संजय दत्त का जेल में बिताई वह दर्दनाक रात जिसे याद कर आज भी हो जाते है इमोशनल

sanjay dutta: बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता, जिनकी ज़िंदगी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। पर्दे पर दमदार भूमिकाएं निभाने वाले इस सितारे की असल ज़िंदगी में कई उतार-चढ़ाव आए, जिनमें सबसे बड़ा मोड़ था उनका जेल जाना। 1993 मुंबई ब्लास्ट केस में अवैध हथियार रखने के आरोप में संजय दत्त को पांच साल की सज़ा सुनाई गई थी। वे पुणे की यरवडा जेल में रहे, लेकिन इस कैद का एक किस्सा आज भी उनके ज़ेहन में एक खौफनाक याद की तरह जिंदा है – उनकी जेल में बिताई एक दर्दनाक और खतरनाक रात।
खुलकर बताई अपनी स्थिति
जब संजय दत्त पहली बार पुणे की यरवाड़ा जेल में आए, तो उन्होंने बताया कि वह कमरे के अंधेरे, गंदी बदबू और अजनबियों से घिरे माहौल को सहन नहीं कर पाए। दीवारें घिसी हुई थीं और फर्श पर सोना एक डरावना अनुभव था। उन्होंने खुलकर कहा कि “जेल सिर्फ शारीरिक कैद नहीं थी, बल्कि मानसिक यातना में तब्दील हो गई थी।” पहले तीन चार घंटे तो उन्होंने नींद की तलाश में गुज़ारे, लेकिन हर तरफ से आती खड़खड़ाहटें और चीखें उन्हें चैन नहीं देती थीं। खाना पानी का हाल और भी बुरा था। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, जेल में उन्हें खाने को सिर्फ चने की दाल और राजगिरा मिलती थी, जिसे “गधे भी नहीं खाते थे” । संजय अहसास करते थे कि कैद सिर्फ शरीर के लिए नहीं, आत्मा के लिए भी तबाही है। बताया गया कि जेल के पहले 12 घंटे में उनकी हालत इतनी ज़्यादा थी कि वे टूट जाने के करीब थे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने खुद को साधना शुरू किया।
जब बाबा ने चुना अध्यात्म का रास्ता
मन को संभालने के लिए उन्होंने आध्यात्मिक मार्ग चुना उन्होंने रामायण, गीता, शिवपुराण, कुरान और बाइबिल पढ़ने और सामाजिक रूप से चर्चा करने की शुरुआत की । इसी बीच उन्होंने अपने शरीर को भी मजबूत करने की ठानी। सवेरे छह बजे उठकर दौड़, अपना वज़न कम करने के लिए बकेट उठाना, दीवारों पर नाखून मारना जैसी चुनौतियाँ उन्होंने अपनाईं ।
मां को अक्सर करते थें याद
पहली रात ने उनकी मानसिक स्थिति पर असर डाला “जब मैंने यह स्वीकृति कर ली कि अब कोई उम्मीद नहीं है, तो राह आसान हुई” उन्होंने बताया । जेल के पहले ही दिन ही उन्होंने अपनी कमजोरियों, आत्मा की पीड़ा और भावनात्मक गिरावट को देख लिया। रुक-रुककर आती चीखें, बंद दरवाज़े की आवाज़, और अंधेरा, ये सब मिलकर एक ऐसी रात बना गए जिसे वे “जिन्दगी की सबसे अंधेरी रात” कहते हैं। जेल में अकेलापन, परिवार से दूर, माँ नरगिस की मौत की यादें, पिता सुनील दत्त की अनुपस्थिति, ये सभी कसकें उस रात अलग-अलग रूपों में उनके लिए उभर आईं । लेकिन उन्होंने ठान लिया कि अब जो कुछ भी होगा, उसे वे बदलेंगे। उस काली रात ने उन्हें एक नए व्यक्ति जैसा बना दिया, जिसने आत्मा में बदलाव कर लिया था।