CM Yogi statement is correct

Editorial: सीएम योगी का बयान उचित, यह जिद नहीं, जमीर का विषय

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CM Yogi statement is correct

CM Yogi statement is correct उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह बयान राजनीतिक रूप से बेहद अहम है कि ज्ञानवापी को अगर मस्जिद कहेंगे तो विवाद होगा ही। साथ ही उनका यह सवाल भी गंभीर है कि अगर ज्ञानवापी मस्जिद है तो फिर वहां त्रिशूल और सनातन संस्कृति के दूसरे चिन्ह क्या कर कर रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जो कहा है, वह नई बात नहीं है। यह मामला अदालत में चल रहा है और हिंदू एवं मुस्लिम पक्ष के लोग अपने-अपने दावे पेश कर रहे हैं।

हालांकि अभी तक किसी भी राजनीतिक ने इस स्तर पर आकर ऐसी बात नहीं कही थी, जिसे किसी एक पक्ष से संबंधित समझा जाए। लेकिन अब मुख्यमंत्री ने स्वयं इस बयान के जरिये यह बता दिया है कि वाराणसी और प्रदेश एवं देश की बहुसंख्यक क्या चाहती है। क्या इस बात में सच्चाई नहीं है कि जब ज्ञानवापी की दीवारें चिल्ला-चिल्ला कर अपनी वास्तविकता बता रही हैं,तब भी यह मामला अदालतों के चक्कर काट रहा है और अदालतें हिंदू पक्ष से यह साबित करने को कह रही हैं कि यहां मंदिर था। पूरे देश में क्या कोई ऐसी जगह है, जहां इसका विवाद होकि यहां पहले मस्जिद थी, लेकिन अब यहां एक मंदिर है। लेकिन इसके तमाम उदाहरण हैं कि पहले कभी संबंधित जगह पर एक मंदिर था, लेकिन अब वहां पर एक मस्जिद है।    

भारत में मंदिर और मस्जिद के बीच का विवाद सदियों पुराना है। मुगलों ने इस देश पर हमले के साथ यहां अपार धन-दौलत को लूटा लेकिन वे इस देश की मूल संस्कृति को भी लूट ले गए। अगर मुगल सिर्फ यहां आक्रांता बन कर आए होते तो भी इतना नुकसान  नहीं हुआ तो, लेकिन मुस्लिम हमलावरों ने देश की प्राचीन धरोहरों को नुकसान पहुंचाने के साथ ही हिंदू, सिख और दूसरे धर्मों को क्षति पहुंचाने के मकसद से मंदिरों, गुरुद्वारों को जो आघात पहुंचाया, उसकी टीस आज भी रह-रहकर सामने आ रही है।

अयोध्या में श्रीराम मंदिर एवं वाराणसी में ज्ञानवापी समेत अन्य विवादित जगहों का सच यही है। तब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की यह अपील कि उस समय अगर ऐतिहासिक गलती हुई है तो उसके समाधान के लिए मुस्लिम समाज को आगे आना चाहिए, उस खाई को भरने की कोशिश है जोकि इन समाजों के बीच सदियों से कायम है। बेशक, मुस्लिम समाज के लिए यह स्वीकार कर पाना बेहद मुश्किल है कि भारत पर आक्रमण के लिए आए मुगलों ने ऐसी गलतियां की हैं, क्योंकि अगर यह सच स्वीकार कर लिया जाए तो फिर तमाम ऐसे विवाद पैदा ही नहीं होते। वास्तव में क्या अदालतें इस तरह के विवादों के समाधान को सक्षम हैं, क्योंकि उनका कार्य यही है कि जब उनके सम्मुख ऐसे मामले आएंगे तो वे विचार करेंगी। लेकिन सरकार के पास और राजनीतिकों के पास ऐसे भरपूर अवसर होते हैं, जब वे समाज में एकराय और सहमति कायम कर सकते हैं। अब योगी आदित्यनाथ के इन विचारों से कितने लोग सहमत होंगे, यह देखना है लेकिन उनका यह कहना संशयपूर्ण नहीं होना चाहिए कि सरकार इस मामले का समाधान चाहती है।

अदालत के समक्ष इस प्रकार की भावुक अपील बेशक न चलें लेकिन इन सवालों पर क्यों नहीं गौर किया जाता कि आखिर वहां शिवलिंग क्यों है, वहां नंदी देव क्या कर रहे हैं और उन दीवारों पर स्वस्तिक, त्रिशूल, फूल-पत्ती क्यों और किसने उकेरे हैं। क्या इसे सहज नहीं समझा जा सकता कि जिसने मंदिर को ढहाया, वह उन दीवारों पर से सनातन संस्कृति के इन प्रतीकों को खुरचना भूल गया या फिर अपनी ताकत के नशे में उसने जानबूझ कर इन प्रतीकों को छोड़ दिया ताकि इसकी गवाही मिलती रहे कि यहां कभी मंदिर था, जिसे बाद में ढहा कर मस्जिद बना दी गई। मुस्लिम समाज के लोग क्या उन हमलावरों से अपना सीधा नाता बता पाएंगे, क्या एक धर्म से होने का मतलब यह है कि अगर इतिहास में किसी ने गलती की थी तो आज के आधुनिक दौर में भी उस गलती को मान्यता देते हुए हिंदू समाज की भावनाओं को कुचला जाए।

वास्तव में ज्ञानवापी का सच उजागर होना आवश्यक है, यह हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक सौहार्द का भी विषय है। प्रश्न यह है कि आखिर किसी को उसका हक क्यों नहीं मिले। अगर सदियों से एक मंदिर परिसर अगर दूसरे धर्म के धर्मावलंबियों के नियंत्रण में है तो उसे क्यों न आजादी मिले। बेशक, यह सब कुछ कानून के दायरे में होना चाहिए। योगी आदित्यनाथ के बयानों के राजनीतिक निहितार्थ भी निकाले जाएंगे, यह स्वाभाविक है। क्योंकि अगले वर्ष लोकसभा चुनाव हैं और यह सीजन चुनाव का है। हालांकि इन बयानों को राजनीतिक नजर से देखने की बजाय क्यों न सामाजिक और आध्यात्मिक नजर से देखा जाए। अगर इस मसले का समाधान होता है तो यह दोनों धर्मों के बीच तनाव को खत्म करेगा वहीं देश अपनी एक और उस समस्या से निजात पाएगा, जोकि उसके विकास में रोड़ा बन रही है। 

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