Indian cinema getting Oscar, victory of society

Editorial: ऑस्कर मिलना भारतीय सिनेमा, समाज, संस्कृति की जीत

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Indian cinema getting Oscar, victory of society

Indian cinema getting Oscar, victory of society: साहित्य, संस्कृति, समाज, मनोरंजन, अर्थ-वित्त, खेल और न जाने क्या-क्या। पश्चिमी देशों का वर्ग अपने किलेबंदी किए हुए संसार में किसी अन्य का प्रवेश वर्जित करके रखता है। एशियाई देशों की क्या औकात कि वे पश्चिम से तुलना करें। वहीं भारतीय संदर्भों में तो बीन और सपेरों का देश किस प्रकार पश्चिमी की अत्यंत उच्च गुणवत्ता के सामने कैसे टिक सकता है।

हालांकि अब जमाना बदल गया है। एक जमाने में विश्व सुंदरी प्रतियोगिता में किसी भारतीय महिला का खड़े होना ही दुर्लभ बात थी, लेकिन अब वह भी सामान्य हो गई है और अब फिल्मी जगत का सबसे बड़ा पुरस्कार कहे जाने वाला ऑस्कर भी भारतीय झोली में आखिरकार आ गिरा। वह भी एक नहीं अपितु दो-दो। इसे किस तरह से देखा जाए, क्या यह वास्तव में भारतीय सिनेमा का स्तर वैश्विक होने का उदाहरण नहीं है। वास्तव में भारतीय सिनेमा सदैव से वैश्विक पैमाने पर श्रेष्ठता के पायदानों पर खड़ा रहा है, लेकिन अब जब भारत को दुनिया नए संदर्भों में देख रही है, तब उसके सिनेमा को भी इस स्तर का पाया जा रहा है, कि उसे ऑस्कर देकर सम्मानित किया जाए।

फिल्म आरआरआर के गाने नाटु नाटु को ओरिजिनल सॉन्ग के लिए और द एलिफेंट व्हिस्परर्स को बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट फिल्म के लिए ऑस्कर अवार्ड प्रदान किया गया है। निश्चित रूप से यह भारतीय और विशेषकर दक्षिणी भारत के सिनेमा की शानदार जीत है। भारत में सिनेमा इंडस्ट्री अब अरबों रुपये का कारोबार बन चुकी है, मुंबई से लेकर दक्षिण तक हजारों करोड़ रुपये का कारोबार इन फिल्मों के जरिये होता है। लेकिन सबसे मनोरंजक बात यह है कि फिल्म इंडस्ट्री नित नए पैमाने निर्धारित करते हुए आगे बढ़ रही है, समय के साथ इसमें आ रहे परिवर्तन ने जहां सिनेमा प्रेमियों को नया मनोरंजन प्रदान किया है वहीं फिल्म जगत के लोगों के लिए भी अब प्रति पल कुछ नया पेश करने की चुनौती दरपेश है।

ऐसे में वे रचनात्मकता की चरम सीमाओं तक पहुंच रहे हैं और कुछ ऐसा पेश कर रहे हैं जोकि विश्वभर के सिने प्रेमियों को चमत्कृत कर रहा है। यह कितना अद्भुत है कि द एलिफेंट व्हिस्परर्स जैसी शॉर्ट फिल्म जिसे बनाने में ही पांच साल का वक्त लग गया था, को अब विश्व सिनेमा में सर्वश्रेष्ठ का पुरस्कार मिला है।

 दरअसल, ऑस्कर में दो श्रेणियों में अवार्ड मिलने से देश का मान कला के क्षेत्र में और बढ़ गया है। अवार्ड मिलने के बाद देश के अंदर जश्न का माहौल जोकि स्वाभाविक है। सबसे बढक़र यह कि देश की संसद में इन पुरस्कारों के लिए भारतीय सिनेमा की चर्चा हुई है और इसे राष्ट्रीय उपलब्धि के रूप में स्वीकार किया गया है। हालांकि विपक्ष के एक वर्ग ने इसे दक्षिण भारत से जोडऩे की कोशिश की है, लेकिन बावजूद इसके बड़ी आवाज यह है कि यह पूरे देश के सिनेमा का सम्मान है।

गौरतलब है कि वर्ष 1958 में मदर इंडिया फिल्म को ऑस्कर के लिए नामांकित किया गया था लेकिन भारत में सफलता की तमाम हदों को पार करने वाली इस फिल्म को विदेशियों ने पसंद नहीं किया। हालांकि वर्ष 1983 में कॉस्ट्यूम डिजाइनर भानु अथैया ने पहला अवार्ड जीता और यह फिल्म गांधी थी। यह फिल्म सिनेमा जगत की महान फिल्मों में से एक है, जिसमें महात्मा गांधी के जीवन को पर्दे पर उतारा गया था। वास्तव में पश्चिमी और एशियाई सिनेमा में मूल्य और संस्कारों का खेल रहा है। भारतीय फिल्में भारतीयता का मिसाल हैं, जिनमें माता-पिता, पत्नी, भाई-बहन और तमाम रिश्तों को ऐसे पिरोया जाता है, जैसे माला में मोती। पश्चिम जगह में रिश्ते हमेशा से बाजारू रहे हैं और उनका आधार बाजारूपन रहा है।

ऑस्कर के संबंध में अब कहा जा रहा है कि भारतीय फिल्मों को ठीक से समझ न पाने के कारण विदेशियों ने इन फिल्मों की अहमियत को नहीं समझा। हालांकि ताज्जुब की बात यह है कि भारत में बहु संस्कृति और समाज होने के बावजूद फिल्में डब होकर आती हैं तो दक्षिण की फिल्म को भी उत्तर में उतना ही पसंद किया जाता है, जितना मुंबई में बनी एक फिल्म को। यानी अगर भारत में बहुभाषी संस्कृति होने के बावजूद अगर वैचारिक सोच इस कदर समान है, तब पश्चिम के देश आखिर क्यों अपने ही वर्ग की फिल्मों को लेकर इतना खुश क्यों होते हैं। क्या इसकी आवश्यकता नहीं है कि वे ऑस्कर की अहमियत को कायम करने के लिए पूरी दुनिया के सिनेमा की परख रखें और उसकी श्रेष्ठता का आकलन करते हुए पुरस्कार प्रदान करें।

वास्तव में यह समय भारत के उदय का है। देश सूर्य अब चमकने लगा है। कला-साहित्य, संस्कृति, अर्थ-वित्त और राजनीति समेत सभी क्षेत्रों में देश की ऊर्जा अब सामने आने लगी है। भारत दुनिया का प्रेरक रहा है और अब उसकी यह छवि और ज्यादा अच्छे से परिलक्षित हो रही है। यह जीत भारतीय समाज,  सिनेमा, उसकी संस्कृति और संस्कारों की है। 

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