Why Canada is making itself a stronghold of terrorists

Editorial: कनाडा खुद को क्यों बना रहा आतंकियों का गढ़

Edit2

Why Canada is making itself a stronghold of terrorists

Why Canada is making itself a stronghold of terrorists कनाडा भारत विरोधी गतिविधियों के लिए आतंकियों का सबसे पसंदीदा देश बन गया है। भारत और विशेषकर पंजाब में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के बाद आतंकी, उपद्रवी जिस प्रकार से कनाडा में शरण लेते हैं, वह इस देश की सरकार एवं यहां बसे लोगों पर सवाल उठाता है। कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के दौरान कनाडा सरकार की ओर से सीधे हस्तक्षेप करते हुए देश की सरकार को निर्देशित करने की कोशिश की गई थी, जबकि यह मामला पूरी तरह से आंतरिक है।

हालांकि भारत की ओर से दूसरे देशों के मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाता। कनाडा में दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को लेकर जिस प्रकार से खालिस्तान समर्थकों ने मखौल बनाने की कोशिश की है, वह बेहद निंदनीय और शर्मनाक है। इस मामले में भारत सरकार ने तुरंत और बेहद तीखी प्रतिक्रिया देकर सही ही किया है। श्रीमती इंदिरा गांधी किसी राजनीतिक दल की नेता नहीं थीं, वे देश की उस समय प्रधानमंत्री थीं और उनकी हत्या करके आतंकियों ने देश की संप्रभुता और अखंडता पर आघात किया था, जिसे क्षमा नहीं किया जा सकता।

कनाडा के ब्रैंपटन शहर में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या किए जाने को झांकी का रूप देकर पांच किलोमीटर लंबी परेड निकाली गई है, जोकि हैरान करने वाला घटनाक्रम है। एक दिवंगत नेता के प्रति इस प्रकार का बर्ताव अमानवीय है। बेशक, अब सामाजिक सरोकार भी खत्म होते जा रहे हैं और देश एवं विदेश में इनकी जरूरत न के बराबर रह गई है, तब भी भारत अपने मूल्यों एवं परंपराओं को संरक्षित करता है। उन मूल्यों के अनुसार एक जिंदा व्यक्ति की ही आलोचना की जा सकती है, लेकिन उसके देहांत के बाद न तो उसके संबंध में अनर्गल बात की जाएगी और न ही उसकी मृत्यु का जश्न मनाया जाएगा।

जबकि श्रीमती इंदिरा गांधी ने तो देश की एकता एवं अखंडता को कायम करने के लिए आतंकियों से लोहा लिया था, उनके निर्णयों पर सवाल उठते हैं, लेकिन यह भी तय है कि अगर उन्होंने उन सख्त कदमों को नहीं लिया होता तो आज भारत का मानचित्र कुछ और हो सकता था। उनके प्रयास से ही पंजाब में आतंकियों को इसका अहसास हुआ कि वे अपने मंसूबे पूरे नहीं कर सकते। ऐसे में ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी पर कनाडा में बैठकर आतंकी अगर श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या का इस प्रकार निंदनीय जश्न मना रहे हैं तो यह भारत की संप्रभुता और उसकी अखंडता पर हमला है।

यह आयोजन ऑपरेशन ब्लू स्टार की 39वीं बरसी (6 जून) से दो दिन पहले किया गया और इस झांकी में पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में 1984 में की गई सैन्य कार्रवाई का प्रतिशोध बताया गया। साफ है कि खालिस्तान समर्थक ये तत्व अपनी इस तरह की हरकतों के जरिए उस आतंकवाद की ओर से ध्यान हटाने की कोशिश करते हैं, जिसकी वजह से ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसे कदम उठाने पड़े और जिसके चंगुल में पंजाब आगे भी कई साल तक फंसा रहा। न जाने कितने परिवार इस कुचक्र में बर्बाद हो गए, कितने लोगों को जान देनी पड़ी। अनगिनत कुर्बानियों के बाद पंजाब जैसे-तैसे उस मुश्किल दौर से निकला और पहले की तरह अपने पराक्रम से विकास की नई कहानियां लिखने लगा।

अब एक बार फिर वे तत्व देश के अंदर और बाहर सक्रिय हो रहे हैं। कनाडा उनके लिए एक बड़ा केंद्र बनकर उभरा है। और यह वहां अपनी तरह का कोई पहला मामला नहीं है। पिछले साल भी वहां से एक अलग देश खालिस्तान बनाए जाने के सवाल पर जनमत संग्रह करवाए जाने की खबर आई थी। सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे ताजा वीडियो को हालांकि सबसे पहले कांग्रेस नेताओं ने मुद्दा बनाया, लेकिन फिर सरकार भी इस पर स्टैंड लेने में पीछे नहीं रही।    

इस मामले में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस पूरे घटनाक्रम पर तीखी क्षुब्धता दर्शाते हुए अत्यंत कड़े शब्दों में कहा है कि ऐसी घटनाएं न तो भारत-कनाडा रिश्ते के लिए अच्छी हैं और न कनाडा के लिए। उन्होंने कहा यह समझना मुश्किल है कि वोट बैंक राजनीति के अलावा और क्या वजह हो सकती है इन घटनाओं के पीछे। बहरहाल, इससे यह साफ हो जाता है कि कनाडा में हिंसा की वकालत करने वाले अतिवादी और अलगाववादी तत्वों पर कोई अंकुश नहीं रह गया है।

भारत में कनाडा के उच्चायुक्त कैमरन मैके ने हालांकि इस घटना की निंदा की और कहा कि उनके देश में नफरत और हिंसा के महिमामंडन के लिए कोई जगह नहीं है। लेकिन ऐसे औपचारिक बयान जारी कर देना काफी नहीं है। कनाडा को समझना होगा कि आतंकवाद, अलगाववाद और हिंसा की आग सबसे पहले उन देशों को जलाती है जो इसे हवा देते हैं। कनाडा को खुद को आतंकियों के गढ़ के रूप में साबित होने से रोकना चाहिए।

यह भी पढ़ें:

Editorial: महिला पहलवानों को न्याय की उम्मीद अब हुई प्रबल

यह भी पढ़ें:

Editorial: बालासोर ट्रेन हादसे की सीबीआई जांच समय की मांग