Need to contest elections alone

Editorial: अकेले चुनाव लड़ना जरूरत, पर गठबंधन में न हो कटुता

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Need to contest elections alone

Need to contest elections alone हरियाणा में भाजपा-जजपा के बीच कशमकश का नया दौर शुरू होने के साथ ही यह तय होता नजर आ रहा है कि इस बार राज्य में विधानसभा और लोकसभा चुनाव बेहद कड़े मुकाबले वाले होंगे। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व जहां सभी 10 लोकसभा सीटों को फिर से जीतने की योजना बनाने में लगा है, वहीं गठबंधन सहयोगी जजपा ने भी सभी 10 सीटों पर जीत का दावा ठोक दिया है। हालांकि दिलचस्प यह है कि दोनों दल गठबंधन में बने रहने और आगे भी गठबंधन को जारी रखने के बयान दे रहे हैं। प्रश्न यही है कि अगर दोनों दल 10 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे तो फिर गठबंधन कौन करेगा और क्या यह गठबंधन विधानसभा सीटों के लिए होगा।

संभव है, भाजपा के रणनीतिकार यह मान रहे हैं कि जजपा अभी इस स्थिति में नहीं है कि वह लोकसभा चुनाव में जीत हासिल कर सके। कमोबेश यह राय जजपा के अंदर भी हो सकती है लेकिन मैदान में बने रहने के लिए पार्टी ने अपने पदाधिकारियों को लोकसभा चुनाव की तैयारियां करने का भी मिशन सौंप दिया है। गौरतलब है कि जजपा के एक वरिष्ठ नेता की ओर से कहा गया है कि जनता की अपेक्षाओं पर सरकार खरी नहीं उतरी है, दरअसल वे अपनी पार्टी की बात कर रहे हैं, जोकि गठबंधन में रहते हुए उन सभी वादों को पूरा नहीं करवा सकी जोकि चुनाव में पार्टी ने किए थे। ऐसे में पार्टी जनता के सम्मुख खुद को स्वतंत्र रूप से पेश करते हुए समर्थन की मांग कर रही है ताकि उसकी सरकार बनने पर उन सभी वादों को बेहिचक पूरा किया जा सके।

राजनीति में ज्यामिति के मुताबिक लाइन खींच कर हार-जीत का खाका नहीं बनाया जा सकता। यहां कभी भी और कुछ भी हो सकता है। भाजपा-जजपा गठबंधन को लेकर स्थानीय स्तर पर नेताओं के बयान आ रहे हैं, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व की ओर से अभी तक कुछ भी स्पष्ट नहीं किया गया है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह हरियाणा का महत्व समझते हैं और वे यहां पार्टी की जीत के रणनीतिकार भी हैं। सिरसा रैली में शाह ने विधानसभा चुनाव का जिक्र नहीं किया लेकिन लोकसभा चुनाव में सभी 10 सीटें भाजपा द्वारा जीतने की तैयारियों पर कदम बढ़ाने के निर्देश दिए। पार्टी ने सभी 10 लोकसभा क्षेत्रों में रैली करने की योजना बनाई हुई है, इसके तहत यह रैली थी।

इसमें बातें भी लोकसभा स्तर की ही की गई हैं। अब प्रदेश प्रभारी जब जजपा के साथ रार ठानते हुए निर्दलीय विधायकों से बैठकों का दौर चला चुके हैं, तब यह पूछा जा रहा है कि आखिर इस पूरी कवायद का मतलब क्या है। क्या वास्तव में भाजपा एकला चलो की नीति का संकल्प ले चुकी है और अब चुनाव कार्यक्रम की घोषणा का इंतजार है। गौरतलब है कि अब गठबंधन के संबंध में अंतिम निर्णय केंद्रीय गृहमंत्री शाह के दरबार में होना निश्चित हो चुका है। जजपा नेता भी यही दोहरा रहे हैं कि विधानसभा चुनाव के बाद मिलकर सरकार बनाने का निर्णय दिल्ली में शाह के आवास पर ही हुआ था, ऐसे में अब अलगाव का निर्णय भी वहीं होगा।

प्रदेश में भाजपा नेतृत्व सभी लोकसभा सांसदों के साथ यह मंत्रणा कर चुका है कि गठबंधन में चुनाव लडऩा उचित रहेगा या फिर अलग होकर। यह भी सामने आ चुका है कि सभी सांसद अकेले चुनाव लडऩे को उचित ठहरा रहे हैं। जाहिर है, पार्टी नेता गठबंधन की बात करके अपनी टिकट को संकट में नहीं डालना चाहते। हालांकि भाजपा के लिए अंदरखाने यह अभी भी पहेली है कि उसे अकेले चुनाव में उतरना चाहिए या नहीं। गौरतलब है कि बदले दौर में भाजपा को कांग्रेस, इनेलो और जजपा से मुकाबला करना होगा और तीनों दल मिलकर उसके वोट प्रतिशत पर हमला करेंगे, हालांकि गठबंधन में चुनाव लड़ने का फायदा यह हो सकता है कि जजपा को इनेलो के हिस्से के वोट भी हासिल हों।

वास्तव में प्रदेश में इस बार चौंकाने वाले नतीजे सामने आ सकते हैं। लोकतंत्र में सभी की राय मायने रखती है, लेकिन यह राय बनती और बिगड़ती रहती है। साल 2014 में भाजपा ने अच्छे दिन आएंगे का नारा देते हुए पूरे देश में अपने प्रति माहौल बना दिया था और फिर साल 2019 में भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति रही। क्या पार्टी को तीसरी बार भी इसी आत्मविश्वास को कायम रखते हुए सत्ता में आने की उम्मीद संजोनी चाहिए। विश्लेषक मानते हैं कि जनता का मन बहुत जल्द ऊब जाता है, वह विकल्प तलाशने लगती है। हरियाणा समेत पूरे देश में ऐसा माहौल बन रहा है, जब विपक्ष के दल अपनी संभावनाओं को तलाशने और उन्हें विस्तार देने में जुटे हैं। विपक्षी दलों की यह एकजुटता भाजपा के मंसूबों के पूरा होने में रुकावट बन सकती है। ऐसे में पार्टी को अपने गठबंधन सहयोगियों के प्रति विनम्र रहना ही होगा। हरियाणा में भी ऐसी ही स्थिति है। यहां राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा, देखना होगा। 

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