It is important to avoid statements of hate

Editorial: नफरत के बयानों से बचना जरूरी, देश की एकता रहे कायम

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It is important to avoid statements of hate

It is important to avoid statements of hate देश में जब पहले से सांप्रदायिक तनाव है, तब ऐसा बयान भावनाओं को भडक़ाएगा ही, जिसमें कोई सनातन धर्म को खत्म करने की बात कहेगा। तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म पर दिए बयान के बाद से देश की राजनीति गर्म है। बेशक इस तरह की बातें अब सामान्य हो गई हैं, लेकिन इस बात को जिस संदर्भ और जिस भावना के साथ धुर दक्षिण से कहा गया है वह बेहद निराशाजनक और शर्मनाक है। सनातन धर्म नहीं एक संस्कृति और जीवन प्रणाली है, ऐसे में उसे नष्ट करने की बात कहने का मतलब यह है कि एक कौम को नष्ट करने की बात कहना।

यह कितना हास्यास्पद है कि कोई अपने शब्दों पर नियंत्रण नहीं रख पाता है और ऐसी बात कह देता है जोकि मौजूदा समय में नफरत का नया दौर शुरू कर देती है। हालांकि इससे पहले किसी ने कहा था कि वह मोहब्बत की दुकान खोलना चाहता है। सवाल यह है कि क्या विपक्ष के नेता इस प्रकार मोहब्बत की दुकानें खोलेंगे। क्या अब सनातन संस्कृति को नष्ट करने के बयान ही एकमात्र जरिया रह गए हैं, अपनी राजनीति करने के।

 हालात अब ऐसे हैं कि उदयानिधि के बयान पर विपक्ष ही बंट गया है। इस मामले पर कांग्रेस के नेता अलग-अलग बयान दे रहे हैं। दूसरी ओर भाजपा ने विपक्षी गठबंधन को ‘हिंदू भावनाओं से न खेलने’ की चेतावनी दी है। भाजपा के शीर्ष नेताओं ने उदयानिधि से अपने बयान के लिए माफी मांगने को कहा है। हालांकि उदयानिधि पहले ही कह चुके हैं कि वे अपने बयान पर कायम हैं। भाजपा अब कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की भी इस मसले पर चुप्पी पर सवाल उठा रही है। भाजपा ने पूछा कि राहुल गांधी सनातन धर्म पर दिए विवादित बयान पर चुप क्यों हैं?

केंद्रीय मंत्रियों राजनाथ सिंह, अर्जुन राम मेघवाल, प्रह्लाद पटेल, धर्मेंद्र प्रधान और अनुराग ठाकुर ने विपक्षी गठबंधन को ‘हिंदू भावनाओं से न खेलने’ की चेतावनी दी है। यह वास्तव में ही भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि जिस समय अयोध्या में भगवान राम के मंदिर के निर्माण का कार्य संपन्न होने जा रहा है, उस दौर में इस तरह का बयान गंभीर मुद्दा है। गौरतलब है कि कट्टरपंथी हिंदू संगठनों की ओर से इस बयान का जहां तीखा विरोध हो रहा है, वहीं इसके एवज में गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दी जा रही है। निश्चित रूप से सनातन धर्म के अपमान के लिए माफी मांगनी चाहिए नहीं तो देश उन्हें माफ नहीं करेगा। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी कहा कि घमंडी गठबंधन के नेता एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं ताकि भारतीय सभ्यता, उसके मूल विश्वास और हिंदू धर्म का दुरुपयोग किया जा सके।

इस बीच यह सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर कांग्रेस के नेताओं की ओर से इस बयान की निंदा नहीं की जा रही है। पार्टी नेता इस पर प्रतिक्रिया देने से ही बचते नजर आ रहे हैं। हालांकि तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो एवं बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ऐसे बयानों से बचने की नसीहत दी है। इस बयान पर भाजपा ने राहुल गांधी से भी सवाल पूछा है। दरअसल, यह समझा जाना चाहिए कि ऐसे बयानों से मिलेगा क्या। क्या यह बात सही नहीं है कि जो मोहब्बत की दुकान खोलने की बात करते हैं, वे असल में नफरत का गोदाम चला रहे हैं। इंडिया गठबंधन के नेता बतौर विपक्ष एकजुट हो रहे हैं, लेकिन इस तरह के बयान गठबंधन को नुकसान पहुंचाते हैं। क्या यह माना जाए कि विपक्ष के नेता मुंबई में नेतृत्व के मुद्दे को सुलझाने में विफल रहे और इसलिए, ध्यान हटाने के लिए एक समुदाय के सदस्यों को अपमानित करने और समाज को विभाजित करने और वोट हासिल करने के लिए एक विवाद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।

वैसे इस बयान के बचाव में ऐसी बातें कही जा रही हैं, जोकि आधारहीन नजर आती हैं। विपक्ष की ओर से कहा गया है कि कोई भी धर्म जो समान अधिकार नहीं देता वह धर्म नहीं है और बीमारी के समान है। वास्तव में इस प्रकार की बातें समाज में तनाव और अलगाव पैदा करती हैं, आजकल के नेता न जाने ऐसी बातें कहां से सीखते हैं, जिन्हें वे आगे परोस देते हैं। देश-विदेश में पढ़ाई के बाद क्या ऐसे विचारों को प्रगतिशील कहा जा सकता है। वास्तव में यह होना चाहिए कि सर्वधर्म समभाव हो और पूरे देश में सभी धर्मों का समान सम्मान हो। यही भारत होना है। आजकल देश में जी-20 की बैठकों का दौर जारी है, वहीं अब शिखर सम्मेलन भी होना है। ऐसे में देश के अंदर ऐसे नफरती बयानों का कहीं स्थान नहीं होना चाहिए। हाल ही में नूंह में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद  किस तरह के बयान सामने आए थे। निश्चित रूप से राजनेताओं को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और उसी के मुताबिक आगे काम करना होगा।


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