Slave Kashmir became a part of India
BREAKING
शैक्षिक उत्कृष्टता समारोहः संत निरंकारी शैक्षणिक संस्थानों द्वारा गौरवशाली उपलब्धियों का भव्य उत्सव आयोजित  CM नायब सैनी की डॉक्टरों से अपील; कहा- जनता को दिक्कत हो रही, डॉक्टर अपनी हड़ताल वापस लें, 4 में से 3 मांगे सरकार ने मानी हाईवे पर चलती कार के ऊपर गिरा प्लेन; क्रैश लैंडिंग का वीडियो दुनियाभर में वायरल, देखिए फ्लोरिडा में कैसे हुआ भयावह हादसा चंडीगढ़ में भीषण सड़क हादसा; 2 दोस्तों की बाइक रोड पर खड़ी गाड़ी से टकराई, 1 की दर्दनाक मौत, दूसरा गंभीर, घर जा रहे थे दोनों ठंड की ठिठुरन में ज़रूरतमंदों को राहत; निधि स्ट्रेंथ हेल्थ एंड एजुकेशन फ़ाउंडेशन ने विंटर किट बांटे, हज़ार से अधिक लोगों तक पहुंचाई मदद

Editorial: गुलाम कश्मीर बने भारत का अंग, अब प्रभावी कार्रवाई जरूरी

Edit3

Slave Kashmir became a part of India

Slave Kashmir became a part of India रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का यह कहना सर्वथा उचित है कि गुलाम कश्मीर भारत का अंग है और वहां पाकिस्तान सरकार के अत्याचारों से तंग आ चुके लोग अब भारत में ही मिलने के इच्छुक हैं। इस तरह की बातें लंबे समय से मोदी सरकार के मंत्रियों एवं भाजपा नेताओं की ओर से कही जा रही हैं। स्वयं संसद में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इस बात का दावा किया था।

हालांकि अब रक्षा मंत्री की ओर से जम्मू में जाकर इस बात को प्रखर अंदाज में कहना यह बताता है कि भारत विजेता स्थिति में पहुंच चुका है और अब पाकिस्तान पर निर्णायक वार की तैयारी है। जम्मू-कश्मीर को शेष भारत से अलग करने वाले अनुच्छेद 370 के समापन के बाद से घाटी में हालात को सामान्य बनाने की दिशा में मोदी सरकार ने तमाम प्रयास किए हैं। घाटी में अब शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग के हालात सुधरे हैं वहीं आतंकवाद पर भी प्रभावी अंकुश लगा है। यह सब करने के लिए प्रतिबद्धता आवश्यक है, जोकि मौजूदा सरकार ने दिखाई है। हालांकि गुलाम कश्मीर जिसे पीओके कहा जाता है, को वापस लाने के लिए भी अब गंभीर प्रयास करने की जरूरत है, जिसकी तरफ सरकार कदम बढ़ाती नजर आ रही है।

गुलाम कश्मीर का अस्तित्व तब सामने आया था, जब बंटवारे के बावजूद पाकिस्तान के आतंकियों ने भारत भूमि में घुसकर उसे बंधक बना लिया था। इसके बाद से यही एलओसी बन गया। इस समय गुलाम कश्मीर के हालात बद से बदतर हैं और पाक आर्मी वहां बेइंतहा जुल्म ढाह रही है। गुलाम कश्मीर पाकिस्तान के लिए पर्यटन के जरिये पैसा कमाने का तो साधन है, लेकिन वहां के निवासियों को जिस प्रकार का जीवन जीना पड़ रहा है, उससे वे त्रस्त हो चुके हैं और अपनी आजादी की लगातार मांग उठा रहे हैं।

इस क्षेत्र के निवासियों की मांग पाकिस्तान से अलग होने की है, लेकिन यह जरूरी है कि वे अपनी मांग को भारत के साथ जोडक़र सामने लाएं। यानी गुलाम कश्मीर के लोगों को स्वतंत्र होने से ज्यादा बेहतर यह है कि वे भारत के साथ खुद को जोड़ें और यह मांग उठाए कि उन्हें भारत का अंग बनना है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का यह कहना और भी सही है कि मौजूदा समय में कश्मीर की रट लगाए रखने वाले पाकिस्तानी नेताओं को अपना घर संभालना चाहिए। क्योंकि एक न एक दिन वह दौर भी आ सकता है, जब गुलाम कश्मीर के लोगों की यह उकताहट बगावत का रूप ले लेगी। बीते दिनों में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के मामले को लेकर देश में जिस प्रकार की हिंसा, आगजनी हुई है, वह फिर हो सकती है और पाक सेना पहले से जनता का विश्वास खो चुकी है, वह केवल बंदूक के बल पर अपनी छद्म हकुमत को जारी रखे हुए है।

गौरतलब है कि गुलाम कश्मीर के तेतरी नोट और भिंबर में जनता ने पाकिस्तानी सेना पर ज्यादतियों के आरोप लगा कर प्रदर्शन किया है। यहां कुछ दिन पहले आटा न मिलने पर लोग सडक़ पर उतर आए थे, इसके अलावा गुलाम कश्मीर में जनगणना कराए जाने की प्रक्रिया में वहां के लोग खुद को पाकिस्तानी नागरिक लिखे जाने पर नाराज हैं। यह भी खूब है कि वहां भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थन में नारे लगाए गए हैं। वास्तव में वह समय आ चुका है, जब भारत को गुलाम कश्मीर के लिए आखिरी वार कर देना चाहिए। इस समय पाकिस्तान की रीढ़ टूट चुकी है और वह पैसे को मोहताज है।

पाकिस्तान ने गुलाम कश्मीर कब्जाने और उसके बाद भारत के खिलाफ युद्ध एवं कश्मीर में आतंकी वारदातों को अंजाम देने के लिए ब्रिटेन, अमेरिका आदि देशों का सहयोग प्राप्त कर यह जुर्रत की थी, लेकिन अब उन्हीं देशों का रूख भारत की ओर हो गया है। अब पूरा विश्व यह समझ चुका है कि दक्षिण एशिया समेत दूसरे देशों में आतंकवादियों का पोषक कौन देश है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया अमेरिका यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच साझा बयान जारी किया गया है, जिसमें पाकिस्तान का नाम लेकर उसे अपने यहां आतंकियों की फैक्टरी बंद करने को कहा गया है।
 

रक्षा मंत्री का यह कहना भी सर्वथा उचित है कि साल 2020 में पूर्वी लद्दाख में भारतीय सैनिकों और चीनी आर्मी के बीच जो संघर्ष हुआ था, उसकी वजह चीन की सेनाओं की ओर से किए जा रहे उल्लंघन को रोकना था। अगर चीन के सैनिक निर्धारित प्रोटोकॉल का पालन करते तो ऐसा होना ही नहीं था, लेकिन भारतीय सैनिकों ने उनकी इस जुर्रत को रोक दिया। लेकिन इस दौरान देश में विपक्ष की ओर से लगातार ऐसा भ्रम फैलाया जा रहा है, जैसे कि केंद्र सरकार एवं भारतीय सैनिक अपनी सीमाओं की सुरक्षा करने में सफल नहीं हैं। चीन का रवैया इसी समय खराब नहीं हुआ है, वह शुरू से है। वास्तव में भारत को अपने विरोधियों को कूटनीतिक जवाब देते हुए अपने विकास की रफ्तार को इसी प्रकार बनाए रखना है। भारत का साहस ही उसके लिए तरक्की के रास्ते खोलेगा। 

यह भी पढ़ें:

Editorial: मोदी की विदेश यात्रा से भारत की कीर्ति में लगे चार चांद

यह भी पढ़ें:

Editorial: अकेले चुनाव लड़ना जरूरत, पर गठबंधन में न हो कटुता