चंडीगढ़ में उलझा मेयर कार्यकाल का गणित; हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद अगला मेयर केवल 11 महीने का, ऐसा क्यों? जानिए कारण

Chandigarh Mayor Tenure Controversy Election 2026 Breaking News

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Chandigarh Mayor Election: चंडीगढ़ नगर निगम के मेयर के कार्यकाल को लेकर एक बार फिर संवैधानिक और प्रशासनिक पेंच सामने आ गया है। वर्ष 1996 में गठित चंडीगढ़ नगर निगम के म्यूनिसिपल एक्ट के अनुसार पार्षदों का कार्यकाल 1 जनवरी से 31 दिसंबर तक निर्धारित है, लेकिन मेयर के चुनाव की बदलती तिथियों ने पूरे कार्यकाल की व्यवस्था को उलझाकर रख दिया है।

कांग्रेस शासनकाल के दौरान मेयर का चुनाव परंपरागत रूप से 23 या 24 दिसंबर को कर लिया जाता था, जबकि मेयर का कार्यकाल 1 जनवरी से ही प्रभावी माना जाता था। इसके बाद समय के साथ मेयर चुनाव की तारीखों में बदलाव होता गया। पहले इसे 8 जनवरी किया गया, फिर 15 दिसंबर और 18 दिसंबर तक लाया गया, लेकिन अंतत: प्रशासन ने मेयर चुनाव की तिथि 30 जनवरी तय कर दी।

इस बदलाव का सबसे बड़ा असर यह हुआ कि अब चंडीगढ़ का अगला मेयर पूरे एक वर्ष के बजाय महज 11 महीने के लिए ही पद पर रहेगा। चूंकि नगर निगम के सभी निर्वाचित पार्षदों का पांच वर्षीय कार्यकाल 31 दिसंबर 2026 को समाप्त हो रहा है, इसलिए 30 जनवरी 2025 को चुना जाने वाला मेयर 31 दिसंबर 2025 तक ही पद पर रह सकेगा।

मेयर के कार्यकाल को लेकर यह मुद्दा पहले भी न्यायिक जांच के दायरे में आ चुका है। पूर्व मेयर कुलदीप कुमार द्वारा दायर याचिका पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट टिप्पणी करते हुए कहा था कि मेयर का कार्यकाल एक वर्ष का होना चाहिए। अदालत ने कुलदीप कुमार को राहत भी दी थी, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में हाईकोर्ट के आदेशों के बावजूद तकनीकी रूप से अगला मेयर एक साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएगा। इस पूरे घटनाक्रम को लेकर राजनीतिक हलकों में भी तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है।

चंडीगढ़ से सांसद मनीष तिवारी समेत समूचा विपक्ष लगातार मांग कर रहा है कि चंडीगढ़ में भी पंजाब के नगर निगमों की तर्ज पर मेयर का कार्यकाल पांच साल का किया जाना चाहिए। विपक्ष का आरोप है कि बार-बार तारीखों में बदलाव कर मेयर के पद को कमजोर किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर प्रशासन का कहना है कि वह हाईकोर्ट के आदेशों से बंधा हुआ है और अपने स्तर पर किसी भी प्रकार का बदलाव करने में असमर्थ है।

हालांकि भाजपा से जुड़े पार्षदों और नेताओं का तर्क है कि यदि सत्ताधारी दल चाहे तो म्यूनिसिपल एक्ट में संशोधन कर इस व्यवस्था में बदलाव किया जा सकता है. गौरतलब है कि वर्ष 2024 में अनिल मसीह के कथित जाली वोट कांड के बाद जब आम आदमी पार्टी के नेता कुलदीप कुमार मेयर चुने गए थे, तब 1 जनवरी से 18 जनवरी तक मेयर चुनाव को लेकर प्रशासनिक व्यवस्था पूरी तरह गड़बड़ा गई थी। अब एक बार फिर मेयर के कार्यकाल को लेकर उठे सवालों ने चंडीगढ़ की राजनीति और प्रशासन दोनों को कटघरे में खड़ा कर दिया है।

मेयर चुनाव को लेकर कानून क्या कहता है?

नगर निगम चंडीगढ़ में मेयर चुनाव की तिथि को लेकर समय-समय पर उठने वाले विवादों के बीच यह स्पष्ट हो गया है कि मेयर चुनाव की प्रक्रिया किसी तय कैलेंडर तारीख से नहीं, बल्कि नगर निगम अधिनियम के प्रावधानों से संचालित होती है। नगर निगम से जुड़े जानकारों के अनुसार, चंडीगढ़ में लागू पंजाब म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन एक्ट, 1976 ही मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव की पूरी रूपरेखा तय करता है।

अधिनियम के मुताबिक, मेयर का कार्यकाल एक वर्ष का होता है, लेकिन यह कार्यकाल 1 जनवरी से 31 दिसंबर तक ही होगा, ऐसा कहीं भी कानून में नहीं लिखा है। मेयर का कार्यकाल उस दिन से शुरू होता है जिस दिन उसका चुनाव होता है। यानी मेयर का पदभार ग्रहण करना चुनाव की तारीख से जुड़ा है, न कि नए साल के पहले दिन से। नगर निगम अधिनियम में यह भी स्पष्ट किया गया है कि मेयर का चुनाव नगर निगम की पहली बैठक में या फिर मौजूदा मेयर का कार्यकाल समाप्त होने से पहले कराया जाना जरूरी है। इसके अलावा, कानून में 23, 24 दिसंबर या 1 जनवरी जैसी किसी भी विशेष तारीख का कोई उल्लेख नहीं है।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस शासनकाल में 23 या 24 दिसंबर को मेयर चुनाव  कराकर 1 जनवरी से कार्यकाल शुरू करने की जो परंपरा बनी थी, वह केवल प्रशासनिक और राजनीतिक प्रचलन थी, कोई कानूनी बाध्यता नहीं। समय के साथ यह परंपरा बदली और मेयर चुनाव की तारीख 1 जनवरी को भी रखी जाने लगी। चंडीगढ़ में नगर निगम की बैठक बुलाने और मेयर चुनाव की तारीख तय करने का अधिकार चंडीगढ़ प्रशासन/प्रशासक के पास है। यह अधिकार भी नगर निगम अधिनियम और उससे जुड़े नियमों के तहत ही आता है।

पिछले वर्ष मेयर चुनाव को लेकर उपजा विवाद, जिसमें चुनाव की घोषित तिथि 18 जनवरी से बदलकर 30 दिसंबर कर दी गई थी, इसी प्रशासनिक अधिकार के तहत किया गया कदम था। हालांकि, उस मामले में विवाद की असली वजह चुनाव प्रक्रिया के दौरान सदन में हुई कार्यवाही और निष्पक्षता को लेकर उठे सवाल थे, न कि केवल चुनाव की तारीख। कानूनी विशेषज्ञों का साफ कहना है कि मेयर चुनाव की तारीख को लेकर कोई तय कानूनी दिन नहीं है। कानून केवल यह सुनिश्चित करता है कि नगर निगम में नेतृत्व की निरंतरता बनी रहे और मेयर का चुनाव समय पर हो।

इस पर चंडीगढ़ के नेताओं का क्या कहना?

भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व सांसद सत्यपाल जैन: न तो म्यूनिसिपल कारपोरेशन की टर्म बढ़ाई जा सकती है। न ही कोई अन्य बदलाव हो सकता है। म्यूनिसिपल एक्ट में देखकर ही इस पर कुछ कहा जा सकता है। दूसरा आप वालों के हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट जाने व उसके बाद आए आदेश के बाद ही एक साल के मेयर की व्यवस्था तय हुई। इसका हल एक्ट में देखकर ही तय हो पायेगा।

भाजपा के पूर्व अध्यक्ष व पूर्व मेयर अरुण सूद: मेयर का चुनाव 1 जनवरी को अमूमन होता रहा है। म्यूनिसिपल एक्ट के प्रोविजन के अनुसार जनरल हाऊस की पहली मीटिंग के दौरान मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर व डिप्टी मेयर के चुनाव का फैसला लेना होता है। कभी कांग्रेस के कार्यकाल के दौरान मेयर के चुनाव की 23 या 24 दिसंबर को कराये जाने की परंपरा थी। 1 जनवरी से मेयर अपना कार्यकाल संभाल लेता था। यह व्यवस्था 2001 तक चली। वर्ष 2002 में 1 जनवरी को मेयर व दो अन्य पदों के लिये चुनाव की पहल हुई। वर्ष 2015  तक यही व्यवस्था चलती रही।

उन्होंने कहा कि फिर 2016 में जब वह मेयर बने तो पार्षदों की ओर से दलील दी गई कि चूंकि नये साल पर पार्षद घूमने के लिये निकल जाते हैं लिहाजा 1 जनवरी से चुनाव की तारीख बदल कर 8 जनवरी कर दी जाए। अरुण सूद के अनुसार इससे पहले चूंकि कांग्रेस की मेजोरटी रहती थी लिहाजा भाजपा को हार भी झेलनी पड़ती थी और वह भी 1 जनवरी के दिन। 2016 के बाद समीकरण भी बदल गये और भाजपा लगातार जीत भी दर्ज करने लगी। उनकी टर्म 31 दिसंबर को समाप्त हो गई। वर्ष 2017 में सात दिन कोई मेयर ही नहीं रहा। इसके बाद बीते साल डीसी ने 8 जनवरी से 18 जनवरी की तारीख मेयर व अन्य दो पदों के चुनाव के लिये तय कर दी।

उन्होंने कहा कि 18 दिसंबर को चुनाव अधिकारी बनाये गये अनिल मसीह बीमार पड़ गये जिससे तारीख 30 जनवरी कर दी गई। फिर तय हुआ कि मेयर एक साल की टर्म के लिये होगा लिहाजा 30 जनवरी से पहले तो अब मेयर चुना ही नहीं जा सकता। अब अगर तकनीकी तौर पर देखें तो पार्षदों का कार्यकाल 2026 में पूरे पांच साल की टर्म पूरा होने के बाद 31 दिसंबर को पूरा हो जाएगा। यानि आखिरी मेयर महज 11 माह के लिये होगा। यह तो अब आगे के लिये प्रशासन को निर्णय लेना है कि हर मेयर को 5 साल का कार्यकाल मिले क्योंकि चुनाव तो 31 दिसंबर तक हो जाएंगे।

मेयर हरप्रीत कौर बबला: हाईकोर्ट ने मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर व डिप्टी मेयर का कार्यकाल एक साल के लिये बीते वर्ष आदेश दिया था। उसी के तहत 30 जनवरी को उनका कार्यकाल समाप्त होगा। अब अगले मेयर का कार्यकाल 11 माह रहेगा क्योंकि 31 दिसंबर को पार्षदों की पांच साल की टर्म ही समाप्त हो जाएगी. प्रशासन खुद निर्णय लेगा कि क्या व्यवस्था करनी है? अगर इस दृष्टि से देखा जाए तो चुने पार्षदों के तीसरे वर्ष के दौरान ही सांसद का चुनाव आता है। उस दौरान करीब तीन माह के लिये मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट लागू रहता है। उस दौरान बना मेयर तो तीन माह काम ही नहीं कर पाता।

पूर्व पार्षद देवेंद्र बबला: मेयर चुनाव आगे कराने को लेकर आम आदमी पार्टी वाले बीते वर्ष हाईकोर्ट गये थे। कुलदीप कुमार मेयर बने तो व्यवस्था बनी की एक साल के लिये मेयर होगा। उनका कार्यकाल 30 जनवरी तक रहा लिहाजा उनकी पत्नी हरप्रीत कौर बबला भी 30 जनवरी तक एक साल के लिये मेयर रहेंगी। प्रशासन हाईकोर्ट के उसी आदेश को फॉलो कर रहा है। प्रशासन से मेयर टेन्योर में हो रही गड़बड़ को लेकर  बात की जा सकती है। अब इसमें क्या करें। तकनीकी तौर पर कई चीजें गलत हो रही हैं।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व सांसद पवन बंसल: भाजपा के शासनकाल के दौरान जो भी परंपरा डली वह गलत है। कांग्रेस के समय में 23-24 दिसंबर को मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर व डिप्टी मेयर का चुनाव हो जाता था। पार्षदों व मेयर के चुनाव में एकरूपता थी। 1 जनवरी से वह पदभार संभाल लेते थे। इसके बाद व्यवस्था बदल कर 8 जनवरी को चुनाव की कर दी गई। समय के साथ इसमें बदलाव होते चले गये। अब सवाल यह है कि जब पार्षद ही नहीं होंगे तो क्या मेयर होगा।

उन्होंने कहा कि जो भी मेयर चुना जाएगा उसका एक साल का कार्यकाल 30 जनवरी को पूरा होगा। पार्षदों की पांच साल की टर्म 31 दिसंबर को समाप्त हो जाएगी. अनिल मसीह प्रकरण के बाद इस चुनाव के समय में और गड़बड़ हो गई। अब यह प्रशासन के ऊपर है कि आगे चुने जाने वाले पार्षदों के बाद पहली मीटिंग में मेयर व दो अन्य पदों की चुनाव तारीख दोबारा से बदली जाए?

चंडीगढ़ कांग्रेस अध्यक्ष हरमोहिंदर सिंह लक्की: भाजपा ने मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर व डिप्टी मेयर चुनाव का वक्त बदल कर गलत परंपरा शुरू की। भाजपा की ओर से जानबूझ कर यह देरी की गई। फिर बीते साल अनिल मसीह प्रकरण आ गया। पहले मसीह बीमार हो गया। तारीख बदली गई। फिर जब चुनाव हुआ तो वोट चोरी तमाम दुनिया ने देखी। कोर्ट का हस्तक्षेप हुआ और तारीख 30 जनवरी पहुंच गई। अब जब भाजपा ने मेयर चुनाव आगे खिसकाने में तमाम पैंतरे अपनाकर मसले को पेचिदा बनाया  गया है तो इसका हल भी वही निकालें।

पार्षद दलीप शर्मा: मेयर चुनाव की तारीख हिसाब से तो 1 जनवरी होनी चाहिए लेकिन अब लगता है कि यह नहीं हो सकता। प्रशासन इस पर कोई फैसला ले। आगे मेयर चुनाव की नोटीफिकेशन प्रशासन ने जारी करनी है। चुनाव 20 जनवरी से पहले कराया जाना चाहिये। हाईकोर्ट ने 1 साल कहा था, यह बिलकुल सही है लेकिन अगले मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर व डिप्टी मेयर यानि 2026 में जो चुना जाएगा उसे तो 11 माह का कार्यकाल ही मिलेगा।

रिपोर्ट- साजन शर्मा