अमरनाथ की यात्रा की हुई शुरुआत, जानें शिव जी ने पार्वती जी को कौन सी कथा सुनाई थी?

Amarnath yatra: अमरनाथ यात्रा की शुरुआत 3 जुलाई से हो गई है। हर साल लाखों भक्त बाबा बर्फानी के दर्शन करने अमरनाथ पहुंचते हैं। अमरनाथ से जुड़ी धार्मिक कथा भी बेहद रोचक है। माना जाता है कि अमरनाथ में माता पार्वती को अमर कथा सुनाने से पहले भगवान शिव ने नंदी, नाग, गंगा, चंद्रमा और गणेश जी का त्याग कर दिया था। इसका कारण क्या था और जिन जगहों पर नंदी, नाग आदि को शिव जी ने छोड़ा उन स्थानों को क्या कहा जाता है।
सब त्यागकर किया था अमरनाथ की गुफा में प्रवेश
भगवान शिव ने अमरनाथ पहुंचने से पहले पहलगाम में सबसे पहले नंदी का त्याग किया था। इसके बाद भगवान शिव ने अपने मस्तक पर विराजमान चंद्रमा का त्याग किया था। जहां शिव जी ने शिव जी ने चंद्रमा का त्याग किया उस स्थान को आज चंदनवाड़ी के नाम से जाना जाता है। इसके बाद शिव जी ने वासुकी नाग का त्याग किया था। जहां नाग का त्याग भोलेनाथ के द्वारा किया गया वह स्थान आज शेषनाग के नाम से जाना जाता है। अमरनाथ पहुंचने से पहले भगवान शिव ने अपनी जटाओं से गंगाजी का त्याग भी कर दिया था। जहां गंगा जी का त्याग किया गया उस जगह को पंचतरणी कहते हैं। वहीं कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान गणेश का त्याग भी भगवान शिव ने अमरनाथ पहुंचने से पहले कर दिया था। गणेश जी को शिवजी ने यह कार्यभार सौंपा था कि जब तक अमर कथा पूरी न हो जाए तब तक कोई गुफा में प्रवेश न करे। माना जाता है कि महागुण पर्वत पर भगवान शिव ने गणेश जी को छोड़ दिया था। अमरनाथ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को इन सभी स्थानों के दर्शन होते हैं और इन स्थानों का दर्शन करने से भक्तों को आत्मिक शांति मिलती है।
जब महादेव ने सुनाई थी अमरनाथ की कथा
शिवपुराण में अमरनाथ की कथा वहां से शुरू होती है, जब माता पार्वती महादेव से पूछती हैं कि आप तो अजर, अमर, अविनाशी और अजन्मा हैं. न आपका कोई अंत है और न ही प्रारंभ. लेकिन शिव के लिए शक्ति को ही बार बार क्यों जन्म लेना पड़ता है? हर बार उनको ही जन्म लेकर कठोर तप और परीक्षा क्यों देनी होती है? आपको पति स्वरूप में पाने के लिए कठोर तपस्या करनी पड़ती है? आपके अमर होने का रहस्य क्या है?माता पार्वती भगवान शंकर से अमरत्व का रहस्य जानने का हठ करने लगीं। तो आदिशक्ति के इस हठ से महादेव विवश हो गए। तब उन्होंने माता पार्वती को अमर कथा सुनाने का निर्णय लिया। उन्होंने यह कथा सुनाने के लिए एक एकांत और शांत गुुा का चुनाव किया। वे अपने सभी प्रिय गणों, पुत्र गणेश और पंचतत्वों को त्यागकर माता पार्वती के साथ उस गुफा में चले गए.उस एकांत गुफा में भगवान भोलेनाथ ने अमर कथा सुनानी प्रारंभ की।
महादेव उनको कथा सुनाते तो माता पार्वती बीच बीच में हुंकार भरती थीं, इसका अर्थ था कि वह कथा ध्यान से सुन रही हैं। कथा सुनते-सुनते माता पार्वती सो गईं। उस गुफा में एक शुक था, जो उस कथा को सुन रहा था। जब माता पार्वती सो गईं, तो उस शुक ने कथा के बीच बीच में हुंकार भरना शुरू कर दिया।वे समझ गए कि यह अमर कथा इस शुक्र ने सुनी है. इससे भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए। उन्होंने उस शुक का वध करने के लिए त्रिशूल छोड़ दिया। मृत्यु के डर से शुक तीनों लोकों में भागने लगा। वह भागते-भागते वेद व्यास के आश्रम में पहुंचा। वहां पर उसने अपना लघु रूप धारण किया और वेद व्यास जी की पत्नी के मुख से होकर पेट में चला गया। वह 12 साल तक उनके गर्भ में रहा।