Government took steps

Editorial:सरकार ने बढ़ाए कदम, अब सरपंच भी करें बदलाव की शुरुआत

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Government took steps

Government took steps, now sarpanch should also start the change: हरियाणा में मुख्यमंत्री मनोहर लाल का ग्राम पंचायतों के संबंध में यह स्टैंड कि ई-टेंडरिंग पर सरकार झुकेगी नहीं लेकिन अब ई-टेंडरिंग के जरिये पांच लाख तक के काम हो सकेंगे वहीं सरपंचों और पंचों के मानदेय में बढ़ोतरी व सरकारी कर्मचारियों के भांति महंगाई भत्ता देने का निर्णय उचित है और इससे पंचायती व्यवस्था को बल मिलेगा।

राज्य में सरपंच ई-टेंडरिंग का विरोध कर रहे हैं, यह मामला राज्य के गांव-देहात से निकल कर पंचकूला में तीखे विरोध-प्रदर्शन तक पहुंच चुका है। एक बार मुख्यमंत्री के साथ बैठक हो चुकी है वहीं मंत्री एवं अधिकारी भी अनेक बार सरपंचों को मनाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके बावजूद सरपंचों का टस से मस न होना संशय पैदा करता है। सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या सरपंच विरोध के लिए तो विरोध नहीं कर रहे?

मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा है कि ई-टेंडरिंग से पंचायती राज सिस्टम को मजबूती मिलेगी, जिला परिषद और पंचायत समितियां भी इसी सिस्टम का हिस्सा हैं। ई-टेंडरिंग क्यों आवश्यक है, इसका खुलासा उस रिपोर्ट से होता है, जिसमें बताया गया है कि 1100 ऐसे पूर्व सरपंच हैं, जोकि अपना रिकार्ड नहीं दे रहे। इनमें से अनेक पूर्व सरपंच जहां आग में रिकार्ड के जलने की बात कह रहे हैं, वहीं अनेक पानी में उनका बस्ता गिरने का तर्क दे रहे हैं। किसी का तर्क यह है कि उसने तो ग्राम सचिव को अपना रिकार्ड सौंप दिया था, अब अगर वह नहीं दे रहा, तो वे क्या करें। प्रश्न यह है कि अगर इन पूर्व सरपंचों का रिकार्ड सही है तो फिर वे इसे सरकार को क्यों नहीं सौंप रहे? वास्तव में यह इसलिए नहीं सौंपा जा रहा, क्योंकि उस रिकार्ड में बहुत झोल है। उसके अंदर कोताही बरती गई है।

हरियाणा के गांवों में अक्सर यही सुनने को मिलता है कि सरपंच और पंचों ने मिलकर सरकार फंड का दुरुपयोग कर लिया। ऐसे आरोप गलत भी नहीं होते, गबन के मामले भरपूर सामने आते हैं। गांवों में तो गली के निर्माण में ही पैसे की हेराफेरी हो जाती है, फिर बड़े प्रोजेक्ट के लिए अगर सरकार राशि जारी करेगी तो उसमें कितनी बड़ी घालमेल होगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। ई-टेंडरिंग सरपंचों को कमजोर करने का नहीं अपितु उनका सामर्थ्य बढ़ाने का प्रयास है। यही सरकार एवं मुख्यमंत्री बार-बार समझा रहे हैं, लेकिन राजनीतिक दुराग्रह के चलते सरपंच विरोध पर उतारू हैं।

मुख्यमंत्री मनोहर लाल के नए प्रस्ताव जिसमें उन्होंने ई-टेंडरिंग के तहत काम की राशि बढ़ाई है, एवं सरपंचों, पंचों का वेतन बढ़ाने की घोषणा की है, उपयुक्त हैं एवं सरपंचों को इसे स्वीकार करना चाहिए। सरकार ने पंचायतों को स्टांप ड्यूटी व बिजली कर देने का भी निर्णय लिया है। बिजली कर का 2 प्रतिशत पंचायतों के खातों में ट्रांसफर किया जाएगा, जो हर तीन माह में मिलेगा। वहीं एक अप्रैल से पहले जितना भी एरियर बाकी है, वह भी जल्द पंचायतों के खातों में डाला जाएगा। इसके अलावा पंचायती क्षेत्र में बिकने वाली जमीन से आने वाली स्टांप ड्यूटी का दो प्रतिशत हिस्सा भी पंचायतों को ट्रांसफर करने को कहा गया है।

वहीं सरकार पंचायती सिस्टम को और मजबूत करने के लिए सिविल कार्यों की गुणवत्ता की जांच के लिए क्वालिटी असेसमेंट अथॉरिटी का गठन करेगी, सोशल आडिट कमेटियों में गांवों के लोग भी शामिल होंगे।

यह गौर करने लायक बात है कि भ्रष्टाचार की सर्वाधिक शिकायतें विकास एवं पंचायत विभाग से जुड़ी हुई हैं। हालांकि विपक्ष यह आरोप लगाते हुए थकता नहीं है कि मनोहर सरकार ने ग्राम पंचायतों को कमजोर कर दिया है वहीं उनकी सरकार आने पर ई-टेंडरिंग की व्यवस्था को खत्म कर दिया जाएगा। वास्तव में आज का समय प्रत्येक कार्य में पारदर्शिता का है। सरकार जो धनराशि पंचायतों को जारी करती है, उसका हिसाब रखा जाना भी आवश्यक है। ई-टेंडरिंग वह प्रणाली है, जिसके माध्यम से प्रत्येक पैसे का हिसाब रखा जा सकता है।

इस प्रणाली के जरिये ही टेंडर मांगा जाएगा और इसके जरिये ही टेंडर अलॉट होगा और पैसा जारी किया जाएगा। सरपंच, ग्राम सचिव या फिर कॉन्ट्रेक्टर के बीच किसी भी प्रकार की साठगांठ इससे खत्म होगी। लेकिन इसके बावजूद विपक्ष को यह प्रणाली गलत लग रही है, क्या सोशल मीडिया के दौर में सरपंचों को यह नहीं समझना चाहिए कि अगर वे बेहतर तरीके से काम करेंगे तो इससे उनकी साख ही बढ़ती है और इसका फायदा उन्हें राजनीतिक रूप से अपनी पहचान कायम करने में मिलता है।  

मुख्यमंत्री मनोहर लाल के ग्राम पंचायतों के संबंध में लिए गए इन निर्णयों के बाद यह तय है कि सरकार अब कदम पीछे नहीं हटाएगी। बदलाव के लिए ऐसा ही रूख अपनाना पड़ता है, उस समय यह मुश्किल लगता है, लेकिन बाद में यह स्वीकार्य हो जाता है। अब सरकार ने अगर कदम बढ़ाए हैं तो सरपंचों को भी अपने कदम बढ़ाने चाहिए और इन्हें स्वीकार करते हुए सरकार का सहयोग करना चाहिए। 

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