democracy in the country

Editorial: देश में लोकतंत्र संसद के गतिमान होने से ही रहेगा कायम

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Democracy in the country will survive only because of the functioning of the Parliament

Democracy in the country will survive only because of the functioning of the Parliament लंदन में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के भारतीय लोकतंत्र के संबंध में की गई टिप्पणियों को लेकर संसद में जारी गतिरोध दुर्भाग्यपूर्ण है। बजट सत्र के दौरान अनेक महत्वपूर्ण विधेयक हैं, जिन्हें पारित कराना आवश्यक है, लेकिन इन विषयों पर चर्चा के बजाय एक तर्कहीन मसले पर गतिरोध जहां संसद का समय व्यर्थ कर रहा है, वहीं सरकार और विपक्ष के बीच टकराव को प्रबल बना रहा है।

इस हंगामे के बीच यह दिलचस्प है कि राहुल गांधी परिदृश्य में नजर नहीं आ रहे, केवल उनके नाम की चर्चा है। दो दिन से लोकसभा और राज्यसभा में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच घमासान की वजह से कार्यवाही ही संचालित नहीं हो पा रही है। हालांकि हिंडनबर्ग मामले में जेपीसी जांच और प्रधानमंत्री मोदी की विदेशी धरती पर विपक्ष के नेताओं के संबंध में की गई टिप्पणियों को तूल दे दिया गया है। यह सब ऐसा है कि सत्ता पक्ष विपक्ष की टिप्पणियों का हिसाब मांग रहा है और बदले में विपक्ष ने सरकार पर हल्ला बोल दिया है। हालांकि कहीं भी नीति और नियम नजर नहीं आ रहे।  

इस सवाल का जवाब अभी नहीं आ पाया है कि क्या भारत में लोकतंत्र खतरे में है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने विदेश की धरती पर यह बयान देकर बड़ी हलचल पैदा की थी। उसके बाद यह तय था कि संसद में यह मामला उठेगा और उस पर दोनों पक्षों में घमासान होना तय है। अब सरकार के लिए यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे वह विपक्ष पर हथियार की तरह इस्तेमाल करता रहेगा। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने राहुल गांधी के माफीनामे की मांग सदन में दोहरा कर यह साफ कर दिया है कि भाजपा इस मुद्दे को इतनी आसानी से गुजर नहीं जाने देगी। वैसे, यह अपने आप में गंभीर मामला है, कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी को स्वदेश में यह स्पष्ट करना चाहिए कि आखिर लोकतंत्र यहां खतरे में किस प्रकार है।

इसके जवाब में कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल हिंडनबर्ग रिपोर्ट और जेपीसी से जांच की मांग आदि के मुद्दे उठाकर केवल प्रतिरोध करने में जुटे हैं। यह लोकतंत्र की ही विशेषता है कि यहां इतने गंभीर आरोप लगाने के बावजूद विपक्ष के नेता आजाद घूमते हैं, हालांकि किसी अन्य देश में वे अब तक अपनी आजादी खो चुके होते। भारत का लोकतंत्र उसके संविधान से संचालित होता है, ऐसे में महज राजनीतिक फायदे के लिए इस प्रकार के आरोप लगा कर खुद को सुर्खियों में लाने की कोशिश नहीं होनी चाहिए।

निश्चित रूप से यह सब राजनीतिक बयानबाजी है, क्योंकि लोकतंत्र को खतरे में बताकर राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा था। लेकिन वे यह बात देश के अंदर भी कह सकते थे, या वे यहां भी यह दोहराते रहते हैं। लेकिन आखिर इसे साबित कैसे किया जाएगा। आजकल विपक्ष के नेताओं के यहां ईडी और सीबीआई के छापे पड़ रहे हैं।

इस दौरान काफी कोताही सामने आ रही हैं। ऐसे में इन छापों को क्या लोकतंत्र पर हमला माना जाए। क्या विपक्ष को घोटाले करने का अधिकार है, अगर वह ऐसा करे तो फिर जांच भी न हो। बेशक, सत्ता पक्ष में भी अनेक मामले ऐसे हो सकते हैं, जहां जांच की जरूरत है लेकिन तमाम वजहों से ऐसा नहीं होता। लेकिन यह कहना अनुचित है कि अपराधी कभी पकड़े ही नहीं जाएंगे।

चुनाव के मौसम को नजदीक पाकर विपक्ष ने जिस प्रकार से सरकार की घेराबंदी की है, उससे इसका बखूबी अहसास होता है कि यह जंग भविष्य में और तेज होने वाली है। एकजुट होकर चुनाव लडऩे से गुरेज करने वाला विपक्ष अगर इस मामले में एक नजर आ रहा है तो यह उसकी जरूरत है।

अदाणी समूह पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद जिस प्रकार का माहौल देश में बना था, वह परिदृश्य से हटने लगा था। लेकिन एकाएक राहुल गांधी के लंदन में आए बयान के बाद जिस प्रकार भाजपा हमलावर हुई और उसे जवाब देने के लिए कांग्रेस ने विपक्ष के दूसरे दलों को एकजुट किया है, वह अब नई राजनीतिक इबारत का आधार बन रहा है। जेपीसी की मांग संभव है, सरकार कभी स्वीकार नहीं करेगी। हालांकि कांग्रेस और विपक्ष के दल यह साबित करने में नाकाम रहे हैं कि किस प्रकार अदाणी समूह को फायदा पहुंचाया गया।  

वास्तव में इन सभी बातों और विषयों पर बहस होनी चाहिए। लेकिन इस तरह के आरोप पूरी तरह से सही नहीं है कि भारत में लोकतंत्र पर हमला हो रहा है। देश में मीडिया और न्यायपालिका पर नियंत्रण किया जा रहा है। राहुल गांधी जिस भारत भूमि से जाकर ब्रिटेन की धरती पर यह बात कह रहे हैं, वह भी भारतीय लोकतंत्र की आजादी की वजह से है। सबसे बढक़र सत्तापक्ष और विपक्ष को बड़े हित के लिए काम करना चाहिए। संसद का प्रतिक्षण बेहद मूल्यवान है, लेकिन इस प्रकार के हंगामे से यह व्यर्थ हो रहा है। देश में लोकतंत्र भी संसद के गतिमान रहने से ही कायम रहेगा। 

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