Leaders sent abroad are not party-specific country representatives

Editorial:विदेश भेजे गए नेता पार्टी विशेष नहीं देश के हैं प्रतिनिधि

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Leaders sent abroad are not party-specific country representatives

Leaders sent abroad are not party-specific country representatives: आजकल कांग्रेस अलग ही अंतर संघर्ष से गुजर रही है। पहलगाम हमले से पहले तक सब जैसे कुछ सही था, लेकिन एकाएक सब बदल गया। पार्टी के रणनीतिकारों को उम्मीद नहीं थी कि पाकिस्तान के साथ एक सीमित युद्ध लड़ा जाएगा और उसमें भी केंद्र सरकार को इतने सीमित समय में बड़ी कामयाबी हासिल हो जाएगी। कांग्रेस को इसकी भी उम्मीद नहीं थी कि उसके ही कुछ प्रमुख नेताओं को भाजपा नीत केंद्र सरकार प्रतिनिधिमंडल का प्रमुख बनाकर विदेश में भेजेगी और वे नेता भाजपा की केंद्र सरकार की आवाज को बुलंद करेंगे।

दरअसल, कांग्रेस के लिए आजकल यह बहुत व्यथित करने वाली बात है कि उसके नेता जैसे उसके नहीं रहे हैं। जिन नेताओं को कांग्रेस की ओर से बोलते हुए भाजपा और केंद्र सरकार की आलोचना करनी चाहिए थी, वे आजकल ऐसा न करके देश की एकता और अखंडता को आगे बढ़ाते हुए भाजपा सरकार की प्रतिबद्धता और उसके प्रयासों को सही ठहराने में लगे हैं। हालांकि यह राय केवल कांग्रेस नेताओं की हो सकती है, जोकि उचित प्रतीत नहीं होती।

गौरतलब है कि कांग्रेस नेता शशि थरूर, सलमान खुर्शीद और मनीष तिवारी के बयानों की आलोचना हो रही है और यह आलोचना करने वाले खुद कांग्रेस नेता हैं। उन्हें लग रहा है कि वे सांसद केंद्र सरकार के प्रवक्ता हो गए हैं। कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के खात्मे को लेकर जब विदेश में बयान दिए तो यह जैसे कांग्रेस की पार्टी लाइन से अलग बात थी। कांग्रेस ने  इस अनुच्छेद को हटाने का समर्थन नहीं किया था वहीं घाटी में कांग्रेस नेताओं ने उस धड़े के साथ मिलकर चलना ज्यादा जरूरी समझा जो कि इस अनुच्छेद को बहाल कराने की मंशा रखता है।

हालांकि कांग्रेस सांसद सलमान खुर्शीद का यह बयान उन सभी आलोचकों का मुंह बंद कर देता है, जिसमें उन्होंने कहा है कि देश का पक्ष मजबूती से रखने को राजनीतिक निष्ठा से जोड़ना बेहद दुखद है। वास्तव में हमारे देश में कुछ समय से यही होने लगा है। जाहिर है, राजनीतिक मंशाएं कभी भी सत्ताधारी राजनीतिक दल के कार्यों का बखान करने और उनकी प्रशंसा करने की छूट विपक्ष के राजनीतिकों को नहीं देती। अब तो वह दौर भी नहीं रहा कि गाहे-बगाहे सत्ता और विपक्ष के नेता कहीं मिलते नजर आते हों, उनके गपशप होती हो। अब अगर ऐसा हो जाए तो यह सनसनीखेज खबर बन जाता है और फिर सवालों के लंबे दौर चलने लगते हैं। क्या राजनीति में सहिष्णुता का दौर पूरी तरह से खत्म नहीं हो चुका है। अब बेशक, राजनीतिक एक-दूसरे के प्रति इतनी कुंठा रखें लेकिन जब बात देशहित की हो तो क्या वहां भी यही राजनीति चलनी चाहिए। संभव है, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी जिस प्रकार विदेश की धरती से केंद्र सरकार की आलोचना करते हैं, उनकी पार्टी की मंशा भी यही हो कि प्रतिनिधिमंडल में गए कांग्रेस सांसदों को ऐसे बयान नहीं देने चाहिए जिनसे केंद्र की प्रशंसा हो। क्या आतंकवाद के खिलाफ देश की लड़ाई एक पार्टी विशेष तक सीमित है। ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जब सामने आता है कि घाटी में अगर बहुत पहले आतंकियों पर सख्त कार्रवाई की गई होती तो यह इस प्रकार फन न फैला पाता।

मालूम हो, विदेश गए प्रतिनिधिमंडल में शशि थरूर ऐसे नेता हैं, जोकि कांग्रेस की पसंद नहीं थे, लेकिन केंद्र सरकार ने उन्हें सदस्य बनाया। क्या कांग्रेस यह बता पाएगी कि आखिर शशि थरूर का नाम न भेजे जाने के पीछे क्या वजह थी। वे विदेश नीति के माहिर राजनीतिक हैं और वक्ता कला में माहिर हैं। उन्होंने प्रतिनिधिमंडल में रहते हुए विदेशी नेताओं को इतना प्रभावित किया है और उनकी बात का इतना विश्वास किया जा रहा है, जोकि इस पूरी कवायद की सफलता का पैमाना बन गया है।

उन्होंने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का भी चुनाव लड़ा था, जिसमें पहले से तय था कि उनकी हार निश्चित है। बावजूद इसके उन्होंने यह हारी हुई बाजी लड़ी। शशि थरूर एवं अन्य कई ऐसे नेता हैं, जोकि संभव है कांग्रेस में वह स्थान नहीं प्राप्त कर पाए हैं, जिसके वे हकदार हैं। क्या यह आदर्श स्थिति है। एक परिवार जो चाहता है वही होता है। हालांकि पार्टी तो सभी की है, लेकिन उसे चलाया जा रहा है कंपनी की भांति। निश्चित रूप से बहुत से सुधारों की जरूरत है। कांग्रेस केंद्र की सत्ता में लौटना चाहती है लेकिन पहले जरूरी है कि वह अपने नेताओं की क्षमताओं को पहचाने और उन्हें उनके हिस्से का सम्मान दे।

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