Khalistan evil intentions should be strongly opposed in Punjab

पंजाब में खालिस्तान के नापाक इरादों का हो कड़ा विरोध

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Khalistan evil intentions should be strongly opposed in Punjab

Khalistan evil intentions should be strongly opposed in Punjab पंजाब की फिजाओं में खालिस्तान की पुरजोर होती मांग ने जैसी बेचैनी पैदा कर दी है, वह अचंभित करने वाली और इस प्रदेश की शांति और व्यवस्था के लिए बड़ा खतरा है।

जाहिर है, खालिस्तान की सोच का समर्थन कौन कर रहा है, ये वे लोग हैं जोकि नहीं चाहते कि पंजाब में अमन और चैन कायम रहे। पड़ोसी पाकिस्तान में खाने के लाले हैं, लेकिन उसकी एजेंसियां भारत में ऐसे लोगों को न अपनी फंडिंग रोक रही हैं और न ही अपने विभाजक मंसूबों को पूरा करने की जुगत से बाज आ रही हैं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि पंजाब में ऐसे लोग इन करतूतों को नहीं समझ पा रहे। वे यही कह रहे हैं कि उनकी बात सुनी जाए क्योंकि खालिस्तान की उनकी मांग जियोपॉलिटिकल हिसाब से भी सही है और सिख समाज के लिए भी फायदेमंद रहेगी। आखिर देश को जिन मुश्किलों से एक किया गया है, क्या अब किसी की खालिस्तान की मांग को लेकर उसे टुकड़ों में बंट जाने दिया जाए।

एक उग्रपंथी सिख संगठन के नेता अमृतपाल सिंह का नाम हाल के दिनों में जिस तरह से उभरा, वह न केवल हैरत में डालने वाला बल्कि चिंताजनक भी है। पिछले हफ्ते अमृतसर के अजनाला पुलिस स्टेशन में उसका हथियारबंद समर्थकों के साथ घुस आना और पुलिस को मजबूर करके अपने एक करीबी की अगले दिन रिहाई सुनिश्चित करा लेना तो सिर्फ एक उदाहरण है। हालांकि यह घटना अपने आप में बहुत सारे सवाल खड़े करती है। इतनी बड़ी संख्या में समर्थकों का थाने के अंदर घुस आना अचानक नहीं हो सकता। गौरतलब है कि आरोपियों ने इस करतूत के लिए सीधे प्रदेश सरकार और डीजीपी को चुनौती दी। उन्हें धमकाया और अंजाम भुगतने की चेतावनी दी।

इससे पहले चंडीगढ़-मोहाली के बॉर्डर पर भी बंदियों की रिहाई के लिए सिख संगठन ऐसा ही हिंसक बर्ताव कर चुके हैं। अब पंजाब में भी आतंकवाद का आहट का यह नया उदाहरण है। बीती सरकार के समय भी केंद्रीय एजेंसियों की ओर से ऐसे इनपुट थे कि राज्य में आतंकी गतिविधियां बढ़ रही हैं।

हैरानी इसकी है कि धर्म की आड़ में पहले भी खूनी खेल खेला गया है और अब फिर उसी को नए सिरे से दुरुपयोग किया जा रहा है। पुलिस कह रही है कि उसे अंदाजा नहीं था, ये हमलावर बैरिकेड तोडऩे के लिए गुरु ग्रंथ साहब को ढाल बनाएंगे। लेकिन ये सब करीब 60 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए आए थे और उन्होंने नंगी तलवारें लहराते हुए थाने को करीब-करीब हाइजैक ही कर लिया था। निश्चित रूप से पुलिस प्रशासन की चुस्ती और सतर्कता पर यह ऐसी टिप्पणी है, जिसे लचर बहाने बनाकर रफा-दफा नहीं किया जा सकता। और, बात सिर्फ स्थानीय प्रशासन की भी नहीं है।

अमृतपाल सिंह का खालिस्तान समर्थक रवैया न तो कोई दबी-छुपी बात है और न ही कोई ऐसी बात, जो आज अचानक सामने आ गई हो। खालिस्तान के पक्ष में लंबे समय से मुहिम चला रहे और पिछले साल एक सडक़ दुर्घटना में मारे गए पंजाबी कलाकार दीप सिद्धू से अमृतपाल की मुलाकात भले न हुई हो, पर ऑनलाइन नेटवर्क क्लब हाउस पर दोनों एक साथ मौजूद होते रहे हैं। यों भी अमृतपाल सिंह लंबे समय से फेसबुक के जरिए खालिस्तान की मांग खुले तौर पर उठाता रहा है। यह बात केंद्रीय खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों की नजरों से छुपी रह जाए ऐसा हो नहीं सकता। खुद अमृतपाल का भी कहना है कि दुबई से भारत लौटने पर सुरक्षा एजेंसियों ने उससे पूछताछ की थी।

सवाल है कि इतना सब कुछ होते हुए भी उसके खिलाफ उपयुक्त कार्रवाई क्यों नहीं हुई। खुले तौर पर खालिस्तान की मांग करने वाला, उसे सही बताने वाला सोशल मीडिया अकाउंट बेरोकटोक चलने दिया गया, जबकि छोटे मोटे असंतोष जाहिर करने वाले अकाउंट भी आसानी से सस्पेंड करवाए जाते रहे हैं। इस चूक या लापरवाही की भी जांच करवाने की जरूरत है। कुछ समय से देश ही नहीं विदेशों में भी खालिस्तान समर्थक तत्वों की सक्रियता काफी बढ़ गई है। यह अकारण नहीं हो सकता। खुफिया सूचनाएं विदेशी साजिश की ओर संकेत करती हैं।

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान पाकिस्तान का नाम लेकर इन साजिशों का जिक्र कर चुके हैं। लेकिन चाहे जो भी साजिश हो, उससे निपटने की जिम्मेदारी राज्य और केंद्र की सुरक्षा एजेंसियों की ही है। गौरतलब यह भी है कि एक और खालिस्तान समर्थक आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू सक्रिय है, जिसने इस सोच को आगे बढ़ाने का जिम्मा ले रखा है। यह समय पंजाब को बचाने का है, खालिस्तान से न पंजाब को और न ही भारत को कोई फायदा होना है, यह विध्वंसक सोच है, जोकि देश का बंटवारा चाहती है। इसका कड़ा विरोध होना चाहिए और ऐसे मंसूबों को विफल भी करना होगा। 

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