिल है।

जानिए,अब तक यहां से कौन कौन रहा विजयी

आजादी के बाद से ही हिसार लोकसभा क्षेत्र रहा है। पहला चुनाव 1951 में हुआ उस समय यह क्षेत्र सयुंक्त पंजाब के तहत आता था। एक नवम्बर 1966 हरियाणा के अस्तित्व में आते ही 1967 में हुए प्रथम लोकसभा चुनाव में हिसार लोकसभा सीट से रामकिशन गुप्ता ने चुनाव जीता। सन 1971 में मनीराम गोदारा तथा 1977 के चुनाव में इन्द्र सिंह श्योकंद सदस्य लोकसभा बने। इसके बाद 1980 में हिसार लोकसभा सीट से मनीराम बागड़ी ने जीत हासिल की। सन 1984 में बीरेन्द्र सिंह सांसद बने। जबकि 1989,1996 तथा 2004 में जयप्रकाश विजयी हुए और सांसद बने। इसी प्रकार 1991 मा0 नारायण सिंह तथा 1998, 1999 में सुरेन्द्र बरवाला ने जीत हासिल की। वर्ष 2009 में इसी सीट से भजन लाल और 2011 में हुए उपचुनाव में कुलदीप बिश्नोई सांसद चुने गए। वर्ष 2014 में इसी सीट से दुष्यंत चौटाला सांसद बने और वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बृजेन्द्र सिंह बीजेपी से सांसद बने और अब वे पार्टी छोडक़र कांग्रेस में चले गए है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में हिसार संसदीय सीट पर मतदान का प्रतिशत 72 से अधिक था तथा मतदाताओं की संख्या 1631817 थी।

अतीत की याद दिलाता वर्तमान

अतीत पर नजर डाले तो वर्ष 1951 में अस्तित्व में आई लोक सभा सीट पर अब तक हुए चुनाव में सात बार कांग्रेस और एक बार बीजेपी विजयी रही। जबकि तीन बार इनैलों ने अपनी उपस्थिति का अहसास कराया। हिसार का इतिहास बहुत ही समृद्धशाली रहा है। राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो  स्वतंत्रता संग्राम के महानायक लाला लाजपत राय सन 1886 से 1892 तक हिसार को अपनी कर्मभूमि बनाया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस, प. जवाहर लाल नेहरू,प. मदन मोहन मालवीय तथा सरोजिनी नायडू जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने इस ऐतिहासिक नगर में आकर जनता को सम्बोधित दिया। हिसार के आटो बाजार की एशिया के सबसे बडे आटो बाजारों में गिनती होती है। मेडिकल और शिक्षण संस्थानों के साथ साथ यहां बड़े पर्यटक स्थल भी है।

राजनीति में सियासत ना हो ऐसा हो ही नही सकता। इनका तो आपस में चोली दामन का साथ माना जाता है। पहले विचार धारा को लेकर बनी पार्टियों में नेता लोग अपनी पार्टी में जमे रहते थे। नफा नुकसान नही बल्कि विचार धारा की लड़ाई हुआ करती थी, लेकिन अब जमाना बदल गया है। अब तो सियासत की सतरंज पर जमने से पहले की कुछ लोगों के पैर उखडऩे लगते है। अपने नीजि हितों,स्वार्थ या फिर तुरंत लाभ के चक्कर में दुसरी विचारधारा को अपनाने में कतई देर नही लगाते।