parking fee in chandigarh

Editorial: चंडीगढ़ में पार्किंग फीस को लेकर बाहरियों पर यह सितम क्यों

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parking fee in chandigarh चंडीगढ़ को बसाते समय इसके जनक ली कार्बुजिए ने नहीं सोचा होगा कि एक दिन शहर में पार्किंग के पैसे वसूले जाएंगे और फिर उसको लेकर विवाद होगा। बेशक, जिस समय चंडीगढ़ बसा तब इसकी सडक़ों पर साइकिलों का रैली ही चलता था, गाडिय़ां गिनी-चुनी होती थी। लेकिन समय के साथ शहर अपना दायरा बढ़ाता गया है और आज इसकी आबादी अनियंत्रित हो रही है। सुबह-दोपहर-शाम शहर की सीमाओं से इतने वाहन अंदर और जा रहे होते हैं कि लगता है, गाडिय़ां चींटियों की गति से सडक़ पर चल रही होती हैं। गाडिय़ों की तादाद के बीच अब नगर निगम की ओर से बाहरी नंबर की गाडिय़ों की पार्किंग फीस दोगुनी करने का मुद्दा बेहद ज्वलंत हो गया है। देशभर में चंडीगढ़ एकमात्र ऐसा शहर होगा जहां अब यह प्रावधान किया जा रहा है कि दूसरे राज्यों के वाहनों से दोगुणा पार्किंग फीस वसूली जाएगी।

चंडीगढ़ हरियाणा और पंजाब की राजधानी है, वहीं इस शहर का वास्ता हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड समेत देश के दूसरे राज्यों से सीधे है। चंडीगढ़ में प्रतिवर्ष लाखों की तादाद में सैलानी घूमने के लिए आते हैं, वहीं यहां अंतर्राष्ट्रीय स्तर की चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं, जिनके लिए रोजाना बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों से लोग आते हैं। अगर दूसरे राज्यों के वाहनों से इस प्रकार दोगुनी फीस वसूली जाएगी तो यह इन राज्यों के लोगों से नाइंसाफी नहीं होगी।

चंडीगढ़ नगर निगम में बीते दिनों इस प्रस्ताव को पारित किया गया है कि बाहरी राज्यों के वाहनों से दोगुनी पार्किंग फीस वसूली जाए। यह प्रस्ताव नगर निगम में ही विपक्षी पार्षदों के विरोध की भेंट चढ़ चुका है, वहीं अब हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश के लोगों की ओर से भी इसका प्रबल विरोध किया जा रहा है, जोकि स्वाभाविक है। इस प्रस्ताव के मुताबिक चंडीगढ़ में यहीं के नंबर की गाड़ी के लिए बढ़ी हुई पार्किंग फीस देनी होगी, लेकिन बाहरी राज्य यानी पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश व दूसरे राज्य के वाहनों के लिए यह फीस डबल होगी। यानी इन राज्यों से जो भी वाहन आएगा, वह चाहे हरियाणा सिविल सचिवालय में जाए, पंजाब सिविल सचिवालय में जाए, दोनों राज्यों की विधानसभाओं से संबंधित हो या फिर पीजीआई, जीएमसीएच आदि चिकित्सा संस्थानों या फिर शिक्षण संस्थानों में जाए, उसे डबल फीस ही देनी होगी।

चंडीगढ़ नगर निगम का अपने राजस्व में बढ़ोतरी का यह फैसला अचंभित करने वाला और शहर को दूसरे राज्यों से कट कर देने वाला प्रतीत हो रहा है। इसके जरिये कुछ ऐसा घटित होता नजर आ रहा है कि जैसे यह कहा जा रहा है कि जो भी बाहर से आएगा, उसे यहां ठहरने की फीस अदा करनी होगी। होना तो यह चाहिए कि पार्किंग फीस अगर बढ़ती है तो यह सभी के लिए सामान्य हो, यानी वह वाहन चंडीगढ़ का हो या फिर इसके बाहर का, सभी के लिए एकसमान पार्किंग फीस मान्य हो।

नगर निगम में इस समय भाजपा का काबिज है, लेकिन उसके इस फैसले से हरियाणा और पंजाब की राजनीति में नई सरगर्मी शुरू हो चुकी है। पंजाब कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल ने तो इसे तुगलकी फैसला करार दिया है। पंजाब के नेताओं का यह तर्क सही है कि चंडीगढ़ सिर्फ यूटी नहीं है, सभी सरकारी कार्यालय चंडीगढ़ में हैं, जहां पंजाब से रोजाना हजारों लोग अपने कार्यों के लिए आते हैं। इसी प्रकार हरियाणा विधानसभा चंडीगढ़ में है, और हाईकोर्ट में हरियाणा, पंजाब से रोजाना बड़ी तादाद में लोग यहां आते हैं। अब चंडीगढ़ के इन राज्यों की राजधानी होने और हाईकोर्ट के यहां होने की वजह से उनके कार्य इसी शहर में आकर पूरे होते हैं, तब चंडीगढ़ नगर निगम अगर शहर को सिर्फ अपने नजरिये से देख रहा है तो यह उसके सीमित नजरिये को भी प्रदर्शित करता है। चंडीगढ़ की पहचान यहां दो राज्यों की राजधानी होना, दो राज्यों का हाईकोर्ट होना, पंजाब यूनिवर्सिटी, पेक जैसे प्रतिष्ठित संस्थान होना और पीजीआई जैसे श्रेष्ठतम चिकित्सा संस्थान होने से है। अगर दूसरे राज्यों से कोई भी वाहन यहां आता है और बाहरी होने की सजा वह डबल पार्किंग फीस अदा करके भुगतता है तो यह चंडीगढ़ की छवि को भारी नुकसान पहुंचाएगा। बेशक, शहर में विकास कार्यों के लिए नगर निगम को अपने राजस्व को बढ़ाने के लिए जत्न करने का अधिकार है। ऐसे भी विचार हैं, जिनमें कहा जा रहा है कि ट्राइसिटी के लोगों को कुछ तो वरीयता मिलनी चाहिए तो यह वरियता यहां रहते हुए अपने आप मिल रही है।

चंडीगढ़ में जरूरत वाहनों की भीड़ भाड़ को कम करने की है। बेशक, पार्किंग फीस बढ़े लेकिन यह भी तो सुनिश्चित हो कि पार्किंग में जगह मिल ही जाए। क्या यह संभव हो पाएगा। मौजूदा परिस्थितियों में यह संभव नहीं दिखता। नगर निगम को अपने विवादित फैसलों पर विचार करना चाहिए, निकाय जनता को सहुलियत के लिए हैं, परेशानी के लिए नहीं। 

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