Punjab BJP Sunil Jakhar leadership,

Editorial: पंजाब भाजपा की सुनील जाखड़ को सरदारी, बदलेंगे समीकरण

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Punjab BJP Sunil Jakhar leadership

Punjab BJP Sunil Jakhar leadership पंजाब की राजनीति में यह बड़ा फेरबदल है कि कांग्रेस से आए सुनील जाखड़ अब प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नियुक्त कर दिए गए हैं। यह जहां भाजपा के लिए सही निर्णय है, वहीं यह जाखड़ के लिए भी एक उपयुक्त प्लेटफार्म है। उनके जैसे कद के राजनेता का प्रदेश अध्यक्ष बनना पंजाब के उस वर्ग की आशाओं, उम्मीदों के लिए एक मार्ग है, जोकि राज्य में भाजपा के प्रति सहानुभूति रखते हैं।

पंजाब में हमेशा से यह सवाल उठता रहा है कि क्या यहां कोई हिंदू मुख्यमंत्री के पद पर पहुंच सकता है और जब कांग्रेस के सामने ऐसी स्थिति आई कि उसे किसी हिंदू नेता का बतौर मुख्यमंत्री चयन करना था तो उसने प्रदेश के राजनीतिक समीकरणों के सामने समझौता कर लिया। हालांकि सुनील जाखड़ के साथ 43 विधायक थे, लेकिन फिर भी पार्टी में एक अजा वर्ग से आए सिख को ही इस पद के काबिल समझा गया।

बेशक, अगर यह निर्णय कुछ और होता तो आज प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति कुछ और हो सकती थी। पंजाब भाजपा में शुरू से एक गैर सिख को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई है और अब फिर एक जाट हिंदू को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है। हालांकि भाजपा के संबंध में यह कहा गया है कि पार्टी दूसरे दलों से आए नेताओं को अहम पदों की जिम्मेदारी नहीं सौंपती, लेकिन जाखड़ के मामले में इस रवायत को बदल दिया गया है, हालांकि यह जाखड़ जैसे सुलझे हुए और कद्दावर नेता के साथ न्याय भी है।

जाखड़ की नियुक्ति के बाद प्रदेश पार्टी के काडर नेताओं में नाराजगी है, जोकि स्वाभाविक है। आखिर एक कार्यकर्ता मेहनत करते हुए प्रदेश अध्यक्ष या अन्य अहम पदों पर पहुंचना चाहता है, लेकिन जब बाहर से आए नेता उन कुर्सियों पर पहुंच जाते हैं तो उनके लिए संभावनाएं खत्म हो जाती हैं। हालांकि राजनीति में एकमात्र प्रयोजन कार्यकर्ताओं या नेताओं का विकास नहीं होता है, लक्ष्य सत्ता की प्राप्ति करके उन योजनाओं और कार्यक्रमों को लागू करना होता है, जोकि जनकल्याण के लिए आवश्यक हैं। उन योजनाओं के जरिये समाज, राज्य और देश का विकास होता है, तब ऐसे में उस प्रभावी नेतृत्व की आवश्यकता होती है जोकि पार्टी को ऊपर की तरफ ले जा सके।

बीते कुछ समय के दौरान तमाम ऐसे कांग्रेस नेता हैं, जोकि वहां पर काडर में थे, लेकिन फिर उन्होंने अपना रास्ता बदल कर भाजपा का दामन थाम लिया। ऐसे में उन्होंने भी तो अपना काडर परिवॢतत कर लिया। वास्तव में परिश्रमी कार्यकर्ताओं, नेताओं को हर पार्टी में महत्व मिलना चाहिए। गौरतलब है कि सुनील जाखड़ के पिता बलराम जाखड़ पंजाब की राजनीति के बड़े नाम थे, वे दस वर्ष लोकसभा अध्यक्ष रहे, कृषि मंत्री रहे और सदैव मूल्य पूर्ण राजनीति करते रहे। ऐसे में उनके परिवार से आए सुनील जाखड़ से भी इसकी उम्मीद की जाती है कि वे सच की, स्वच्छता की और ईमानदारी की राजनीति को जारी रखेंगे।

मालूम हो, पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह भी अब भाजपा में आ चुके हैं। उनके मुख्यमंत्री रहते सुनील जाखड़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे और दोनों नेताओं ने सामंजस्य के साथ जिस प्रकार सरकार और संगठन का संचालन किया वह जनता समझती है। कांग्रेस में कैप्टन-सिद्धू के बीच उठे विवाद की वजह से जहां कैप्टन अमरिंदर की कुर्सी चली गई वहीं जाखड़ को एक तरफ कर दिया गया।

जाखड़ की राजनीतिक शुचिता का यह उदाहरण था कि उन्होंने 2019 के विधानसभा चुनाव लडऩे से इनकार कर दिया। ऐसा आज के दौर में कम ही देखने को मिलता है, यह भी संभव था कि जाखड़ अपने समकक्ष नेताओं के साथ लगे रहते और फिर हार मानकर उनका नेतृत्व स्वीकार कर लेते। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और अपने राजनीतिक अस्तित्व को सहेजे रहे। निश्चित रूप से यह सही समय पर सही कदम था, जब उन्होंने भाजपा की ओर अपने कदम बढ़ाए। पंजाब में इस समय शिअद और भाजपा में अलगाव है, लेकिन अब दोनों पार्टियों के फिर नजदीक आने की संभावनाएं बन रही हैं। कृषि कानूनों के विरोध में शिअद ने खुद ही भाजपा से अलग रास्ता अपनाया था। अब राजनीतिक मजबूरी में दोनों पार्टियों का साथ आना संभावित है।

दरअसल, भाजपा के नए प्रधान सुनील जाखड़ के समक्ष पार्टी के संचालन में तमाम चुनौतियां हैं, उन्हें उन कृषि कानूनों पर भी अपनी राय देनी होगी, जिन्हें वापस ले लिया गया। पार्टी का काडर नाराज है और सभी को साथ लेकर चलना होगा। भाजपा का गांवों में जनाधार नहीं है और बगैर ग्रामीणों के साथ के पार्टी की कामयाबी पर संशय ही रहेगा। हालांकि नई परिस्थितियों में प्रदेश भाजपा और सुनील जाखड़ दोनों के लिए आगे बढ़ना ही एकमात्र रास्ता होगा। लोकसभा चुनाव की सरगर्मी तेज हो चुकी हैं और साल 2024 के चुनाव कई मायनों में निर्णायक रहने वाले हैं। 

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