भारत में 23 सप्ताह के समय से पहले जन्मे शिशुओं ने रचा इतिहास: अमृता अस्पताल, फरीदाबाद के डॉक्टरों ने किया असंभव को संभव

भारत में 23 सप्ताह के समय से पहले जन्मे शिशुओं ने रचा इतिहास: अमृता अस्पताल, फरीदाबाद के डॉक्टरों ने किया असंभव को संभव

23-week premature babies create history in India

23-week premature babies create history in India

फरीदाबाद। दयाराम वशिष्ठ: 23-week premature babies create history in India: अमृता अस्पताल, फरीदाबाद के डॉक्टरों ने एक अभूतपूर्व चिकित्सकीय उपलब्धि हासिल की है जिसने नवजात चिकित्सा की सीमाओं को चुनौती दी है। अस्पताल ने मात्र 23 सप्ताह में जन्मे शिशुओं को पूर्णत: स्वस्थ अवस्था में जीवित रखकर इतिहास रचा है। यह भारत में अब तक का सबसे कम आयु वाले शिशुओं का सफल जीवन-रक्षण है, जो केवल 500–600 ग्राम वजन के साथ पैदा हुए थे।

पहला मामला 23 सप्ताह और 5 दिन के एक शिशु का था जिसका वजन मात्र 550 ग्राम था। जन्म के बाद लगभग 30 मिनट तक उसे ऑक्सीजन और ग्लूकोज़ नहीं मिला, और उसे गैर-जीवित घोषित कर दिया गया। लेकिन शिशु ने सांस लेना जारी रखा, जिसके बाद परिजन उसे अमृता अस्पताल लेकर आए। 90 दिन तक एनआईसीयू में इलाज के बाद, शिशु का वजन बढ़कर 2200 ग्राम हो गया और उसे पूरी तरह सामान्य मस्तिष्क और फेफड़े की कार्यक्षमता के साथ घर भेजा गया — जो कि चिकित्सा इतिहास में एक दुर्लभ उपलब्धि है।

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इसके बाद एक और रिकॉर्ड बना — 23 सप्ताह और 6 दिन में जन्मे जुड़वां (लड़का और लड़की) शिशु, जो 41 वर्षीय माँ से जन्मे थे, बिना किसी न्यूरोलॉजिकल या फेफड़ों की जटिलता के स्वस्थ हुए।
जुड़वां शिशु भारत के सबसे कम उम्र में जीवित रहने वाले बच्चे बन गए हैं। दोनों बच्चे आज पूरी तरह स्वस्थ हैं। डॉ. हेमंत शर्मा, वरिष्ठ नवजात शिशु रोग विशेषज्ञ, अमृता अस्पताल, फरीदाबाद ने कहा कि“आज हमने यह साबित किया है कि जब विज्ञान, करुणा और परिवार का विश्वास साथ हो, तो चमत्कार दोहराए जा सकते हैं। ये बच्चे सिर्फ जीवित नहीं बचे, बल्कि पूरी तरह स्वस्थ और सामान्य जीवन जी रहे हैं। यह भारतीय नवजात चिकित्सा के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है।”*

शिशुओं की मां ने कहा, *“जब डॉक्टरों ने कहा कि कोई उम्मीद नहीं है, तो हमारा दिल टूट गया। लेकिन अमृता की टीम की बदौलत आज दोनों  हमारी गोद में मुस्कुरा रहे हैं।
खास बात यह रही कि पहले बच्चे को केवल 48 घंटे वेंटिलेशन पर रहना पड़ा, जबकि आमतौर पर 23 सप्ताह के शिशुओं को 2–3 सप्ताह की जरूरत होती है। केवल छह दिनों में शिशुओं को पूरी तरह माँ का दूध दिया जाने लगा, जो कि सामान्य से आधे समय में संभव हुआ।

इन सफलताओं के साथ अमृता अस्पताल ने भारत में नवजात चिकित्सा के क्षेत्र में एक नई दिशा स्थापित की है।  अस्पताल अब उन कुछ केंद्रों में शामिल हो गया है जो 23 सप्ताह से भी पहले जन्मे शिशुओं की इंटैक्ट सर्वाइवल — यानी बिना किसी मस्तिष्क या फेफड़ों की क्षति के स्वस्थ जीवन — सुनिश्चित कर रहे हैं।