Reservation in jobs ends

नौकरियों में आरक्षण खत्म हो

Reservation in jobs ends

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सर्वोच्च न्यायालय में आजकल आरक्षण पर बहस चल रही है। उसमें मुख्य मुद्दा यह है कि आर्थिक आधार पर लोगों को नौकरियों और शिक्षा-संस्थानों में आरक्षण दिया जाए या नहीं? 2019 में संसद ने संविधान में 103 वाँ संशोधन करके यह कानून बनाया था कि गरीबी की रेखा के नीचे जो लोग हैं, उन्हें 10 प्रतिशत तक आरक्षण दिया जाए। यह आरक्षण उन्हीं लोगों को मिलता है, जो अनुसूचित और पिछड़ों को मिलनेवाले आरक्षण भी शामिल नहीं हैं।

याने सामान्य श्रेणी या अनारक्षित जातियों को भी यह आरक्षण मिल सकता है। उसका मापदंड यह है कि उस गरीब परिवार की आमदनी 8 लाख रु. साल से ज्यादा न हो। याने लगभग 65 हजार रु. प्रति माह से ज्यादा न हो। एक परिवार में यदि चार लोग कमाते हों तो उनकी आमदनी 16-17 हजार से कम ही हो। ऐसा माना जाता है कि गरीबी रेखा के नीचे जो लोग हैं, उनकी संख्या 25 प्रतिशत के आस-पास है याने लगभग 30 करोड़ है। इन लोगों को आरक्षण देने का विरोध इस तर्क के आधार पर किया जाता है कि देश के ज्यादातर गरीब तो अनुसूचित लोग ही हैं। यदि ऊँची जातियों के लोगों को गरीबी के नाम पर आरक्षण दिया जाएगा तो जो असली गरीब हैं, उनका हक मारा जाएगा।

इसके जवाब में जजों ने पूछा है कि यदि इस आरक्षण में आरक्षितों और पिछड़ों को भी जोड़ लिया जाए तो आरक्षण की सारी मलाई ये वर्ग ही साफ कर लेंगे। अभी तक कानून यह है कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दिया जाए। ऐसे में एक तर्क यह भी है कि गरीबों को दिया गया आरक्षण अनुसूचितों के लिए नुकसानदेह होगा। वास्तव में सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों की नौकरियों में किसी भी आधार पर आरक्षण देना उचित नहीं है। ऐसे आरक्षणों में योग्यता दरकिनार कर दी जाती है और अयोग्य लोगों को कुर्सियां थमा दी जाती हैं। इसके फलस्वरुप सारा प्रशासन अक्षम हो जाता है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। नौकरियों में भर्ती का पैमाना सिर्फ एक ही होना चाहिए।

वह है, योग्यता! देश के प्रशासन को सक्षम और सफल बनाना हो तो जाति और गरीबी, दोनों के नाम पर नौकरियों में दिए जानेवाले आरक्षणों को तुरंत खत्म किया जाना चाहिए। उसकी जगह सिर्फ शिक्षा में आरक्षण दिया जाए और वह भी 60-70 प्रतिशत हो तो भी उसमें भी कोई बुराई नहीं है। इस आरक्षण का सिर्फ एक ही मानदंड हो और वह हो गरीबी की रेखा! इसमें सभी जातियों के लोगों को समान सुविधा मिलेगी। समस्त आरक्षित छात्र-छात्राओं को निशुल्क शिक्षा और संभव हो तो भोजन और निवास की सुविधा भी मिलनी चाहिए। जो बच्चे परिश्रमी और योग्य होंगे, वे नौकरियों में आरक्षण की भीख क्यों मांगेंगे? वे स्वाभिमानपूर्वक काम करेंगे। वे हीनताग्रंथि से मुक्त होंगे।

-डॉ वेदप्रताप वैदिक