15 दिनों के लिए बीमार पड़ने वाले है भगवान जगन्नाथ, आखिर क्या है इसके पीछे की कहानी?

rath yatra 2025: काशी दुनिया के सबसे प्राचीनतम शहरों में से एक है। यह शहर अपनी परंपराओं के लिए पूरी दुनिया में जानी जाती है। यहां भगवान जगन्नाथ का प्राचीन मंदिर है। वैसे तो भगवान जगन्नाथ मंदिर के गर्भगृह में भक्तों को दर्शन देते हैं, लेकिन साल में एक बार ऐसा मौका होता है जब वो छत पर विराजमान हो जाते हैं। इस दौरान भक्त भी उन्हें अनवरत गंगा जल से स्नान कराते हैं। ज्येष्ठ पूर्णिमा पर पूरे दिन यह नजारा दिखाई देता है। भक्त इस भाव से मंदिर के छत तक आते हैं कि उनके आराध्य भगवान जगन्नाथ गर्मी से बेहाल हैं, उन्हें शीतलता मिले। इसलिए उन्हें पवित्र गंगाजल से स्नान कराया जाता है। भक्तों के प्रेम में पूरे दिन स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ बीमार हो जाते हैं।
200 साल पुरानी है यह परंपरा
अस्सी स्थित जगन्नाथ मंदिर के प्रधान पुजारी राधेश्याम पांडेय ने बताया कि सुबह 11 घड़े जल से स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ के जलयात्रा की परंपरा शुरू होती है। फिर उनकी आरती उतारी जाती है। यह परंपरा मंदिर के स्थापना यानी करीब 200 साल से अधिक समय से चली आ रही है।
क्यों बीमार पड़ते है भगवान जगन्नाथ?
भगवानप्रधान पुजारी के मुताबिक, आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा तिथि से चतुर्दशी तिथि तक भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा बीमार रहते हैं। इस दौरान उन्हें काढ़े का भोग लगाया जाता है। इसी काढ़े को फिर प्रसाद स्वरूप में भक्तों को वितरित किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी इस काढ़े का प्रसाद ग्रहण करता है, वह पूरे साल बीमारी से मुक्ति मिल जाती है। अंतिम दिन जब भगवान जगन्नाथ स्वस्थ हो जाते हैं, तो उन्हें परवल का जूस पिलाया जाता है। भगवानइसके बाद भगवान जगन्नाथ जब स्वस्थ हो जाते हैं तो मनफेर के लिए नगर भ्रमण पर निकलते हैं। इसे रथयात्रा कहा जाता है। इस दौरान तीन दिनों तक भगवान भक्तों के बीच रहते हैं और उनकी मुरादें सुनते हैं। काशी में इस दौरान तीन दिनों का मेला लगता है। जिसे रथयात्रा मेला कहा जाता है।