Varun Gandhi

Editorial: पीलीभीत से वरुण गांधी का टिकट कटना है बागियों को संदेश

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Varun Gandhi ticket to be canceled from Pilibhit, message to rebels

यूपी की राजनीति अपने आप में रिसर्च का विषय होती है। आजकल राज्य में टिकट देने से ज्यादा चर्चा टिकट कटने वाले नेताओं की है। यह काफी हैरत भरा निर्णय है कि एक ही परिवार में मां को पार्टी का टिकट मिल गया लेकिन बेटे का टिकट कट गया। पीलीभीत से टिकट कटने के बाद भाजपा सांसद वरुण गांधी को कांग्रेस से ऑफर आया है। अब इसकी चर्चा हो रही है कि आखिर कांग्रेस क्या उन्हें अपनाएगी। क्योंकि एक बार राहुल गांधी से यही सवाल पूछा गया था, तब उन्होंने इससे इनकार नहीं किया था। लेकिन गांधी परिवार में दो भाई एक जगह आए तो क्या राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का ज्वार उन्हें साथ-साथ चलने देगा।

बावजूद इसके अगर ऐसी चर्चा है कि वरुण गांधी अब कांग्रेस के हो सकते हैं तो यह चकित करने वाला घटनाक्रम नहीं होगा। क्योंकि आजकल जिस प्रकार भाजपा की ओर से कांग्रेस के नेताओं को अपने यहां धड़ल्ले से भर्ती किया जा रहा है, उसी प्रकार कांग्रेस भी भाजपा नेताओं को हाथों-हाथ ले रही है। हरियाणा में हिसार से भाजपा सांसद रहे बृजेंद्र सिंह को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने खुद पार्टी में शामिल किया है। क्या वे वरुण गांधी को इनकार कर सकते हैं। लेकिन संभव है, इसके लिए उन्हें गांधी परिवार की इजाजत लेनी होगी।

चर्चा है कि वरुण गांधी को अमेठी या रायबरेली से कैंडिडेट घोषित किया जा सकता है। इससे न केवल कांग्रेस को अपने गढ़ को बचाने के लिए एक ताकतवर चेहरा मिल जाएगा बल्कि यूपी में एक हिंदुत्व वादी और फायरब्रांड नेता की तलाश भी पूरी हो जाएगी। वरुण अगर कांग्रेस में आए तो उनका उम्मीदवार बनना भी तय माना जा रहा है। क्योंकि कांग्रेस के अभेद्य किले को भेदने के लिए भाजपा भी किसी मजबूत योद्धा पर दांव लगाने की रणनीति बना रही है। दरअसल भाजपा ने वरुण गांधी का पीलीभीत से टिकट काट कर योगी सरकार में मंत्री जितिन प्रसाद को प्रत्याशी बना दिया है।

हालांकि वरुण की मां मेनका गांधी पर भाजपा ने फिर भरोसा जताते हुए सुल्तानपुर से उम्मीदवार घोषित किया है। पार्टी अब वरुण गांधी को बाकी बची सीटों से कैंडिडेट बनाएगी। ऐसी संभावनाएं भी लगभग ना के बराबर हैं। वरुण गांधी पीलीभीत से निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे, इस पर सवाल है। ऐसा भी लगभग असंभव है। वरुण गांधी इस बार चुनाव से दूरी बनाए रहे और अपनी मां मेनका गांधी के चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी संभालते दिख जाएं ऐसा हो सकता है। हालांकि राजनीति में ऊंट किस करवट बैठ जाये यह आखिरी समय तक नहीं कहा जा सकता है।

समाजवादी पार्टी के बाद अब कांग्रेस ने भी वरुण गांधी पर डोरे डालने शुरू कर दिए हैं। गौरतलब है कि कांग्रेस भी रायबरेली और अमेठी से उम्मीदवार की घोषणा नहीं कर पाई है। यूपी कांग्रेस के नेता अमेठी से राहुल गांधी और रायबरेली सीट से प्रियंका गांधी के चुनाव  लड़ने की मांग लगातार कर रहे हैं। लेकिन कांग्रेस अभी भी अपने पत्ते नहीं खोल पाई है। वहीं कांग्रेस अपना एक गढ़ अमेठी 2019 में हार चुकी है। भाजपा नेता स्मृति ईरानी ने 2019 में राहुल गांधी को 50 हजार के वोटों के अंतर से चुनाव हराया था। इस बार भी भाजपा ने केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को उम्मीदवार बनाया है। दोनों सीट कांग्रेस का गढ़ है इसलिए रायबरेली और अमेठी सीट पर सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी को ही अंतिम फैसला लेना है। रायबरेली से सांसद सोनिया गांधी ने इस बार चुनाव लडऩे से साफ मना कर दिया है। वहीं भाजपा ने भी रायबरेली सीट से अपने पत्ते नहीं खोले हैं। अमेठी से स्मृति ईरानी को टिकट दे दिया है। ऐसे में सबकी निगाहें दोनों ही सीट पर टिकी हुई है। कांग्रेस ने अगर गांधी परिवार से उम्मीदवार नहीं उतारा तो ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि इस बार रायबरेली भी बचाना मुश्किल हो जाएगा।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि वरुण गांधी अच्छे वक्ता हैं और हिंदुत्ववादी नेता के रूप में उनकी छवि रही है। अगर वरुण सपा या कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव लड़ते हैं तो भाजपा को इसका नुकसान होगा। कांग्रेस ने उन्हें उम्मीदवार बनाया तो न केवल पीलीभीत, सुल्तानपुर, अमेठी और रायबरेली सीट पर भी भाजपा के लिए चुनौती पैदा हो सकती है। निश्चित रूप से पार्टी ने अनेक मौजूदा सांसदों का टिकट काट कर अलग रणनीति पेश की है। उसने उन नेताओं को सबक सिखाया है, जोकि पार्टी की विचारधारा के उलट बयान देते हैं। यह अनुशासनहीनता का मामला है, लेकिन प्रत्येक कार्यकर्ता को इतना ध्यान तो रखना ही होगा कि अगर उसकी विचारधारा पार्टी की सोच से सरोकार नहीं रखती है तो वह अपना अलग रास्ता अपना सकता है। लेकिन उसे पार्टी में रहकर पार्टी को नुकसान पहुंचाने से तो खुद को रोकना ही होगा।  

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