देश की धरती पर चीतों का स्वागत  

Editorial

Cheetahs welcome on the land of the country

Cheetahs welcome on the land of the country: प्रकृति और प्राणियों का जन्म-जन्म का साथ है। इंसान का जन्म भी एक वन्य जीव के रूप में हुआ था लेकिन विकास के अनेक द्वार पार करते हुए वह धरती पर सबसे विकसित प्राणी बन गया। इंसान के विकास का परिणाम बाकी प्राणियों को भुगतना पड़ा है। मौजूदा परिस्थिति ऐसी हैं कि धरती पर अगर बारिश ज्यादा हो रही है तो उसके लिए इंसान जिम्मेदार है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं तो वह इंसान की वजह से है, नदियां सूख रही हैं तो वह उसके कारण है। तमाम पशु-पक्षियों की प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं या होने के कगार पर हैं तो उसके लिए भी इंसान ही जवाबदेह है। सिर्फ अपने विकास और अपने आनंद के लिए प्रकृति से भीषण खिलवाड़ करना इंसान को भारी पड़ रहा है।

ऐसे में दुनिया में प्रकृति को बचाने की मांग उठ रही है तो यह आवश्यक भी है, लेकिन मामला तब बिगड़ता है, जब विकसित देश एशियाई देशों को पर्यावरण असंतुलन के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। यानी वे अपने स्तर पर करते कम हैं, लेकिन हो चुके नुकसान के लिए विकासशील देशों को ज्यादा जिम्मेदार ठहराते हैं। भारत वह देश है, जिसने अपने बीते वर्षों में पर्यावरण संरक्षण, पौधरोपण, प्लास्टिक पर प्रतिबंध और वन्य जीवन को संरक्षित, संवर्धित करने के लिए उल्लेखनीय कार्य किए हैं। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर देश की धरती से विलुप्त हो चुके चीतों को बसाने का कार्य हुआ है तो यह निश्चित रूप से सराहनीय और भविष्य की दृष्टि से एक सार्थक प्रयास है।

रिकॉर्ड के मुताबिक वर्ष 1952 तक भारत की धरती पर चीते पाए जाते थे। इन एशियाई चीतों की अपनी ही चमक थी। शेर, बाघ, तेंदुआ और चीते एक समय भारत की धरती पर अपनी मौलिक आजादी के साथ विचरण करते थे, लेकिन अंग्रेजों के समय अपने शौक और झूठी शान के लिए इनका भारी शिकार हुआ। अब तो इतिहास में से ऐसे सवाल निकाल कर केबीसी जैसे टीवी कार्यक्रम में पूछा जाता है कि बताओ वर्ष 1947 में छत्तीसगढ़ के कोरिया महाराजा ने देश में किस वन्य जीव के अंतिम तीन सदस्यों का शिकार कर लिया था।

इसके जवाब में बताया जाता है कि यह जीव चीता था। अब संबंधित महाराजा के वारिसों से कोई पूछे कि आखिर उन तीन बचे हुए चीतों का शिकार करके महाराजा ने ऐसा क्या हासिल कर लिया था। क्या यह शर्मसार होने की बात नहीं है कि आज धरती के दूसरे छोर पर अफ्रीकी महाद्वीप से भारत को चीते मंगवाकर उन्हें अपनी धरती पर बसाना पड़ रहा है। जबकि एक समय भारत में चीते बड़ी तादाद में रहते थे। ऐसी ही स्थिति शेर और बाघों की थी। इन दोनों शानदार और खूबसूरत प्राणियों का बेहताशा शिकार हुआ है। वर्ष 2020 में देश में कुल शेरों की संख्या जहां 674 थी वहीं बाघों की तादाद 4500 है। जाहिर है, यह तादाद अगर बढ़ी है तो केंद्र एवं राज्य सरकारों के प्रयास से हुआ है। बावजूद इसके अभी भी राष्ट्रीय उद्यानों में शेरों,बाघों का जहां  चोरी-छिपे शिकार हो रहा है, वहीं सुंदरबन में एक सींग वाले गेंडे की जान भी संकट में है। ऐसे में इन सभी जीवों के संरक्षण की कितनी बड़ी जरूरत और अहमियत साबित होती है।

केंद्र सरकार का बेहद संवेदनशील प्रोजेक्ट है कि दूसरे देश से चीतों को लाकर यहां बसाया जा रहा है। भारत में चीतों को विलुप्त घोषित किए जाने के सात दशक बाद ऐसा हो रहा है, जब चीते देश की धरती पर विचरण कर रहे हैं। पहले की सरकारों के वक्त भी पर्यावरण संरक्षण के लिए काम होता रहा है, लेकिन कोई भी प्रधानमंत्री इतनी नजदीकी से ऐसे किसी प्रोजेक्ट के साथ जुड़ा हुआ नजर नहीं आया। एक देश में सिर्फ राजनीति ही नहीं होती, वहां जीवन का प्रत्येक रंग निखर कर सामने आना चाहिए। पर्यावरण संरक्षण और वन्य जीवों का प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में भारी योगदान होता है।

आज हम प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं, जिसका परिणाम सबके सामने है। तेंदुए जैसे वन्य प्राणी को आजकल इंसानी बस्तियों में घूमते पाया जाता है। हरियाणा के पलवल में पिछले दिनों ही एक तेंदुए को पकड़ा गया है। तेंदुआ पंचकूला के बाहरी इलाकों में घूमते देखा गया है। राज्यों में जहां रिहायशी इलाके जंगलों को काट कर बसाए जा रहे हैं, में वन्य जीव लगातार मानव बस्तियों में आ रहे हैं। उनके  शिकार अब इंसान बन रहे हैं या फिर उनके पशु। क्या यह बढ़ती जनसंख्या का दुष्प्रभाव नहीं है।  

मध्य प्रदेश के नेशनल पार्क में चीतों को छोड़ने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहां नामीबिया और वहां की सरकार का धन्यवाद किया वहीं विश्व को भी यह संदेश दिया कि भारत प्रकृति और वन्य जीवों को सहेजने के प्रति किस तरह संजीदा है। एक देश से चीते लाने के लिए ही बोइंग को भेजा जाता है और इसे एक राष्ट्रीय कार्यक्रम की तरह अंजाम दिया जाता है।

जाहिर है, इससे जहां पर्यटन की संभावनाएं बढ़ती है, वहीं प्रकृति के बीच भी सामंजस्य की स्थापना होती है। प्रधानमंत्री ने कहा भी कि दशकों पहले, जैव-विविधता की सदियों पुरानी जो कड़ी टूट गई थी, विलुप्त हो गई थी, आज हमें उसे फिर से जोडऩे का मौका मिला है। आज भारत की धरती पर चीता लौट आया है। मोदी का यह कथन पूरे देश की अंतर्निहित सोच को सामने लाता है कि इन चीतों के साथ ही भारत की प्रकृति प्रेमी चेतना भी पूरी शक्ति से जागृत हो उठी है।  

उनका यह कहना देश की पीड़ा को स्वर देता है कि हमने 1952 में चीतों को देश से विलुप्त तो घोषित कर दिया, लेकिन उनके पुनर्वास के लिए दशकों तक कोई सार्थक प्रयास नहीं हुआ। आज आजादी के अमृत काल में अब देश नई ऊर्जा के साथ चीतों के पुनर्वास के लिए जुट गया है। यह बात सही है कि, जब प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण होता है तो हमारा भविष्य भी सुरक्षित होता है, विकास और समृद्धि के रास्ते भी खुलते हैं।

भारत वह देश है, जहां वन्य जीवों को प्रकृति का उपहार समझ कर उन्हें पूजा जाता है और उनका संरक्षण होता है। देश में बिश्नोई समाज काले हिरण को अपने परिवार के सदस्यों की भांति मानता और उनकी रक्षा करता है। हिंदू धर्म में गाय की माता कहकर पूजा होती है। हालांकि यह और बात है कि गाय आजकल सबसे ज्यादा प्रताड़ना झेलने वाला घरेलू पशु बन गया है।

यहां वन्य जीवों और घरेलू पशुओं के बीच तुलना करना मकसद नहीं है, लेकिन अगर जीवों पर विचार हो रहा है तो हमें गायों के कचरे के ढेर में मुंह मारने और उनकी भयंकर दुगर्ति को रोकने के लिए प्रयास करने होंगे। बहरहाल, केंद्र एवं राज्य सरकारों को पर्यावरण संरक्षण के और बड़े उपायों पर काम करना होगा वहीं देश के नागरिकों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।