114 वर्ष की उम्र में हुआ फौजा सिंह का निधन, जानें इनके जीवन की स्ट्रगल भरी कहानी

114 वर्ष की उम्र में हुआ फौजा सिंह का निधन, जानें इनके जीवन की स्ट्रगल भरी कहानी

फौजा सिंह

 

fauja singh: फौजा सिंह, जिन्हें दुनिया “Turbaned Tornado” के नाम से जानती थी, अब हमारे बीच नहीं रहे। सोमवार, 14 जुलाई 2025 को पंजाब के जालंधर जिला स्थित अपने पैतृक गाँव बीअस पिंड में सड़क पार करते समय एक अज्ञात वाहन की टक्कर से 114 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। आइए इनके जीवन की स्ट्रगल भरी कहानी को जानतें हैं।

संघर्ष भरी रहीं फौजा सिंह की जिंदगी

फौजा सिंह का जन्म 1 अप्रैल 1911 को जालंधर के बीअस पिंड में एक खेतीहर परिवार में हुआ था। वे परिवार में सबसे छोटे थे और कहा जाता है कि पाँच वर्ष की उम्र तक ठीक से चल भी नहीं पाते थे। ब्रिटिश भारत में जन्मे फौजा ने बचपन में ही कठिनाइयाँ झेली, खेतों में काम करना, विभाजन के व़क्त त्रासदियाँ और बाद में पति-पत्नी व बच्चों का नुकसान। 1992–93 में उन्होंने अपने बेटे के साथ लंदन के इलफोर्ड में निवास किया। पत्नी गंयान कौर और एक बेटे की मृत्यु के बाद उनके जीवन में निराशा घिर आई। उस समय उन्होंने रनिंग को टोना-टोटका माना, फिर क्या था यह उनका नया जुनून बन गया।

फौजा सिंह के नाम है कई रिकॉर्ड्स

2000 में 89 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना पहला मैराथन, लंदन मैराथन लगभग 6 घंटे 54 मिनट में पूरा किया, और 90+ वर्ग का पिछला रिकॉर्ड तोड़ दिया। इसके बाद न्यूयॉर्क और टोरंटो में भी भाग लिया, 2003 में टोरंटो वॉटरफ्रंट मैराथन 5 घंटे 40 मिनट में पूरी की, जो उनकी व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ थी। 2011 में 100 वर्ष की उम्र में टोरंटो मैराथन हाथोहाथ पूरी करके उन्होंने पहला सदी पार मैराथन धावक बनने का गौरव पाया। गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड को जन्म प्रमाण पत्र की कमी के कारण मान्यता नहीं मिली, लेकिन उनकी प्रेरणा को हर कोई सलाम करता रहा ।

प्रेरणा से भरपूर है फौजा सिंह की कहानी

उनकी कहानी सिर्फ रनों की नहीं, बल्कि पीढ़ियों को दिखाए गए आत्मबल, इच्छाशक्ति और जीवन-उत्साह की है। वे साबित कर गए कि उम्र केवल एक अंक है। फौजा सिंह का जीवन एक प्रेरक गाथा था। दिन के 114 वर्ष में उन्होंने आने वाले सभी उम्र को चुनौती दी, और साबित किया कि आत्मानुशासन, व्यायाम और धैर्य से सब कुछ संभव है। उनके जाने से विश्व ने सिर्फ एक धावक नहीं, एक जीवन दृष्टि खो दी है। लेकिन उनकी प्रेरणा सदैव अमिट रहेगी, क्योंकि असली दौड़ तो वह लड़ गए जो मानसिक और शारीरिक बाधाओं पर विजय पाने की थी।