आरबीआई ने ब्याज दरें 0.50 प्रतिशत बढ़ाईं, देखें क्या-क्या होगा महंगा

RBI

नई दिल्ली। बढ़ती महंगाई से चिंतित भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में 0.50 प्रतिशत इजाफा (Repo rate hiked by 0.50 percent) किया है। इससे रेपो रेट 4.90 प्रतिशत से बढक़र 5.40 प्रतिशत हो गई है। यानी होम लोन से लेकर ऑटो और पर्सनल लोन सब कुछ महंगा होने वाला है और आपको ज्यादा ईएमआईचुकानी होगी।

इस बढ़ोतरी के बाद ब्याज दरें अगस्त 2019 के लेवल पर पहुंच गई है। ब्याज दरों पर फैसले के लिए 3 अगस्त से मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की मीटिंग चल रही थी। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में ब्याज दरें बढ़ाने की जानकारी दी।

0.50 प्रतिशत रेट बढऩे से कितना फर्क पड़ेगा
मान लीजिए रोहित नाम के एक व्यक्ति ने 7.55 प्रतिशत के रेट पर 20 साल के लिए 30 लाख रुपए का हाउस लोन लिया है। उसकी लोन की ईएमआई 24,260 रुपए है। 20 साल में उसे इस दर से 28,22,304 रुपए का ब्याज देना होगा। यानी, उसे 30 लाख के बदले कुल 58,22,304 रुपए चुकाने होंगे।

रोहित के लोन लेने के एक महीने बाद आरबीआई रेपो रेट में 0.50 प्रतिशत का इजाफा कर देता है। इस कारण बैंक भी 0.50 प्रतिशत ब्याज दर बढ़ा देते हैं। अब जब रोहित का एक दोस्त उसी बैंक में लोन लेने के लिए पहुंचता है तो बैंक उसे 7.55 प्रतिशत की जगह 8.05 प्रतिशत रेट ऑफ इंटरेस्ट बताता है।

रोहित का दोस्त भी 30 लाख रुपए का ही लोन 20 साल के लिए लेता है, लेकिन उसकी आईएमआई 25,187 रुपए की बनती है। यानी रोहित की आईएमआई से 927 रुपए ज्यादा। इस वजह से रोहित के दोस्त को 20 सालों में कुल 60,44,793 रुपए चुकाने होंगे। ये रोहित की रकम से 2,22,489 ज्यादा है।

क्या पहले से चल रहे लोन पर भी बढ़ेगी ईएमआई
होम लोन की ब्याज दरें 2 तरह से होती हैं पहली फ्लोटर और दूसरी फ्लेक्सिबल। फ्लोटर में आपके लोन कि ब्याज दर शुरू से आखिर तक एक जैसी रहती है। इस पर रेपो रेट में बदलाव का कोई फर्क नहीं पड़ता। वहीं फ्लेक्सिबल ब्याज दर लेने पर रेपो रेट में बदलाव का आपके लोन की ब्याज दर पर भी फर्क पड़ता है। ऐसे में अगर आपने पहले से फ्लेक्सिबल ब्याज दर पर लोन ले रखा है तो आपके लोन की आईएमआई भी बढ़ जाएगी।

चार महीने में 1.40प्रतिशत की बढ़ोतरी
मॉनेटरी पॉलिसी की मीटिंग हर दो महीने में होती है। इस वित्त वर्ष की पहली मीटिंग अप्रैल में हुई थी। तब आरबीआई ने रेपो रेट को 4त्न पर स्थिर रखा था। लेकिन आरबीआई ने 2 और 3 मई को इमरजेंसी मीटिंग बुलाकर रेपो रेट को 0.40 प्रतिशत बढ़ाकर 4.40 प्रतिशत कर दिया था। 22 मई 2020 के बाद रेपो रेट में ये बदलाव हुआ था।

इस वित्त वर्ष की पहली मीटिंग 6-8 अप्रैल को हुई थी। इसके बाद 6 से 8 जून को हुई मॉनेटरी पॉलिसी मीटिंग में रेपो रेट में 0.50 प्रतिशत इजाफा किया है। इससे रेपो रेट 4.40 प्रतिशत से बढक़र 4.90 प्रतिशत हो गई थी। अब अगस्त में इसे 0.50 प्रतिशत बढ़ाया गया है जिससे ये 5.40 प्रतिशत पर पहुंच गई है।

आरबीआई रेपो रेट क्यों बढ़ाता या घटाता है?
आरबीआई के पास रेपो रेट के रूप में महंगाई से लडऩे का एक शक्तिशाली टूल है। जब महंगाई बहुत ज्यादा होती है तो, आरबीआई रेपो रेट बढ़ाकर इकोनॉमी में मनी फ्लो को कम करने की कोशिश करता है। रेपो रेट ज्यादा होगा तो बैंकों को आरबीआई से मिलेने वाला कर्ज महंगा होगा। बदले में बैंक अपने ग्राहकों के लिए लोन महंगा कर देंगे। इससे इकोनॉमी में मनी फ्लो कम होगा। मनी फ्लो कम होगा तो डिमांड में कमी आएगी और महंगाई घटेगी।

इसी तरह जब इकोनॉमी बुरे दौर से गुजरती है तो रिकवरी के लिए मनी फ्लो बढ़ाने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में आरबीआई रेपो रेट कम कर देता है। इससे बैंकों को आरबीआई से मिलने वाला कर्ज सस्ता हो जाता है और ग्राहकों को भी सस्ती दर पर लोन मिलता है। इस उदाहरण से समझते है। कोरोना काल में जब इकोनॉमिक एक्टिविटी ठप हो गई थी तो डिमांड में कमी आई थी। ऐसे में आरबीआई ने ब्याज दरों को कम करके इकोनॉमी में मनी फ्लो को बढ़ाया था।

रिवर्स रेपो रेट के बढऩे-घटने से क्या होता है?
रिवर्स रेपो रेट उस दर को कहते है जिस दर पर बैंकों को आरबीआई पैसा रखने पर ब्याज देता है। जब आरबीआई को मार्केट से लिक्विडिटी को कम करना होता है तो वो रिवर्स रेपो रेट में इजाफा करता है। आरबीआई के पास अपनी होल्डिंग के लिए ब्याज प्राप्त करके बैंक इसका फायदा उठाते हैं। इकोनॉमी में हाई इंफ्लेशन के दौरान आरबीआईरिवर्स रेपो रेट बढ़ाता है। इससे बैंकों के पास ग्राहकों को लोन देने के लिए फंड कम हो जाता है।