Pehalwans continue to demand justice

Editorial: पहलवान न्याय की मांग जारी रखें, लेकिन व्यवस्था से अलग होकर नहीं

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Pehalwans continue to demand justice

Pehalwans continue to demand justice महिला पहलवानों के आरोप और उनके समर्थन में चल रहा धरना अब अगर कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन की तर्ज पर संचालित होने लगा है तो इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। राजधानी दिल्ली तमाम धरने-प्रदर्शन-आंदोलनों की साक्षी रही है, लेकिन अब खेलों में यौन शोषण के आरोपों के खिलाफ आंदोलन की आहट भी यह सुन रही है।

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष एवं सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं, दिल्ली पुलिस की मानें तो इस मामले की जांच जारी है। हालांकि पहलवानों के सब्र का बांध लगातार छलछला रहा है, उनकी आशंकाएं ऐसी हैं कि सांसद के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी, अगर होनी होती तो अब तक हो जाती। ऐसा इसलिए क्योंकि दो एफआईआर दर्ज होने के बावजूद उनकी गिरफ्तारी नहीं हुई है। क्या सच में पहलवानों के इस आरोप में सच्चाई है कि कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष को बचाया जा रहा है, या फिर वास्तविकता कुछ और है?

यह पूरा मामला इतना संदेहास्पद हो गया है कि किसे सच माना जाए और किसे झूठ, कुछ नहीं कहा जा सकता। दिल्ली पुलिस अब पहलवानों से साक्ष्य मांग रही है, और उसका आरोप है कि आरोपों से संबंधित साक्ष्य उसे मुहैया नहीं कराए गए हैं। वहीं पहलवान कह रहे हैं कि एफआईआर के बावजूद उनके बयान ही दर्ज नहीं किए गए हैं। आखिर कानून में जो दर्ज है, उसके मुताबिक कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है। अगर पहलवानों के पास उनके आरोपों के संबंध में साक्ष्य हैं तो उन्हें क्यों नहीं मुहैया कराया गया है।

वहीं दिल्ली पुलिस को अगर सर्वोच्च न्यायालय से एफआईआर के निर्देश हासिल हुए हैं, तो फिर वह इस मामले में लेटलतीफी कैसे कर सकती है। क्या इस पूरे मामले को अपराध के घटित होने और अपराधी को सजा दिलाने की तरह नहीं लिया जाना चाहिए। हालांकि प्रतीत हो रहा है कि जैसे मामले को दीर्घकाल तक जारी रखने की कवायद है। अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं, इससे पहले किसान आंदोलन भी चुनावों की दहलीज तक पहुंचाया गया था। कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष के खिलाफ जिस प्रकार के आरोप हैं, उनमें अभी तक यह भी स्पष्ट नहीं हो पाया है कि आखिर महिला पहलवानों के साथ आरोपी की ओर से ऐसा क्या जुर्म अंजाम दिया गया है। हालांकि आईपीसी में तो यह भी धारा है कि अगर किसी महिला की तरफ कोई घूर कर भी देख ले तो उसके खिलाफ केस दर्ज हो सकता है।

बेशक, संबंधित महिला खुद को किसी स्वार्थ के लिए पीड़ित बताए। आज के समय में जब नीति और सिद्धांत मूल्यहीन हो चुके हैं, तब किसी पैमाने पर राजनीति होने लगे, कौन जानता है। किसी की पूरी उम्र कमाई प्रतिष्ठा अगर चंद सेकंड में सडक़ पर उछल आए तो यह भी कौन जानता है। सोशल मीडिया के जमाने में कहीं भी सच्चाई और ईमानदारी नजर नहीं आती, हरतरफ फरेब और जालसाजी का ऐसा मायाजाल धुएं की भांति फैला नजर आता है कि सच और झूठ की पहचान करना मुश्किल हो जाता है।

इस मामले को लेकर अब हरियाणा, उत्तर प्रदेश में राजनीति अपने चरम पर पहुंचती नजर आ रही है। हालांकि उत्तर प्रदेश से भी पहलवान आते हैं लेकिन उनकी आवाज कहीं सुनने को नहीं मिल रही। किसान आंदोलन में सबसे ज्यादा किसान पंजाब और यूपी से थे, लेकिन इस बार पहलवानों के आंदोलन में सिर्फ हरियाणा से जुड़े पहलवान ही डटे हुए नजर आते हैं। यह भी खूब है कि हरियाणा से विपक्षी दलों के राजनीतिक ही लगभग हर दूसरे दिन पहलवानों के धरने पर पहुंच कर उन्हें समर्थन दे रहे हैं। अब पहली हुआ है, जब हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज ने खुलकर पहलवानों के समर्थन में आवाज बुलंद की है।

विज प्रदेश के खेल मंत्री रहे हैं, उनके कार्यकाल में खेल और खिलाडिय़ों की ईनामी राशि में इजाफा हुआ है और उन्हें सम्मानित करने में भी विज ने कसर नहीं छोड़ी। हालांकि मुख्यमंत्री मनोहर लाल भी इस मामले पर बोल चुके हंै, जिनका कहना है कि कानून सम्मत कार्रवाई होगी।  वहीं उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला का कहना है कि खिलाडिय़ों की बात सुनकर उचित कार्रवाई की जाए। जाहिर है, सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर केस दर्ज हो चुका है, वहीं जांच जारी है। यानी कानून अपना काम कर रहा है।

दरअसल, पहलवानों को अगर देश की कानून प्रणाली पर विश्वास है तो उन्हें बगैर किसी राजनीतिक समर्थन के डटे रहना होगा। यह भी आवश्यक नहीं है कि यह धरना जंतर-मंतर पर ही चले। आजकल जिस प्रकार से इस धरने को लेकर घटना चक्र संचालित हो रहा है, वह पूरी व्यवस्था पर दबाव बनाने का है। अगर बाहुबल से निर्णय लागू कराए जाएंगे तो फिर न्याय प्रणाली कहां रहेगी? यह बात आरोपी और शिकायतकर्ता दोनों पर लागू है। 

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