ये कैसी कारपोरेशन: सिटको के घपले या घपलों वाला सिटको

ये कैसी कारपोरेशन: सिटको के घपले या घपलों वाला सिटको

CITCO Scams

CITCO Scams

एचडीएफसी बैंक ने ही लगाया सिटको को तीन साल से ज्यादा वक्त तक चूना, दबाये रखी पौने तीन करोड़ से ज्यादा की रकम
सिटको से बैंक रिकार्ड का हुआ मिलान तो सामने आया मामला, तत्कालीन अफसर बैंक पर रहे मेहरबान, किश्तों में वापिस ली रकम
 कारपोरेशन खुद ओवर ड्राफ्टिंग कर चलाती रही अपना काम  

अर्थ प्रकाश/साजन शर्मा: चंडीगढ़, 3 मार्च। CITCO Scams: देश के जाने माने बैंकों में शुमार एचडीएफसी बैंक सेक्टर 17 में स्थित सिटको के पेट्रोल पंप का करीब पौने तीन करोड़ रुपये तीन साल से ज्यादा वक्त तक दबाये बैठा रहा लेकिन तत्कालीन अफसरों ने मामले में कोई कार्रवाई तक नहीं की। नतीजा यह हुआ कि इससे सिटको को कई लाख की चपत लग गई। सिटको के हैड ऑफिस में बैठे कुछ अफसरों ने मामला दबाने की पूरी तैयारी कर रखी थी लेकिन शुक्र है कि एक अन्य घपला नजर में आ गया जिसके बाद इस केस की भी परतें खुल गई। ऐसे ही अफसरों को अब एक्सटेंशन देने का खेल चल रहा है।

    मामला वर्ष 2020 के अंतिम महीनों का है। सिटको के सेक्टर 17 स्थित पेट्रोल पंप पर तैनात एक मुलाजिम कारपोरेशन की ओर से चयनित बैंक में 3.73 लाख रुपये जमा कराने चला गया। इसने बैंक में ठीक इतनी ही रकम जमा कराई लेकिन जो रसीद बैंक की ओर से उसे दी गई, उसमें इस राशि में 3 की जगह 5 कर दिया। यानि सिटको को दी गई रसीद में दिखा दिया कि 5.73 लाख रुपये जमा कर दिये। मुलाजिम ने 2 लाख रुपये यानि खुदबुर्द कर दिये। करीब सात-आठ महीने तक सिटको का एचडीएफसी बैंक के अकाउंट के साथ कोई री-कांसीलेशन (मिलान) नहीं हुआ। एक दिन अचानक यह प्रक्रिया शुरू हुई तो 2 लाख रुपये खुदबुर्द होने का पता चला। सिटको की दी गई पर्ची में फेरबदल करने वाला मुलाजिम पेट्रोल पंप से नौकरी छोडक़र चला गया लेकिन सिटको के अफसर मामले में बिलकुल खामोश हो गए। बैंक और सिटको की इस मिलान प्रक्रिया के दौरान दूसरा घपला सामने आ गया। पता चला कि एचडीएफसी बैंक ने भी सिटको को बीते तीन साल से 2.85 करोड़ रुपये की रकम नहीं दी। यह रकम वो रकम थी जो पेट्रोल पंप पर एचडीएफसी बैंक के लगे स्वाइप मशीनों से एकत्रित होती थी और सीधे बैंक के अकाउंट में जाती थी। बैंक दो साल से भी ज्यादा वक्त तक यह रकम एकत्र करता रहा लेकिन इसे सिटको के अकाउंट में ट्रांसफर नहीं किया गया। अमूमन जो बैंक यह सुविधा देता है, स्वाइप की गई राशि को 24 घंटे के भीतर ही संबंधित अकाउंट में जमा करवा देता है। इस मामले में दो साल से भी ज्यादा वक्त तक सिटको की करीब 2.85 करोड़ रुपये की रकम एचडीएफसी बैंक ने अपने पास दबाये रखी लेकिन पता चलने पर भी बैंक पर कोई कार्रवाई अफसरों की तरफ से नहीं की गई। बैंक को पैसा वापिस करने को जरूर कहा गया। सिटको के मोटे अकाउंट का काम संभाल रहे बैंक ने इस राशि को देने के लिए भी किश्तों में भुगतान करने की अफसरों के साथ मिलकर सुविधा हासिल कर ली। बताया जाता है कि इस रकम को 14 महीनों में किश्तों में दिया गया। बताया जाता है कि कभी 17 लाख, कभी 12 लाख तो कभी 9 लाख रुपये किश्तों में बांटकर दिये गए। 

    अफसरों की नादानी या चालाकी का आलम देखिये, बैंक ने इतनी बड़ी राशि पर दिया जाने वाला ब्याज भी सिटको को नहीं दिया। यहां भी तत्कालीन अफसर पूरी तरह खामोश रहे। इससे भी हैरानी वाली बात यह रही कि मामला पूरी तरह रफा दफा कर दिया गया। न तो बैंक पर ही और न ही सिटको का अकाउंट्स संभाल रहे अफसरों पर कोई कार्रवाई की गई। सिटको की यूनियनों के नुमाइंदे लगातार मामले में ऐतराज उठा रहे हैं। उनका कहना है कि एक तो बैंक को सिटको ने अपना बड़ा अकाउंट दिया, दूसरा बैंक ही कारपोरेशन को चपत लगा गया? क्या ऐसी मिसाल देश में कहीं देखी है कि बैंक को अफसर किश्तों में पैसा जमा कराने की सुविधा दे दें? यूनियन के सदस्यों का कहना है कि जो भी अफसर इस मामले में दोषी हैं उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। उन्हें प्रश्रय नहीं दिया जाना चाहिए। सिटको मैनेजमेंट अब ऐसा ही कुछ कर रही है। लगातार सिटको को नुकसान पहुंचाने वाले अफसरों को रिवार्ड क्यों दिया जा रहा है? यहां बता दें कि वर्ष 2020 और 2021 ऐसा वक्त था जब सिटको ने बैंक से ओवर ड्रॉफ्टिंगकी सुविधा ले रखी थी। यानि सिटको बैंक से ओवर ड्राफ्टिंग की सुविधा लेकर अपने खर्चे चला रहा था हालांकि उसके अपने करीब 2.85 करोड़ रुपये एचडीएफसी बैंक के पास पड़े थे।

    आरटीआई कार्यकर्ता आरके गर्ग के मुताबिक चाहे केंद्रीय स्तर पर चाहे लोकल स्तर पर भ्रष्टाचार समाप्त करने वह पारदर्शिता की केवल बातें हो रही हैं। असल में व्यवस्था पहले से भी खराब होते जा रही है। लोग इस भ्रष्ट व्यवस्था से परेशान हैं। प्रशासन को अगर सही में भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी सक्रियता दिखानी है तो  कुछ करके दिखाना होगा। मामलों को रफा दफा नहीं करना बल्कि ठोस कार्रवाई करनी है।
    सिटको के सीजीएम हरजीत संधू का कहना है कि यह उनके आने से पहले का मामला है। बैंक ने रकम वापस कर दी थी। क्या रकम किस्तों में वापस करने की बैंक को सुविधा दी गई थी, पर उन्होंने सीधा जवाब नहीं दिया। 
2 लाख का घपला करने वाला मुलाजिम भी ऑस्कर सिक्योरिटी एंड फायर सर्विसेज का / The employee who cheated 2 lakhs is also of Oscar Security and Fire Services

जिस मुलाजिम ने 2 लाख रुपये की रकम का फर्जीवाड़ा किया, वह भी ठेकेदार ऑस्कर सिक्योरिटी एंड फायर सर्विसेज की ओर से पेट्रोल पंप पर आउटसोर्सिंग में लगाया गया था। ऑस्कर सिक्योरिटी एंड फायर सर्विसेज वही ठेकेदार है जिसने हाल ही में सिटको को 1 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम का फटका लगा दिया था। इतना ही नहीं अकाउंट्स ब्रांच के मुलाजिमों ने अफसरों के कहने पर इसके अकाउंट में 5.21 लाख रुपये की रकम भी बैंक गारंटी का फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद पहुंचा दी। सिटको की ओर से सीजीएम हरजीत संधू ने बैंक गारंटी फ्रॉड सामने आते ही करोड़ों का चूना लगाने वाले ठेकेदार के खिलाफ सेक्टर 17 के थाने में एफआईआर दर्ज करने को लेकर लैटर लिखा था। मामले में शुक्रवार तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई थी। सेक्टर 17 के एसएचओ का कहना था कि फिलहाल इंक्वायरी चल रही है, इसके बाद ही स्थिति क्लीयर होगी।

लॉ अफसर को एक्सटेंशन ! / Extension to law officer

सिटको के हैड ऑफिस में बैठने वाले लॉ अफसर का कार्यकाल 22 फरवरी 2023 को समाप्त हो गया। सिटको मैनेजमेंट इतना दरियादिल है कि इस लॉ अफसर की फरवरी माह की पूरी सैलरी अकाउंट में डाल दी। यानि अफसर इस सेंसटिव पोस्ट पर बैठे शख्स को एक्सटेंशन देने की पहले ही तैयारी किये बैठा है। 22 फरवरी के बाद इनकी एक्सटेंशन का भी कोई लैटर मैनेजमेंट की ओर से जारी नहीं हुआ लेकिन सैलरी जरूर 8 फालतू दिनों की जारी कर दी गई। यहां बता दें कि लॉ अफसर को इस पद पर तैनात हुए सात से आठ साल का वक्त बीत चुका है। इसी अफसर पर कलाग्राम के ठेकेदार के साथ मिलकर सिटको को करोड़ों रुपये की चपत लगाने के आरोप सिटको मुलाजिम व इससे जुड़ी यूनियनें लगा रही हैं। यूनियन सदस्यों का कहना है कि क्या रेगुलर मुलाजिमों के मसलों में सिटको मैनेजमेंट इसी तरह भुगतान करती है?

परेशान होकर ले ली वीआरएस / Got upset and took VRS

यहां ये भी बता दें कि सिटको के हैड ऑफिस में बैठी जिस महिला कर्मचारी को 2 लाख रुपये के घपले में एचडीएफसी बैंक से मिलान का काम सौंपा गया था, उसने बेहतरीन काम कर यह प्रकरण पकड़ा। अफसरों ने उस पर ऐसा दबाव बनाया कि इस महिला कर्मचारी को परेशान होकर वीआरएस लेनी पड़ी। यानि हैड ऑफिस की अफसरशाही उच्चाधिकारियों की नाक तले ठेकेदारों से मिली हुई है लेकिन उन्हें इसकी जानकारी नहीं?

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