पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध नहीं होना मानसिक प्रताड़ना, तलाक का आधार भी; हाई कोर्ट का फैसला

पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध नहीं होना मानसिक प्रताड़ना, तलाक का आधार भी; हाई कोर्ट का फैसला

Allahabad High Court

Allahabad High Court

प्रयागराज: Allahabad High Court: उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलाक के एक मामले में सुनवाई करते हुए अहम फैसला सुनाया है. अदालत ने तलाक को मंजूरी देते हुए टिप्पणी की है कि शादी के बाद जीवन साथी को संबंध बनाने से रोकना मानसिक क्रूरता है. यही नहीं, हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की एक नजीर के आलोक में माना कि यह मानसिक क्रूरता पति और पत्नी के बीच तलाक के लिए मजबूत आधार है. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने विवाह को भंग कर दिया है.

यह फैसला न्यायमूर्ति सुनीत कुमार और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार (चतुर्थ) की युगल खंडपीठ ने दिया है. यह मामला परिवार न्यायालय के फैसले के खिलाफ पीड़ित पति रविंद्र प्रताप ने हाईकोर्ट में दाखिल किया था. हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 के तहत परिवार न्यायालय ने तलाक की याचिका खारिज कर दी थी. लेकिन अदालत ने मेरिट पर मामले की सुनवाई करते हुए पीड़ित पति के पक्ष में फैसला दिया है. इस मामले में पीड़ित रविंद्र प्रताप ने कोर्ट को बताया कि उसकी शादी मई 1970 में हुई थी.

शादी के कुछ समय बाद ही उसकी पत्नी ने विरोधी तेवर अपना लिए और ससुराल छोड़ कर मायके चली गई. पीड़ित पति ने बताया कि छह महीने बाद वह अपनी पत्नी को मनाने के लिए ससुराल गया और उसे वैवाहिक जीवन के दायित्वों का निर्वहन करने के लिए ससुराल लौटने की गुजारिश की. लेकिन उसकी पत्नी ने साफ मना कर दिया. हालांकि जुलाई 1994 में पंचायती तौर पर समझौता हुआ और सामुदायिक रीति-रिवाजों के मुताबिक 22000 रुपए गुजारा भत्ते पर तलाक हो गया.

पीड़ित ने बताया कि इसके बाद उसने लंबे समय सेक्सुअल संबंध नहीं बनाने के साथ ही पत्नी की क्रूर मानसिकता के आधार पर अदालत में तलाक की अर्जी लगाई और दूसरी शादी कर ली. पीड़ित ने बताया कि कई तारीख बीतने के बाद उसकी पत्नी अदालत में हाजिर नहीं हुई. ऐसे में परिवार न्यायालय ने इसे एक पक्षीय मामला करार देते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी. विवश होकर पीड़ित ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जहां से तकनीकी मामलों की पड़ताल करते हुए हाईकोर्ट ने पीड़ित को तलाक का हकदार बताते हुए ना केवल याचिका स्वीकार की, बल्कि त्वरित सुनवाई करते हुए पीड़ित के पक्ष में फैसला दिया है.

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