If Haryana Congress is formed then the situation will improve

Editorial: हरियाणा कांग्रेस का संगठन गठित हो तो सुधरेंगे हालात

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If Haryana Congress is formed then the situation will improve

If Haryana Congress is formed then the situation will improve: हरियाणा में कांग्रेस के संगठनात्मक ढांचे के गठन की जिम्मेदारी लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने अगर खुद संभाल ली है तो यह उचित ही है। इस समय पूरे देश में हरियाणा कांग्रेस ही वह पार्टी होगी, जोकि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन के बावजूद प्रदेश में अहम भूमिका में नहीं पहुंच पाई। सबसे बढक़र यह कि करीब सात महीने सरकार के गठन को होने के बावजूद राज्य में कांग्रेस अपना नेता विपक्ष ही तय नहीं कर पाई है। इससे जहां सत्तापक्ष को उस पर कटाक्ष करने का मौका मिल रहा है, वहीं कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल भी कमजोर हो चुका है।

प्रदेश में कांग्रेस ही दूसरे नंबर पर है और विपक्ष की भूमिका का दारोमदार भी उसके ऊपर है, लेकिन पार्टी की स्थिति भ्रमपूर्ण हो गई है। अब आई रपट के अनुसार नेता विपक्ष राहुल गांधी जल्द प्रदेश में पहुंच रहे हैं और इसके साथ वे जिलाध्यक्षों की नियुक्ति का रास्ता भी साफ करेंगे। कांग्रेस के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने संगठन का गठन करे वहीं नेता विपक्ष के पद पर भी नियुक्ति करे।

प्रदेश कांग्रेस मौजूदा समय में बिखराव के ऐसे दौर से गुजर रही है, जिसने उसके पास आई जीत को भी उससे दूर कर दिया। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार उसके लिए सबक होनी चाहिए। हालांकि बड़ी बात यह है कि कांग्रेस अपनी हर हार के बाद उसकी समीक्षा करने का दावा करती है, उन कारणों को भी खोज लेती है, जिनकी वजह से हारी, लेकिन दिक्कत यहां होती है कि पार्टी उन कमियों को दूर नहीं कर पाती। नेता विपक्ष एवं सांसद राहुल गांधी चाहते हैं कि इस बार का संगठन मजबूत और निष्पक्ष हो। जाहिर है, संगठन की ताकत उसके कार्यकर्ता होते हैं, पार्टी कुछ को नेता की जिम्मेदारी देती है, कुछ को कार्यकर्ता की।

हालांकि हरियाणा कांग्रेस में मौजूदा समय में हर कोई एक नेता है। ऐसे में पार्टी की जीत की संभावनाओं पर सवाल खड़ा हो जाता है। लोकसभा और फिर विधानसभा चुनाव के दौरान प्रदेश में कांग्रेस के उम्मीदवारों की स्थिति एक अनार सौ बीमार वाली रही। हालांकि इस पर प्रदेश प्रभारी अंकुश लगा सके और न ही प्रदेश अध्यक्ष गुटबाजी को रोक सके। विधानसभा चुनावों में किस नेता के प्रति क्या बयान दिया गया और उससे पार्टी को क्या हानि हुई, इसका सभी को पता है। बावजूद इसके तत्कालीन प्रदेश प्रभारी और अध्यक्ष ऐसे बयानों को नहीं रोक पाए। क्या एक प्रभारी की यही भूमिका रह जाती है कि अगर सवाल उठें तो उसके जवाब दूसरों को देने के लिए छोड़ दो और फिर खुद मंच के पीछे चले जाओ। वास्तव में कांग्रेस के अंदर इस समय अगर प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर भी मंथन जारी है तो यह उचित ही है।

प्रदेश में कांग्रेस को जनता के समक्ष यह जवाब देने में मुश्किल हो रही है कि आखिर उसका संगठन क्यों नहीं है। कांग्रेस के लिए यह चिंतनीय है कि आखिर कौनसी कमी रह गई, जिसकी वजह से वह जनमानस को जनादेश में नहीं बदल सकी। जाहिर है, इसका कारण नेतृत्व की कमी और नेताओं पर भरोसा न होना है। पार्टी में अब ऐसे नेता सामने आ रहे हैं, जिन्हें किसी न किसी वजह से कमतर बनाए रखा गया। लेकिन संभव है, राहुल गांधी जोकि सदैव से पार्टी के सर्वेसर्वा हैं, अब इस बात को समझने लगे हैं कि पार्टी के संगठन को निचले स्तर से मजबूत किया जाना चाहिए। पार्टी को इसकी जरूरत है कि वह नए और भरोसेमंद चेहरों को सामने लेकर आए। कांग्रेस नेतृत्व की यह विवशता हो सकती है कि वह घूम-फिर कर उन्हीं चेहरों को सामने ले आता है, जोकि अभी तक पार्टी का फेस बने हुए थे। निश्चित रूप से किसी अन्य प्रदेश से चेहरे नहीं लाए जा सकते।

हालांकि यह उपाय तो किया ही जा सकता है कि पार्टी संगठन में सख्त अनुशासन लाया जाए। गुटबाजी को खत्म किया जाए और कुछ नए चेहरों पर भरोसा कर उन्हें काम सौंपा जाए। यह सब महज कहने भर से नहीं होगा। दरअसल, कांग्रेस के लिए हरियाणा एक अहम राज्य है, क्योंकि यहां दो पार्टी प्रणाली लागू हो चुकी है। भविष्य के लिए कांग्रेस को अपनी तैयारियों को मजबूत बनाना ही होगा। अब राहुल गांधी किस प्रकार प्रदेश के संगठन को मजबूत बनाते हैं, इसका सभी को इंतजार है। बेशक, पार्टी आलाकमान इस मामले में बहुत देर कर चुका है, लेकिन यही कांग्रेस की कार्य संस्कृति है। हालांकि अब जरूरी है कि पार्टी नेतृत्व जल्द से जल्द निर्णय ले और पार्टी आगे बढ़े। 

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