Dera Mukhi must raise questions on parole

Editorial डेरा मुखी को पैरोल पर सवाल उठना जरूरी, पीड़ितों का डर जायज

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Dera Mukhi must raise questions on parole


Dera Mukhi must raise questions on parole राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बीते दिनों देश की जेलों में बंद कैदियों के संबंध में बेहद मार्मिक अपील की थी। उनका अभिप्राय यह था कि न्यायपालिका को यह देखना चाहिए कि कैदियों के मानवाधिकारों का जेलों में ध्यान रखा जाए और उन्हें समय पर पैरोल और जमानत मिले। यह सच्चाई है कि देश की जेलों में बहुत से ऐसे बंदी भी हैं, जिनकी जमानत पर ही विचार नहीं हो सका है वहीं बहुतों को पैरोल ही हासिल नहीं हो पाती। हालांकि हरियाणा में एक अपराधी का मामला पूरी तरह से अलग है। दो साध्वियों से यौन शोषण और दो लोगों की हत्या के दोषी इस डेरा मुखी को कुछ-कुछ अंतराल के बाद पैरोल मिल रही है।

इस दौरान वह पुलिस की सख्त सुरक्षा में अपने डेेरे में आराम फरमाता है, केक काटता है, ऑनलाइन अपने डेरा प्रेमियों को प्रवचन देता है और उससे मिलने के लिए डेरे के बाहर लाइन लग जाती है। इन आगंतुकों में सरकार के मंत्री, ओएसडी, विधायक और दूसरे जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग होते हैं। क्या यह न्याय व्यवस्था का मजाक नहीं है, क्या न्यायिक प्रणाली में दिए जाने वाले पैरोल की धज्जियां उड़ाना इसे नहीं कहेंगे?

  डेरा मुखी गुरमीत राम रहीम अब फिर से 40 दिनों के लिए जेल से बाहर है। अब तो हालात ऐसे हो गए हैं कि जैसे कभी भी डेरा मुखी को पैरोल मिल सकती है और वह बड़े आराम से जेल से बाहर आकर अपने डेरे पर रह सकता है। गौरतलब है कि डेरा मुखी को पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या के मामले में उम्रकैद वहीं डेरा प्रेमी रणजीत सिंह हत्याकांड में कठोर कारावास और साध्वी यौन शोषण केस में दस-दस साल की कैद मिली हुई है। इतने संगीन अपराधी जिसको सजा सुनाए जाने के बाद पूरे हरियाणा में दंगे हुए थे और करोड़ों रुपये की सार्वजनिक सम्पत्ति तबाह कर दी गई। जिसके डेरा प्रेमियों की मिलीभगत सामने आ चुकी है, जब उन्होंने डेरा मुखी को छुड़वाने के लिए यह सब प्रपंच रचा। डेरा मुखी को लगातार पैरोल देने के मामले में हरियाणा सरकार का तर्क है कि जेल मैनुअल और कैदी के अधिकारों के अनुसार ही उन्हें पैरोल दी जाती है।

बेशक, जेल मैनुअल इसके अधिकार देते हैं, लेकिन यह सवाल फिर भी बना रह जाता है कि आखिर डेरा मुखी पर इतनी मेहरबानी क्यों हो रही है। हिमाचल और गुजरात चुनावों के दौरान भी उन्हें पैरोल मिली थी और अब डेरे में धार्मिक कार्यक्रम के दौरान भी पैरोल मिल गई। क्या एक आम कैदी को इतनी जल्दी और सुविधापूर्ण तरीके से पैरोल मिलती है।

  बड़ा सवाल यह भी है कि अदालत ने जिसे कठोर कारावास की सजा सुनाई है, जिसे उम्रकैद मिली हो। क्या उसके अपराध को सामान्य माना जा सकता है। डेरा मुखी का अपराध साबित हुआ है, जिसके बाद उन्हें सजा सुनाई गई है, अब जब वे लगातार पैरोल पर आकर अपने समर्थकों से संपर्क साध रहे हैं तो उन परिवारों पर क्या बीत रही होगी, जिन्होंने जेल की सलाखों के पीछे भिजवाने के लिए रात-दिन एक कर दिया।

यह सवाल सरकार और उसके नुमाइंदों से भी पूछा जाना चाहिए कि आखिर किस हैसियत से बाबा के प्रवचन सुनने के लिए वे एकत्रित होते हैं। गौरतलब है कि इस बार जब डेरा मुखी को पैरोल हासिल हुई है तो एक नेता ने यहां तक कहा है कि भगवान से प्रार्थना है कि आपके कष्ट जल्द कटें। एक सजायाफ्ता अपराधी के प्रति इतना अनुराग रखने और उसकी प्रशस्ति में इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग करने का मंतव्य क्या यह नहीं है कि सिर्फ अपने राजनीतिक फायदे को सामने रखकर नेता उनके दरबार में पेश हो रहे हैं। क्या इन्हीं नेताओं ने उन दुखी परिवारों के प्रति कोई सहानुभूति रखी है, जिनकी बेटियों का यौन शोषण हुआ या फिर दो परिवारों के मुखियाओं की हत्या करवा दी गई, क्योंकि वे डेरा मुखी के राजदार थे।

  बेशक, इस तरह की बातों में कुछ भी गैरकानूनी नजर नहीं आता हो, लेकिन यह पूरी तरह से अनैतिक और असामाजिक जरूर है। जेल इसलिए बनाई गई हैं, ताकि उस माहौल में रहकर कैदी को उसका प्रायश्चित कराया जा सके, लेकिन यह अपनी तरह का पहला मामला होगा कि कोई कैदी इतनी आलीशान जिंदगी पैरोल के दौरान काटता है और वह इसका अहसास भी करवाता है कि जैसे उसके साथ अन्याय हुआ है।

यह अपने आप में न्यायिक प्रणाली का मजाक भी है, क्योंकि अदालत अपना काम कर चुकी लेकिन सत्ता में बैठे राजनीतिक जोकि अनेक पक्षों को ध्यान में रखकर चलते हैं, अब बगैर पीड़ितों की भावनाओं का ख्याल रखे पैरोल प्रदान किए जाते हैं। दरअसल, समाज और सरकार दोनों को यह समझने की जरूरत है कि अपराधी को इसका अहसास भी कराया जाना चाहिए कि उसने वास्तव में गलत किया है। इस मामले में सरकार को यह देखना चाहिए कि कोई अपराधी पैरोल के नियमों की आड़ लेकर अपना लक्ष्य न साध पाए। 

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