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5 करोड़ से ज्यादा खर्च कर विदेश नीति का बजाया दुनिया में डंका, s.jaishankar का ऐसा है कारनामा

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एस जयशंकर अभी तक के सबसे सफल भारतीय विदेश मंत्री

 

#s. jaishankar latest news, updates in hindi : नई दिल्ली : पूरी दुनिया में उथल-पुथल मची है। वे देश  जो कभी एक-दूसरे के नजदीक माने जाते थे, अब विरोधी हैं। विरोधी एक जगह नजर आ रहे हैं। ऐसे में भारत जोकि दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है, कि विदेश नीति की पूरे विश्व में चर्चा है। माेदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान भारतीय विदेश नीति ने जो ऊंचाईयां हासिल की हैं, उनका श्रेय जाता है विदेश मंत्री एस जयशंकर को। एस जयशंकर विदेश सेवा के पूर्व अधिकारी हैं और उनकी अप्रोच एक राजनेता की नहीं अपितु एक राजनयिक यानी डिप्लोमेट की है। वे सीधी बात करते हैं और यही देश और दुनिया के बाकी देशों को पसंद आ रही है।

 

एक साल में  विदेश दौरों पर खर्च कर दी इतनी रकम 

मोदी सरकार ने पिछले एक साल के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर के विदेश दौरों पर 5,25,91,827 रुपये खर्च किए हैं। राज्यसभा में विदेश मंत्रालय के एक लिखित जवाब के अनुसार, विदेश यात्राओं का उद्देश्य विदेशों के साथ घनिष्ठ संबंधों को बढ़ावा देना और क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर भारत की भागीदारी को बढ़ावा देना रहा है। ऐसी यात्राओं के द्वारा भारत अपने राष्ट्रीय हित को पूरा करता है और विदेश नीति के उद्देश्यों को लागू करता है। इन यात्राओं से उच्चतम स्तर पर विदेशी भागीदारों के बीच क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर भारत के दृष्टिकोण की समझ बढ़ी है।

इन यात्राओं का भारत को मिला यह फायदा

इन यात्राओं ने भारत को भागीदार देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने और भारत के दष्टिकोण को सामने रखने और सुधारवादी बहुपक्षवाद, शांति और सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, अंतरराष्ट्रीय अपराध, आतंकवाद, साइबर सुरक्षा, ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा आदि जैसे वैश्विक मुद्दों पर एजेंडे को आकार देने में सक्षम बनाया है, जबकि वैश्विक मुद्दों को संबोधित करने के लिए भागीदारों के लिए भारत के अपने अनूठे समाधानों की पेशकश की है।

केंद्र सरकार का दावा है कि इन दौरे और उनमें हुए समझौते भारत को व्यापार और निवेश, प्रौद्योगिकी और रक्षा सहयोग सहित कई क्षेत्रों में भागीदार देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने में सक्षम बनाते हैं। इस तरह के परिणाम आर्थिक विकास और हमारे लोगों की भलाई को बढ़ावा देने के लिए भारत के राष्ट्रीय विकास एजेंडे में भी योगदान करते हैं और जी20 जैसे मंचों में विकासशील देशों के हितों को सामने रखते हैं।

 

एस जयशंकर ने कैसे रखा दुनिया के सामने भारत का पक्ष
भारत मौजूदा समय में अगर विश्व में महाशक्ति के रूप में प्रस्तुत हो रहा है तो इसमें विदेश मंत्रालय का बड़ा हाथ है। बतौर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत का वह चेहरा विश्व के सामने रखा है जोकि सुलझा हुआ और संभावनाओं से भरा है। जी-20 देशों की अध्यक्षता मिलने के पीछे भी भारतीय विदेश नीति का ही हाथ है। भारत की विदेश नीति पश्चिमी देशों के प्रति दबी हुई रही है, पश्चिमी देशों की आलोचना करना बड़ा जोखिम लेना होता था, लेकिन मौजूदा विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पश्चिमी देशों के प्रति आक्रामक रूख अपनाया है और इसका नमूना रूस-यूक्रेन जंग के दौरान देखने को मिला है। 

 

रूस-यूक्रेन में से किसे चुनता भारत 

यूक्रेन-रूस जंग में भारत के लिए किसी पक्ष को चुनना बहुत मुश्किल रहा। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार एक तरफ पश्चिम और यूरोप से भारत की रणनीतिक साझेदारी है तो दूसरी ओर रूस से पारंपरिक संबंध। इस जटिल परिस्थिति में एस जयशंकर ने बिल्कुल सीधा और स्पष्ट रुख़ अपनाते हुए कहा कि रूस से आयात पर पश्चिम और यूरोप की आपत्ति पाखंड के सिवा कुछ नहीं है। भारत में एस जयशंकर के इस रुख़ की काफ़ी प्रशंसा हुई. हालाँकि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की आक्रामकता को लेकर मोदी सरकार की विदेश नीति की आलोचना भी हो रही है। 

 

नहीं अपनाया गुटनिरपेक्षता को

यूक्रेन संकट के दौरान भारत ने खुद को गुटनिरपेक्ष नीति के तहत किसी खेमे में नहीं जाने दिया। गुटनिरपेक्षता भारत की विदेशी नीति की बुनियाद मानी जाती है। इसकी शुरुआत भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने की थी। तब दुनिया दो ध्रुवीय थी। एक महाशक्ति अमेरिका था और दूसरी सोवियत यूनियन।  इस बार भी जब यूक्रेन पर रूस ने हमला किया, तो भारत पर दबाव था। यूक्रेन पर हमले के बाद दुनिया ध्रुवीकृत हुई। एक गुट अमेरिका और ईयू का बना और दूसरा रूस और चीन का। कई जानकार कहते हैं कि भारत नॉन अलाइनमेंट (गुट निरपेक्ष) के बदले अब मल्टी-अलाइनमेंट (बहुपक्ष) की नीति पर चल रहा है। 

मिसाल के तौर पर भारत चीन और रूस की अगुआई वाले ब्रिक्स, एससीओ और आरआईसी में भी है और अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान के गुट क्वॉड में भी। लेकिन ये बात भी कही जा रही है कि जो हर गुट में होता है, वह किसी भी गुट में नहीं होता है। मल्टीअलाइनमेंट टर्म का सबसे पहले इस्तेमाल 2012 में शशि थरूर ने किया था।

तब शशि थरूर मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री थे। शशि थरूर ने कहा था, ''नॉन अलाइनमेंट यानी गुटनिरपेक्ष नीति अपना प्रभाव खो चुकी है। 21वीं सदी मल्टी-अलाइनमेंट की सदी है. भारत समेत कोई भी देश दूसरे देशों से सहयोग के बिना आगे नहीं बढ़ सकता है। हम एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं, जहाँ अलग नहीं रहा जा सकता, भारत भी ज़्यादा वैश्विक हुआ है.'' विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस टर्म के लिए शशि थरूर को श्रेय भी दिया था। जयशंकर के श्रेय देने के बाद शशि थरूर ने उन्हें शुक्रिया कहा था। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारत का रुख़ राष्ट्र हित से तय होगा। भारतीय विदेश मंत्री ने कहा था, ''जो उम्मीद करते हैं कि भारत उनका पक्ष ले उनसे यही कहूँगा, अगर आपकी उम्मीदों पर हम खरे नहीं उतरे तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है।''