Increased transparency in wrestling federation

Editorial: कुश्ती महासंघ में बढ़े पारदर्शिता, राजनीति का न हो दखल

Edit2

Increased transparency in wrestling federation

भारतीय कुश्ती संघ में बीते एक साल से जो दंगल चल रहा है, उसका नतीजा भी ऐसा है, जिसने फिर अनेक पहलवानों का दिल मसोस दिया है, वहीं दो महिला कुश्ती पहलवानों ने तो संन्यास की ही घोषणा कर दी। एक कहावत है कि जिसकी लाठी, उसकी भैंस। भारतीय कुश्ती संघ के संबंध में यह कहावत पूरी तरह से सच साबित होती नजर आ रही है। पहले तो यह कि जिनका खेल से वास्ता नहीं है, वे लोग खेल संगठनों के पदाधिकारी बनकर बैठ गए हैं। इसके बाद वे सब कुछ अपनी तरह से संचालित कर रहे हैं। कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए और फिर उनका कार्यकाल पूरा हो गया। उम्मीद यही की गई कि कोई अन्य आकर इस पद को संभालेगा और महिला पहलवानों को न्याय की उम्मीद जगेगी।

हालांकि नए सिरे से हुए चुनाव में भी बृजभूषण शरण सिंह के सहयोगी को जीत हासिल हुई है। यानी पद पर बैठे व्यक्ति का चेहरा बदल गया, नाम बदल गया लेकिन उनका वर्ग वही है। बृजभूषण शरण सिंह का यह बयान बहुत कुछ कहता है कि कुश्ती संघ पर उनका दबदबा था और रहेगा। आखिर इतने प्रतिष्ठित और रसूखदार पद को कोई क्यों छोड़ना चाहेगा, अगर वह खुद हासिल नहीं हो रहा है तो अपने सहयोगी को ही दिलाकर उस पर अपना वर्चस्व कायम रखा जाएगा।

कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर लगे आरोपों की अभी जांच ही चल रही है। इस मामले को लेकर पहलवानों का दिल्ली में लंबे समय तक धरना चला है, इस धरने में विपक्ष का कौन सा बड़ा नेता नहीं गया है। बृजभूषण भाजपा के सांसद हैं। केंद्र सरकार पर इसके भी आरोप लगे हैं, उन्हें बचाया जा रहा है। बेशक, ये आरोप गंभीर हैं, लेकिन पहलवानों के धरने के बाद अगर इस मामले की जांच शुरू हुई तो उसमें कुछ स्पष्ट निकल कर सामने नहीं आया। तब पहलवानों के आरोपों को भी राजनीति से प्रेरित बताया गया। ऐसे में यह प्रकरण पूरी तरह से संदेह के घेरे में रहा है कि आखिर सच्चाई क्या है। कौन जिम्मेदार है और कौन निर्दोष। खैर, इस बहस के बीच अब कुश्ती संघ के नए अध्यक्ष का चुनाव 7 के मुकाबले 40 वोट से जीतकर संजय सिंह ने बता दिया है कि भारतीय कुश्ती संघ में बृजभूषण शरण सिंह और उनके सहयोगियों के अलावा अन्य कोई दखल नहीं रख सकता। यह भी आश्चर्यजनक है कि संजय सिंह के खिलाफ जिन महिला अनीता श्योरान ने चुनाव लड़ा, उनके साहस को ज्यादातर ने कमजोर कर दिया। अगर कुश्ती संघ के अध्यक्ष पद पर एक महिला पदासीन होती तो क्या यह ऐतिहासिक नहीं होता। महिलाओं को राजनीति में आगे बढ़ाने की बात होती है, लेकिन बगैर राजनीतिक आरक्षण के यह संभव नहीं है। कुश्ती संघ में तो इसकी भी व्यवस्था नहीं है।

रेसलर साक्षी मलिक और विनेश का ऐसे समय में संन्यास दुखद है। इन दोनों महिला पहलवानों ने पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ जो मोर्चा खोला था, वह बेहद साहसिक था। दोनों ने मिलकर बहुत संघर्ष किया लेकिन फिर वादों के झोंके में उनका धरना-प्रदर्शन गायब हो गया। उनका आरोप है कि बृजभूषण शरण सिंह के नजदीकी को चुनाव नहीं लड़ने देने का सरकार का वादा पूरा नहीं हुआ। वास्तव में लोकतंत्र में किसी को भी बगैर निर्धारित नियमों के चुनाव लडऩे से नहीं रोका जा सकता। कुश्ती संघ के अध्यक्ष पद पर हुआ चुनाव उन महिला पहलवानों की हार माना जा सकता है जोकि  कुश्ती संघ को ज्यादा पारदर्शी बनाने की मांग कर रही थीं। ऐसे में साक्षी मलिक के संन्यास की घोषणा का दर्द समझा जा सकता है।

हालांकि पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह का यह बयान काबिले तारीफ है कि प्रतिशोध की राजनीति नहीं होगी और अगर विरोध करने वाले पहलवान भी कुश्ती जारी रखना चाहते हैं तो उनके साथ पूरी निष्पक्षता से व्यवहार होगा। उनका यह भी कहना है कि हमें खेल पर ध्यान देना है, ना कि पहलवानों की गलतियों पर। वास्तव में इस प्रकरण में होना तो यही चाहिए कि सबकुछ निष्पक्ष और पारदर्शी हो। नए अध्यक्ष को यह कार्य भी करना चाहिए कि संघ के अंदर ऐसी प्रणाली विकसित करें, जिसमें ऐसे आरोपों के सामने आने के बाद उनकी आतंरिक जांच पूर्ण निष्पक्षता से अंजाम दी जाए। ऐसे विवाद खेल और खिलाडिय़ों के भविष्य को नुकसान पहुंचाते हैं। यह जरूरी है कि ऐसे आरोप लगे ही नहीं, क्योंकि खेल राजनीति करने के लिए नहीं हैं, अपितु देश का गौरव बढ़ाने के लिए हैं। 

यह भी पढ़ें:

Editorial: राज्यों में भाजपा की जीत से इंडिया गठबंधन में हुई एकजुटता

Editorial: एसवाईएल पर फिर बैठक तय, क्या निकल सकेगा कोई हल