Resolution of Manipur issue is necessary

Editorial: मणिपुर मुद्दे का समाधान जरूरी, जनता पर न हो राजनीति

Edit1

Resolution of Manipur issue is necessary

Resolution of Manipur issue is necessary मणिपुर में जातीय हिंसा से खराब हुए हालात दिन प्रति दिन जहां और ज्यादा खराब होते जा रहे हैं, वहीं चिंताजनक यह है कि इसके समाधान की बजाय इस मामले को लेकर पूरे देश में राजनीति जारी है। दिल्ली में विपक्ष काले वस्त्र धारण कर संसद में आ रहा है वहीं केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर चुका है। बेशक, राजनीतिक वहीं करेंगे, जोकि उनके लिए नियत है। विपक्ष के पास ऐसे मुद्दे राजनीतिक हथियार होते हैं, वहीं सत्ता पक्ष के पास अपने बचाव में बयानों की धार। मणिपुर में तो यह स्थिति है, लेकिन पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों पर भी इसका प्रभाव पड़ना शुरू हो चुका है।

मिजोरम में मैती समुदाय के 600 से ज्यादा लोगों ने अपने घरों पर ताले लगाकर वहां से निकलना ही सुरक्षित समझा है। यहां पर एक पूर्व उग्रवादी संगठन ने धमकी दी थी। इस बीच मणिपुर में महिलाओं को निर्वस्त्र करने के मामले की सीबीआई से जांच कराई जा रही है। राज्य सरकार ने केस की सुनवाई राज्य से बाहर पड़ोसी राज्य असम में करने की मांग की है। इस बीच संबंधित आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है।

यह आवश्यक था कि सीबीआई जैसी केंद्रीय जांच एजेंसी इस मामले की तह तक पहुंचे। यह अपने आप में हृदय विदारक घटना थी, जब भीड़ ने दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाया और किन्हीं अन्य महिलाओं से दुष्कर्म किया गया। इस दौरान उन महिलाओं को बचाने आए रिश्तेदारों को गोली मार दी गई। देश में यह अचंभित कर देने वाली प्रतिक्रिया है कि जब महिलाओं से दुष्कर्म हुआ, उसे सामान्य तरीके से लिया गया, जब लोगों को जान से मार दिया गया, तब उस पर मामूली प्रतिक्रिया दी गई।

घर फूंक दिए गए और लोगों को अपने आशियानों से भागने को मजबूर कर दिया गया, तब भी देश गुस्से से नहीं उबला। लेकिन जब महिलाओं को निर्वस्त्र कर उन्हें भीड़ के द्वारा घुमाने का वीडियो सामने आया तो पूरे देश में कोलाहल मच गया। यहां पर किसी भी घटना को कमतर ठहराया जाना मंतव्य नहीं है, प्रत्येक घटना भीषण है, लेकिन राजनीतिक रूप से महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाने के बाद जिस प्रकार से बवाल मचाया जा रहा है, वह इस तरफ भी इंगित करता है कि अभी तक घटी घटनाएं सामान्य थी, लेकिन इस घटना के सामने आने के बाद मामला पूरी तरह से घोर संगीन हो गया। अब सामने आ रहा है कि राज्य में पांच गंभीर मामलों की जांच पहले से सीबीआई के पास है, लेकिन अब इस नए मामले की जांच भी एजेंसी को सौंप दी गई है। वहीं तीन केस की जांच एनआईए भी कर रहा है। राज्य में अब तक 150 लोगों की मौत हो चुकी है, हो सकता है यह सरकारी आंकड़ा हो। क्योंकि कितने ही लोग गायब हैं, जिनके संबंध में जानकारी नहीं मिल रही।  

देश में उन क्षणों का इंतजार किया जाता है, जब पानी सिर के ऊपर से गुजर जाए। बीते दिनों में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी मणिपुर दौरे पर रहे हैं, उन्होंने सभी पक्षों से चर्चा करके मामले का समाधान करने की चेष्टा की थी, लेकिन यह संभव नहीं हो सका। क्या मौजूदा समय में केंद्र से कोई मंत्री मणिपुर के दौरे पर जा सकता है। ऐसा होने में पर्याप्त संशय है। जरूरी यह भी है कि ऐसे हालात पैदा होने से बहुत पहले उनके समाधान की कोशिश शुरू कर दी जाती।

यह सामने आ रहा है कि प्रदेश में राजनीतिक स्तर पर इसकी कोशिश नहीं समझी गई कि इस मामले का निपटारा हो, यहां किसी एक पक्ष का समर्थन करने के भी आरोप हैं। अब सामने आ रहा है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय मैती और कुकी दोनों समूहों के संपर्क में है और राज्य में शांति और सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए बातचीत भी सकारात्मक दौर में है। यह भी बताया गया है कि दोनों समूहों से अलग-अलग छह दौर की बातचीत हो चुकी है, हालात भी सुधरते हुए बताए गए हैं। इस समय राज्य में 35 हजार से अधिक सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया है, सरकार ने मैती और कुकी आबादी वाले क्षेत्रों में बफर जोन बनाया है। राज्य में 50 हजार से अधिक लोगों को सुरक्षित आबादी के बीच पहुंचा दिया गया है।

वास्तव में मणिपुर में जारी हिंसा मौजूदा समय में सबसे बुरी घटना है। आजकल जम्मू-कश्मीर में हालात सामान्य हो रहे हैं, वहीं देश के अन्य राज्यों में भी शांतिकाल चल रहा है। लेकिन मणिपुर में जातीय हिंसा ने पूरे देश को आंदोलित किया हुआ है। जिस संसद में चर्चा और विमर्श से विधेयकों को पारित करने का काम होना चाहिए, वहां सत्तापक्ष और विपक्ष में टकराव हो रहा है। विपक्ष इस मामले को जिंदा बनाए रखना चाहता है, क्योंकि इसी के जरिये उसकी एकता का प्रदर्शन भी हो रहा है और उसे अपने गठबंधन के लिए खाद-पानी भी मिल रहा है। लेकिन वास्तव में मणिपुर की समस्या का समाधान जरूरी है, लोगों के जीवन पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।  

यह भी पढ़ें:

Editorial: चंडीगढ़ में पार्किंग फीस को लेकर बाहरियों पर यह सितम क्यों

यह भी पढ़ें:

Editorial: ज्ञानवापी का सच सामने आना जरूरी, संशय के हटें बादल