Madhyamgarh Haryana Government with employees

ओपीएस : कर्मचारियों के साथ मध्यमार्ग निकाले हरियाणा सरकार

Pantion

OPS : Madhyamgarh Haryana Government with employees

Madhyamgarh Haryana Government with employees पुरानी पेंशन योजना यानी ओपीएस अब देशभर में जटिल मुद्दा बन चुकी है। हरियाणा में सरकारी कर्मचारियों ने छुट्टी के दिन पंचकूला में जिस प्रकार से ओपीएस के लिए एकजुटता दिखाई है, वह पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई है। हरियाणा सरकार ने ओपीएस लागू करने से इनकार किया है, लेकिन कर्मचारी लगातार इसके लिए अभियान चलाए हुए हैं और अब पंचकूला में पुलिस से उनकी झड़प, लाठीचार्ज, आंसू गैस के गोले छोड़ने की घटना से सरकार पर दबाव बढ़ रहा है।

विपक्ष भी पूरी तरह से कर्मचारियों के साथ आ गया है और कांग्रेस की ओर से तो दावा किया गया है कि सरकार बनने पर पहली कैबिनेट बैठक में ओपीएस लागू करने का फरमान जारी कर दिया जाएगा। ओपीएस को पंजाब, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान राज्य लागू कर चुके हैं, इन सभी राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हैं। हरियाणा में भाजपा-जजपा सरकार सत्ता में है, उसके सामने जटिलता यही है कि केंद्र सरकार के उलट वह कैसे जा सकती है, जिसने ओपीएस को बंद किया है।

  मोदी सरकार जब आर्थिक सुधारीकरण में जुटी है और देश के लिए नवीन संसाधन जुटाने की उसकी कवायद जारी है, तब पुरानी पेंशन योजना उसके रास्ते की बड़ी अड़चन बन रही है। यही वजह है कि उसने पुरानी पेंशन योजना को बंद कर दिया है। हालांकि न सरकारी कर्मचारी यह चाहते हैं और न ही विपक्ष के दल। मोदी सरकार और भाजपा की सरकारों का मानना है कि अगर पुरानी पेंशन योजना लागू रही तो 2030 तक देश की अर्थव्यवस्था दिवालियापन के कगार पर पहुंच सकती है।

 पुरानी पेंशन योजना अब राजनीतिक मुद्दा बन चुकी है और इस वर्ष होने वाले नौ राज्यों के चुनावों में और अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में यह मुद्दा प्रमुखता से उठेगा। हरियाणा में भाजपा सरकार ने पुरानी योजना को लागू करने से साफ इनकार किया है, वहीं दूसरे राज्यों जिन्होंने पुरानी पेंशन योजना को बहाल किया है, से इस पर विचार करने को कहा है। आंकड़ों से यह सामने आ रहा है कि जिन राज्यों ने पुरानी पेंशन योजना लागू की है, उनमें सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ा गया है।

भारतीय रिजर्व बैंक ने राज्यों पर अपनी नई सांख्यिकी हैंडबुक-2022 में इसका जिक्र किया है। सामने आया है कि सबसे पहले ओपीएस लागू करने वाले राजस्थान में पेंशन बिल 16 गुणा तक बढ़ चुका है, वर्ष 2004-05 में केवल 19 प्रतिशत की तुलना में 2020-21 में अपने स्वयं के कर राजस्व का 28 प्रतिशत इस मद में खर्च हुआ है। राज्य में सरकारी कर्मचारियों की संख्या में 70 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जो आने वाले वर्षों में पेंशन बिल में बढ़ोतरी का संकेत है। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ में पेंशन बिल 12 गुणा तक बढ़ गया है, लेकिन राज्य के कर राजस्व में उसी अनुपात में बढ़ोतरी नहीं हुई है। ऐसे ही आंकड़े पंजाब से भी मिल रहे हैं, जहां पेंशन की देनदारी का बिल 7 गुणा तक बढ़ चुका है। हालांकि कर राजस्व में यहां भी इसी हिसाब से बढ़ोतरी नहीं हुई है।

 दरअसल, पुरानी पेंशन योजना को लागू करने वाली राज्य सरकारों को यह साफ तौर पर बताना चाहिए कि इस योजना के लागू करने से उन्हें फायदा हो रहा है या नुकसान। पुरानी पेंशन योजना को लागू रखे रहने का औचित्य सवालों में रहेगा। समय के साथ सरकारी कर्मचारियों की संख्या भी बढ़ रही है, उनकी सेवानिवृत्ति पर पेंशन का खर्च उठाना किस प्रकार संभव होगा। पेंशन रिटायरमेंट की उम्र के बाद बड़ा सहारा होती है, लेकिन क्या इसका कोई विकल्प नहीं है। देश में रेवड़ी संस्कृति की धूम बीते कुछ वर्षों से अपनी हदें पार करती जा रही है, मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, सरकारी बसों, ट्रेन में मुफ्त सफर, पेंशन, भरपूर सब्सिडी आदि के जरिये राजनीतिक दल जनता को लुभा कर सत्ता में आ रहे हैं।

हालांकि इन लुभावनी घोषणाओं के लिए फंड कैसे जुटाया जाएगा, इसका जवाब नहीं मिलता। एक सरकार पांच साल के लिए कर्ज लेकर भी सब कुछ करेगी लेकिन अगले पांच साल बाद क्या होगा, इसका जवाब वह यही देती है कि जनता एक बार फिर उसे ही लौटाए। हरियाणा में गठबंधन सरकार को ओपीएस पर त्वरित निर्णय लिए जाने की आवश्यकता है, क्योंकि अगले वर्ष विधानसभा और लोकसभा चुनाव होने हैं, सरकार अगर अपनी जिद पर कायम रही तो यह विपक्ष को मौका देगी। मौजूदा सरकार ने अनेक बेहतर योजनाएं शुरू की हैं, जिन्हें आगे जारी रखने की जरूरत है। लेकिन अगर ओपीएस जैसे मुद्दे पर उसे जनसमर्थन गंवाना पड़ता है तो यह उन योजनाओं का भी अंतिम समय होगा। हरियाणा सरकार को ओपीएस का मध्यमार्ग निकालना चाहिए और कर्मचारियों को विश्वास में लेकर आगे बढ़ना चाहिए। 

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