'सिविल जज बनने के लिए 3 साल वकालत अनिवार्य नहीं', सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त किया MP High Court का फैसला

Judicial Recruitment
नई दिल्ली: Judicial Recruitment: सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा पारित उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें सिविल जज के पदों पर भर्ती के लिए तीन साल की लीगल प्रैक्टिस अनिवार्य कर दी गई थी. जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने मंगलवार को यह फैसला सुनाया.
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ओर से अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे ने पीठ के समक्ष तर्क दिया कि दोबारा परीक्षा कराना "असंवैधानिक और अव्यावहारिक" है. दुबे ने जोर देकर कहा कि इससे मुकदमेबाजी का सिलसिला शुरू हो जाएगा. आवेदनों पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा अपनी खंडपीठ के फैसले को चुनौती देने वाली अपील को स्वीकार कर लिया.
सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा 13 जून, 2024 को अपनी खंडपीठ द्वारा पारित उस आदेश के खिलाफ दायर अपील पर पारित किया, जिसमें उसे 14 जनवरी, 2024 को आयोजित प्रारंभिक परीक्षा में उन सभी सफल उम्मीदवारों को छांटने या बाहर करने का निर्देश दिया गया था, जो संशोधित नियमों के तहत पात्रता मानदंडों को पूरा नहीं करते थे.
पिछले साल, सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें तीन साल की लीगल प्रैक्टिस की अनिवार्य आवश्यकता के बिना सिविल जजों के पदों पर भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई थी.
मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियम, 1994 में 23 जून, 2023 को संशोधन किया गया था, ताकि राज्य में सिविल जज भर्ती परीक्षा में बैठने के लिए तीन साल की प्रैक्टिस अनिवार्य हो सके. उच्च न्यायालय ने संशोधित नियमों को बरकरार रखा. हालांकि, भर्ती परीक्षा में चयनित नहीं होने वाले दो उम्मीदवारों द्वारा संशोधित नियमों के लागू होने पर पात्र होने का दावा करने और कट-ऑफ की समीक्षा की मांग करने के बाद मुकदमा शुरू हो गया.
उच्च न्यायालय ने इस पद पर भर्ती पर रोक लगाते हुए, संशोधित भर्ती नियमों के तहत पात्रता मानदंडों को पूरा नहीं करने वाले प्रारंभिक परीक्षा में सफल उम्मीदवारों को परीक्षा से बाहर करने का निर्देश दिया था.