Shiv Sena

बाला साहेब ठाकरे की सोच वाली शिवसेना ही असली

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Balasaheb Thackeray thinking Shiv Sena is real एक राजनीतिक दल अगर परिवारवाद का शिकार होगा तो उसकी ऐसी ही हालत होगी, जैसी शिवसेना की हो चुकी है। बाला साहेब ठाकरे ने जिस विजन के साथ इस राजनीतिक दल की स्थापना की थी, वह समय के साथ तिरोहित होता गया। यह सवाल हाल के वर्षों में पुरजोर तरीके से पूछा जा रहा है कि अगर बाला साहेब ठाकरे आज जीवित होते तो क्या वे शिवसेना को कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों के साथ गठबंधन करते देख सकते थे? इसका जवाब हर हालत में न ही होना था।

हालांकि उनकी विरासत को संभालने का दावा करने वाले उद्धव ठाकरे ने न पार्टी की विचारधारा का पालन किया और न ही अपने पिता की इच्छाओं का। उन्होंने पार्टी में उन लोगों की सलाह पर चलना ज्यादा जरूरी समझा, जोकि शिवसेना को अपनी बपौती समझ बैठे थे। अब चुनाव आयोग ने शिवसेना का असली दावेदार मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट को ठहराकर यह साबित कर दिया कि जो बाला साहेब ठाकरे की मूल विचारधारा को आगे बढ़ा रहा है वही उसका हकदार है।

साल 2019 में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ने वाली भाजपा-शिवसेना के बीच तकरार का मूल वह स्वार्थ था जोकि शिवसेना Shiv Sena  की मूल विचारधारा को दिशाहीन कर गया। बेशक, सीटों का बंटवारा एक मसला था, जिसे दोनों पार्टियां मिलकर सुलझा सकती थी, लेकिन शिवसेना के नेतृत्व को भाजपा से अलग होने की सीख देने वालों को नेतृत्व ने गले लगा लिया। पार्टी में गुटबाजी अपने चरम पर पहुंची और उन कार्यकर्ताओं को उनका उचित स्थान नहीं मिला जोकि इसके हकदार थे।

बाला साहेब ठाकरे Balasaheb Thackeray के वक्त से जो पार्टी को अपना खून-पसीना दे रहे थे, उनकी अनदेखी करके तत्कालीन शिवसेना नेतृत्व ने कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से गलबहियां डाल लीं, जोकि हमेशा से शिवसेना को उसके मूल स्वरूप से बाहर करने की चाहत रखे हुए थे। शिवसेना को हिंदू अस्मिता और उसके सरोकारों के लिए जाना जाता है, पूरे देश में उसकी यही छवि प्रचलित है। लेकिन उद्धव ठाकरे ने इस छवि को धूमिल करते हुए जब कांग्रेस और अन्य दलों के समर्थन से सरकार बनाई तो यह महाराष्ट्र की जनता को भी रास नहीं आया। यहीं से पार्टी में शिंदे गुट ने अलगाव का नारा बुलंद कर दिया।

बेशक, शिवसेना को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे Chief Minister Eknath Shinde गुट को सौंपकर चुनाव आयोग ने अपनी भूमिका का निर्वाह कर लिया है लेकिन यह मामला अभी इतना जल्दी हल होने वाला नहीं है। उद्धव ठाकरे गुट ने इसे लोकतंत्र की हत्या करार दिया है, वहीं इसे पहले से तय फैसला करार दिया है। उनका यह भी कहना है कि वे जनता के दरबार में नया चिन्ह लेकर जाएंगे और नई शिवसेना खड़ी करेंगे।

हालांकि चुनाव आयोग का कहना है कि उसने पूर्व में एआईएडीएमके, समाजवादी पार्टी, जनता दल यू और केरल कांग्रेस से जुड़े विवादों को भी आधार रखते हुए शिवसेना के संबंध में निर्णय लिया है। चुनाव आयोग ने अपने फैसले को विधानसभा और लोकसभा में संबंधित गुट को हासिल बहुमत को भी आधार बनाया है। शिंदे गुट की इस समय जहां राज्य में गठबंधन सरकार चल रही है वहीं लोकसभा-राज्यसभा में उसके समर्थक सांसद अधिक हैं।

गौरतलब है कि उद्धव गुट ने चुनाव आयोग की शिवसेना पर हक को लेकर सुनवाई पर रोक लगाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाया था, लेकिन न्यायालय ने आयोग को अपना काम करते रहने को कहा था। अब शिवसेना बनाम शिंदे गुट के मामले पर 21 फरवरी तक सर्वोच्च न्यायालय अपने फैसले को टाल चुका है। अगर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला भी शिंदे गुट के पक्ष में आता है तो यह मुख्यमंत्री शिंदे और उनके समर्थकों की बड़ी जीत होगी। हालांकि इसके साथ ही उन पर शिवसेना को लेकर जिम्मेदारी और बढ़ जाएगी। राज्य में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं।

यह समय राज्य की जनता के लिए काफी ऊहापोह भरा रहा है। भाजपा ने भी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के विधायकों को तोडक़र अपनी सरकार बनाने का विफल प्रयास किया था, इसके बाद शिवसेना के अंदर विद्रोह हुआ और एकनाथ शिंदे अपने समर्थक विधायकों के साथ गुजरात होते हुए आसाम पहुंचे। जब बात बहुमत साबित करने की आई तो उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया। इसके बाद का घटनाक्रम शिंदे गुट के लिए संजीवनी ले आया। इस घटनाक्रम ने यह भी साबित कर दिया है कि परिवारवाद के नाम पर पार्टी नहीं चलाई जा सकती। लोकतंत्र की बात करने वाले परिवारवादी दलों को अपने अंदर भी लोकतंत्र लाना होगा, जहां चुनाव हों और सभी को आगे बढ़ने का अवसर भी मिले। 

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