Editorial: हरियाणा की धरती से उठी एक देश-एक चुनाव की आवाज
- By Habib --
- Monday, 02 Jun, 2025

The voice of a country-one election rose from the soil of Haryana
The voice of a country-one election rose from the soil of Haryana: हरियाणा वह राज्य है, जो कि आजकल नवीनतम और नवप्रयोग का केंद्र बन चुका है। प्रत्येक नया विचार यहां उपजता और प्रफुल्लित होकर बढ़ता दिखता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस विचार के प्रतिपादक हैं कि देश में एक साथ सभी चुनाव होने चाहिएं। यह अपने आप में एक गंभीर विचार है और इसको लागू किए जाने को लेकर देश में मंथन जारी है। गुरुग्राम में रविवार को जब एक देश-एक चुनाव के विचार को आगे बढ़ाने के लिए रन का आयोजन किया गया तो उसमें बड़ी तादाद में लोगों ने प्रतिभागिता की। इस दौरान मुख्यमंत्री नायब सैनी ने कहा कि एक देश-एक चुनाव एक राजनीतिक विचार नहीं है, यह राष्ट्रहित का विचार है। निश्चित रूप से अब वह समय आ गया है, जब देश सर्वोपरि होना चाहिए और प्रत्येक निर्णय उसके संदर्भ में और उसे आगे बढ़ाने के लिए होनी चाहिए।
भारत अब विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, इसका अभिप्राय यह है कि अब देश की जिम्मेदारियां और बढ़ गई हैं, वहीं इस मुकाम को कायम रखने के लिए हरसंभव प्रयास करने होंगे। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि भारत में चुनाव कराना बहुत महंगा काम है। मुख्यमंत्री नायब सैनी का यह कहना सर्वथा उचित है कि एक साथ चुनाव कराने से आर्थिक खर्च को कम किया जा सकता है। यह बचा हुआ धन देश के विकास में खर्च होगा, क्योंकि चुनाव में जो धन प्रयोग होता है, उससे कुछ उत्पादित नहीं होता, सिवाय इसके कि बतौर एक लोकतांत्रिक देश हम चुनाव के जरिये अपने प्रतिनिधियों को चुनने की परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं।
गौरतलब है कि केंद्रीय कैबिनेट ने एक देश-एक चुनाव पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित कमेटी की रिपोर्ट को मंजूरी प्रदान कर दी है, लेकिन अब यह देखने की बात होगी कि क्या पूरा देश इसके लिए तैयार हो पाएगा। इस कमेटी की सिफारिश है कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ और दूसरे फेज में ग्राम पंचायतों के चुनाव कराए जाएं। वास्तव में एक साथ चुनाव की अवधारणा कोई शिगूफा नहीं है, यह समझे जाने की बात है कि आखिर देश और विधानसभाओं के चुनाव के दौरान दो या तीन महीने तक देश के विकास की रफ्तार क्यों बाधित हो। क्या कुछ ऐसा नहीं हो सकता कि चुनाव एक दीर्घकालिक प्रक्रिया नहीं अपितु एक निर्धारित समय के अंदर पूरा कराए जाने वाला कार्य हो, उसके बाद फिर से देश में विकास कार्यों के लिए काम होने लगे।
चुनाव आचार संहिता देश एवं राज्यों में सरकारी कार्यों की गति को बाधित कर देती है, हालांकि एक साथ चुनाव होने की सूरत में समय की बर्बादी को रोका जा सकता है। एक देश-एक चुनाव मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है, देश में राजनीतिक विरोध का ऐसा जुनून है कि सही कार्यों के समर्थन में भी नेता एक साथ नहीं आते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में सुधारीकरण के सबसे बड़े पैरोकार बन चुके हैं और उनकी अगुवाई में ऐसी नीतियां एवं कार्यक्रम देश में लागू हो चुके हैं, जिनके संदर्भ में अभी तक कल्पना ही की जा सकती थी। देश में एक साथ लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराने की जरूरत पर लंबे समय से चर्चा जारी है। यह कहा जाता है कि अगर एक साथ चुनाव हुए तो इससे खर्च में भारी कटौती की जा सकेगी। खर्च में कटौती पर संशय नहीं होना चाहिए। चुनाव आयोग ने जो सुधार किए हैं, उनकी बदौलत ही अब चुनाव कब आए और कब परिणाम आकर माननीयों का शपथ ग्रहण समारोह हो जाता है, पता ही नहीं चलता। दरअसल, वन नेशन, वन इलेक्शन का विचार सार्थक रूप से लिया जाना चाहिए। हालांकि पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए भारी संसाधन और मानव मशीनरी की जरूरत होगी।
यह मामला सुरक्षा से भी जुड़ा होगा। हालांकि वन नेशन-वन इलेक्शन के संबंध में विपक्ष की ओर से विरोध भी हो रहा है। लोकतंत्र में चुनाव से कौन इनकार कर सकता है, पूरी दुनिया के लोकतांत्रिक देशों में चुनाव एक उपयुक्त प्रक्रिया है, अपने प्रतिनिधि चुनने की। ऐसे में अगर एक साथ पूरे देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव कराए जाते हैं, तो इससे न केवल समय बचेगा अपितु खर्च भी बचेगा। राजनीति में आने की वही सोच सकता है, जिसके पास खजाने भरे होते हैं। लेकिन क्या कुछ ऐसा नहीं हो सकता कि इस खर्च को बचाया जा सके। निश्चित रूप से चुनाव आयोग को उम्मीदवारों का खर्च और ज्यादा कम करने के लिए काम करना चाहिए, इसका एक तरीका एक साथ चुनाव हो सकते हैं।
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