हरियाणा के 22 जिलों और 34 उप-मण्डलों में जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों के माध्यम से लोक अदालतों का आयोजन

हरियाणा के 22 जिलों और 34 उप-मण्डलों में जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों के माध्यम से लोक अदालतों का आयोजन

Haryana Legal Services Authority

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दूसरी राष्ट्रीय लोक अदालत में 5 लाख से अधिक मामलों का किया निपटारा

चण्डीगढ़, 12 जुलाई: Haryana Legal Services Authority: हरियाणा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (एचएएलएसए) ने आज माननीय न्यायमूर्ति लीजा गिल, न्यायाधीश, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय एवं कार्यकारी अध्यक्ष, एचएएलएसए के मार्गदर्शन में पूरे हरियाणा में दूसरी राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया। लोक अदालत का आयोजन हरियाणा के 22 जिलांे और 34 उप-मण्डलों में जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों के माध्यम से किया गया। 
एक सरकारी प्रवक्ता ने इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि श्री रजनीश कुमार शर्मा, वरिष्ठ अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, जिला न्यायालय, करनाल की अध्यक्षता में कश्मीर बनाम मेसर्स सिमर की 11 वर्ष पुरानी आपराधिक अपील लंबित थी, का निपटारा किया गया। 
मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) के तहत अजय बनाम कुबेर और आईसीआईसीआई लोम्बार्ड इंश्योरेंस कंपनी नामक मामला, जो 2020 से लंबित था, याचिकाकर्ता को विकलांगता प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया था। मामले की तात्कालिकता और संवेदनशीलता को समझते हुए, माननीय जिला एवं सत्र न्यायाधीश-सह-अध्यक्ष, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, फरीदाबाद ने समाधान के लिए सक्रिय कदम उठाए और लोक अदालत की व्यवस्था के तहत अदालत परिसर में मौजूद एक चिकित्सा विशेषज्ञ ने याचिकाकर्ता की तुरंत जांच की और 41 प्रतिषत की सीमा तक स्थायी विकलांगता का आकलन किया। मामला सौहार्दपूर्ण ढंग से 6,50,000 रुपये की राशि पर निपट गया, जो याचिका में किए गए 3,00,000 रुपये के प्रारंभिक दावे से अधिक था।  
विभिन्न न्यायालयों में मुकदमे-पूर्व और लंबित दोनों प्रकार के मामलों की सुनवाई के लिए कुल 170 पीठों का गठन किया गया था, जिनमें दीवानी विवाद, वैवाहिक मामले, मोटर दुर्घटना दावे, बैंक वसूली मुकदमे, चेक बाउंस मामले, यातायात चालान, समझौता योग्य आपराधिक अपराध और स्थायी लोक अदालतों के समक्ष लंबित मामले जैसे विविध मामले शामिल थे। 6 लाख से अधिक मामले निपटारे के लिए इन पीठों को भेजे गए थे।
राष्ट्रीय लोक अदालतों के आयोजन का उद्देश्य जनता को बिना किसी देरी या लंबी मुकदमेबाजी के, विवादों के सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए एक लागत प्रभावी और कुशल मंच प्रदान करना है। लोक अदालतों में पारित निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होते हैं।