It is necessary to settle the dispute with the sarpanches

सरपंचों से विवाद का निपटारा जरूरी, सरकार उठाए कदम

Haryana

It is necessary to settle the dispute with the sarpanches

It is necessary to settle the dispute with the sarpanches पंचकूला में हरियाणा भर के सरपंचों और पुलिस के बीच टकराव दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा। राज्य सरकार जब विभिन्न मोर्चों पर बेहतर प्रदर्शन कर रही है, तब ऐसे अनचाहे विवाद से उसका सामना न ग्रामीण जनप्रतिनिधियों के लिए उचित है और न ही सरकार के लिए। यह वह समय है, जब जी-20 की अहम बैठक गुरुग्राम में हो रही है और हरियाणा सरकार पूरी तन्मयता से इसकी मेजबानी में जुटी है।

सरकार प्रदेश की छवि और यहां मौजूद पर्यटन एवं अन्य संसाधनों को विदेशी मेहमानों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं। कितना अच्छा नहीं होता अगर ई-टेंडरिंग का विरोध कर रहे सरपंच अगले चार-दिन शांत रहते लेकिन न जाने क्यों सरपंचों ने अपने विरोध की आग को जोर-शोर से भडक़ा दिया है। अगर यह मामला नहीं सुलझा तो क्या यह आगामी आम चुनाव और विधानसभा चुनाव मेंं एक मुद्दा नहीं होगा। हालांकि सरकार अपने कदम अगर पीछे खींच भी लेते उस सुधारीकरण का क्या, जोकि पंचायत प्रणाली में भी आवश्यक है।

पंचकूला में प्रदर्शन के दौरान जहां सरपंचों को चोट आई हैं, वहीं पुलिस कर्मी भी घायल हुए हैं। सरपंच एसोसिएशन का आरोप है कि सरपंचों को बर्बरता से पीटा गया है। यह व्यवस्था से जुड़ा मामला होता है और अगर कानून और शांति भंग की आशंका होती है तो पुलिस अपना काम करती है। लेकिन यह भी देखा जाना चाहिए कि लगातार कोशिशों के बावजूद सरकार और सरपंचों के बीच बातचीत सिरे नहीं चढ़ पाई है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है।

सरपंच अगर ईमानदार हैं तो फिर उन्हें ई-टेंडरिंग से डर क्यों लग रहा है, भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए अगर ऐसा जत्न किया जा रहा है तो इसका स्वागत करने के बजाय विरोध क्यों हो रहा है। हरियाणा में नवनिर्वाचित सरपंचों ने अपना पदभार तक ठीक से नहीं संभाला लेकिन वे सरकार की ई-टेंडरिंग पॉलिसी का विरोध करने बैठ गए। ग्राम पंचायतों में 2 लाख रुपये से अधिक के विकास कार्य ई-टेंडरिंग से ही कराने की योजना है। अब इसमें क्या गलत है, लेकिन लोकतंत्र है, सरपंच भी निर्वाचित हैं, उन्हें भी विरोध दर्ज कराने का अधिकार है। पंचायत चुनाव के परिणाम के बाद से ही प्रदेशभर में धरने पर हैं, और पंचायत विकास मंत्री देवेंद्र बबली के साथ उनकी पहली बैठक बेनतीजा रही।

यह मामला अब पूरी तरह से राजनीतिक रंग ले चुका है। विपक्ष जोकि मुद्दों की तलाश में है, उसे एक और नया मुद्दा मिल चुका है। विपक्ष से अपेक्षा सकारात्मक आलोचना की होती है वहीं सही और उद्देश्यपूर्ण कार्यों का समर्थन भी उसे करना चाहिए। वास्तव में ग्राम पंचायतों में विकास कार्यों का कोई तो हिसाब रखा ही जाना चाहिए। अब अगर इसकी शुरुआत हो रही है तो विरोध क्यों हो रहा है। बेशक, राइट टू रिकॉल और सरपंचों का काम पंचों को देने संबंधी बयान बेहद सख्त माने जाएंगे, लेकिन क्या सरपंचों को भी यह नहीं समझना चाहिए कि अगर ई टेंडरिंग प्रणाली लागू होती है तो इसमें अनुचित क्या है? सरपंचों की ओर से 19 मांगें सरकार के समक्ष रखी गई हैं, आज के समय में मांगों को मनवाने का जरिया विरोध हो गया है। जो भी चीज अपने मुताबिक न हो, उसका विरोध लोकतांत्रिक हो गया है।

ई-टेंडरिंग प्रणाली कैबिनेट का फैसला है, लेकिन अब अगर अकेले मंत्री को सरपंचों के विरोध से निपटने के लिए लगा दिया गया है तो यह भी समझ से परे की बात है। इस मामले में अब सत्ताधारी दलों और मंत्री के बीच बयानों को लेकर जैसा ज्वार आया है, वह भी चिंताजनक है। राजनीतिक फायदे के लिए नीतिगत फैसलों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए। पंचायत मंत्री के प्रति जहां सरपंच विरोध जता रहे हैं, वहीं राजनीतिक रूप से भी उनके खिलाफ तीखे और अपमानजनक बयान आ रहे हैं। यह सब बेहद विचित्र स्थिति है।

हर कोई अपनी बात कहने को स्वतंत्र है, लेकिन यह भी आवश्यक है कि सरकार और संगठन की अपनी-अपनी भूमिका और गरिमा का ख्याल रखा जाए। अगर सब कुछ संगठन को ही करना है तो फिर सरकार के गठन का क्या औचित्य रह जाता है। जिन लोगों को संगठन से सरकार में भेजा गया है, उनकी अपनी पहचान और समझ है, लेकिन उन्हें एक पार्टी कार्यकर्ता के रूप में समझना और इस्तेमाल करना विधानपालिका और कार्यपालिका का अपमान होगा। वास्तव में मुख्यमंत्री मनोहर लाल को स्वयं इस मामले के समाधान के लिए आगे आना होगा, वहीं सरपंचों को भी यह मानना होगा कि पंचायत प्रणाली में सुधारीकरण की बेहद जरूरत है। उनकी ईमानदारी पर सरकार संदेह नहीं कर रही है लेकिन अगर ऐसी प्रणाली बनेगी तो फिर उसमें सभी पॉजिटिव तरीके से ही कार्य करेंगे। यह मामला जितनी जल्दी निपटेगा उतना ही पंचायतों और सरकार की सेहत के लिए अच्छा होगा।

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