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Editorial: महासमर के लिए अपने-अपने गठजोड़ में जुटी पार्टियां

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Parties engaged in their own alliance for Mahasamar

Parties engaged in their own alliance for Mahasamar देश में विपक्ष और सत्तापक्ष के बीच अपने-अपने सहयोगी दलों को लेकर गठजोड़ की जो कवायद जारी है, वह जहां दिलचस्प है वहीं अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनावों के आर या पार होने के भी संकेत दे रही है। यह वह समय है, जब रूठे हुओं का मनाया जा रहा है और जो पहले से साथ थे, उन्हें और ज्यादा सघनता से नजदीक लाया जा रहा है। बेंगलुरु में कांग्रेस की अगुवाई में हो रही विपक्षी दलों की बैठक में कहा गया कि महासमर के लिए अब तटस्थता के लिए कोई जगह नहीं है। यानी राजनीतिक दलों को यह विचार कर लेना होगा कि उन्हें इधर रहना है या उधर। एक तरफ भाजपा है और दूसरी तरफ कांग्रेस। भाजपा ने राजग का गठन कर उसमें क्षेत्रीय दलों को शामिल करते हुए सत्ता की तरफ कदम बढ़ाए थे, हालांकि साल 2019 के आम चुनाव में भाजपा को एकल बहुमत मिला तो उसे संभव है, सहयोगियों की जरूरत महसूस होना खत्म हो गई थी। लेकिन अब जब कांग्रेस ने अपने टोले को बड़ा कर लिया है और उसमें आम आदमी पार्टी जैसा नवोदित दल भी शामिल हो रहा है तो यह भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण हो गया है। ऐसे में उसे जहां अपने सहयोगियों की याद आ रही है वहीं नए सहयोगियों को जोड़ने के लिए भी वह बेताब दिख रही है।

सत्ताधारी भाजपा बेशक, विपक्षी दलों पर न नीयत, न नीति और न ही नेता होने का आरोप लगाए, लेकिन यह निश्चित है कि विपक्ष की एकजुटता ने उसे परेशान कर दिया है। साल 2019 की बात करें तो विपक्ष की स्थिति खंड-खंड वाली थी। उनके अंदर एकता का अभाव था और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी भी अपनी परिपक्वता को खो चुकी थी। उसके नेताओं ने अनचाहे बयान दिए और जनता के समक्ष खुद को सही तरीके से पेश नहीं कर पाए। इसके चलते भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लाभ मिला और वे यह साबित करने में कामयाब हो गए कि उनके बगैर देश नहीं चलाया जा सकता।

हालांकि बीते वर्षों में कांग्रेस ने खुद को संवारा है और उसके नेताओं ने उन कमियों को दूर करने की हरसंभव कोशिश की है, जिनकी वजह से पार्टी को नुकसान हो रहा था। पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से न केवल देश को एक प्लेटफार्म पर पेश किया अपितु कांग्रेस के संबंध में नजरिये को भी परिवर्तित किया। राहुल गांधी ने जिस परिश्रम से इस यात्रा को पूरा किया और देश के लोगों के समक्ष विकल्प बनने का सामर्थ्य पेश किया, उसकी बदौलत पार्टी को हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में जीत नसीब हुई। जनता का दृष्टिकोण ही सबकुछ होता है और मौजूदा समय में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल अगर एकजुट होकर भाजपा के मुकाबले में खड़ा हो रहे हैं तो यह समय की मांग को दर्शाता है। लोकतंत्र में सभी की अपनी-अपनी राय होती है, इसके जीवित और जीवंत बने रहने के लिए यह जरूरी होता है कि विरोध की आवाजें भी बुलंद हों।

हालांकि प्रश्न यही है कि गठबंधन करके सरकारें तो पहले भी बनती रही हैं, लेकिन उन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी खूब लगे हैं। देश के जनमानस में यह विचार पूर्णतया ठोस आकार ले चुका है कि बीते दस वर्षों में देश ने जो तरक्की हासिल की है, वह मौजूदा मोदी सरकार की वजह से की है या फिर यह सामान्य प्रक्रिया थी। वास्तव में एक सरकार ही वह शक्ति होती है, जोकि जनता को प्रेरित और प्रभावित करती है।

पूरे विश्व में भारत की विदेश नीति की अब धमक है, वह झुकने और सामर्थ्य हीन होने का संकेत नहीं देती अपितु प्रबल और सर्वशक्तिमान होने का संदेश देती है। देश की आर्थिक विकास दर भी लगातार आगे बढ़ रही है। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी में भी देश मजबूती से अपने पैरों पर खड़ा रहा, बीते दस वर्षों में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा है और देश में नौकरियों की संख्या बढ़ी है। ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसियों ने अनेक कार्रवाई अंजाम दी हैं। जाहिर है, बीते वर्षों में भी यह एजेंसियां अपनी जगह थी, लेकिन उस दौर में आरोप यह लगता था कि इन एजेंसियों का प्रयोग सरकार में बैठे ओहदेदारों द्वारा किया जाता है, आरोप अब भी लगते हैं, लेकिन पहले की तुलना में मौजूदा समय में यह एजेंसियां ज्यादा सक्षम नजर आ रही हैं।

दरअसल, विपक्ष के राजनीतिक दलों को एकजुटता के साथ देश के समक्ष यह भी साबित करना होगा कि यह गठजोड़ देश को आगे ले जाने के लिए होगा, न कि अपने मनोरथ पूरे करने के लिए। सत्ता किसी का भी मन बदल देती है, विपक्ष में अनेक ऐसे दल हैं, जिनके मुखिया भ्रष्टाचार में जेल की सजा काट चुके हैं। देश यह भी जानना चाहता है कि आखिर बगैर आर्थिक तरक्की सेवाओं और सुविधाओं को नि:शुल्क करने से ही क्या जनकल्याण होगा। वैसे यह दौर नई संभावनाओं का है, जनता सर्वोच्च न्यायकर्ता है, वह सब देख और समझ कर ही निर्णय लेगी, इसकी आशा की जानी चाहिए।

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