Khattar government
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खट्टर सरकार के आठ वर्ष

Editorial

Eight years of Khattar government

हरियाणा में मनोहर लाल सरकार ने आठ वर्ष पूरे कर लिए हैं। इन आठ वर्षों में प्रदेश में विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति देखने को मिली है, लेकिन राज्य में अनेक ऐसे विषय अभी बाकी हैं, जिन पर काम किए जाने और उनको दुरुस्त करने की भी आवश्यकता है। वर्ष 2014 में प्रदेश की सत्ता में अपने बूते आई भाजपा के सामने जहां पूर्व सरकारों से अलग दिखने की चुनौती थी, वहीं जनता के भरोसे  पर भी उसे खरा उतर कर दिखाना था।

मुख्यमंत्री मनोहर लाल का शुरुआती पांच वर्ष का कार्यकाल अनुभव हासिल करने में बीता। इस दौरान अनेक ऐसे घटनाक्रम सामने आए, जब सरकार के संबंध में यह विचार किया गया कि सरकार और ज्यादा सक्षम होकर निर्णय लेती तो शायद ऐसा नहीं होता। डेरामुखी को सजा सुनाये जाने के बाद पंचकूला हिंसा इसका उदाहरण है। खैर, सरकारें अपने अनुभवों से सीखती हैं और मनोहर सरकार ने भी इसी रवायत पर चलते हुए काफी अनुभव बटोरा है।

अपनी सरकार के दूसरे कार्यकाल में मुख्यमंत्री मनोहर लाल कहीं ज्यादा सक्रिय और प्रभावी नजर आए हैं। उन्हें नवोदित जजपा के साथ गठबंधन करके सरकार चलानी पड़ रही है। गठबंधन सरकार का धर्म सामूहिक निर्णय होते हैं। दोनों दलों ने साथ चलते हुए सुशासन प्रदान करने का दावा किया है। सरकार ने निजी उद्योगों में 75 फीसदी नौकरियां हरियाणा मूल के लोगों को देने, परिवार पहचान पत्र के जरिए घर बैठे सरकारी योजनाओं का लाभ लेने, कर्मचारियों के लिए ऑनलाइन ट्रांसफर प्रणाली विकसित करने, अंत्योदय रोजगार मेले लगाना, खिलाडिय़ों को प्रोत्साहित करते हुए ओलंपिक पदक जीतने पर सम्मान राशि में बढ़ोतरी, शिक्षित पंचायतें गठित कराने, विदेशी निवेश को बढ़ाने, लिंगानुपात में सुधार, गांवों में 24 घंटे बिजली देने, बुढ़ापा पेंशन में बढ़ोतरी करने आदि को अपनी उपलब्धियों में शुमार किया है। हालांकि सरकार के इसी कार्यकाल में भ्रष्टाचार के भी दाग सामने आए हैं। लॉकडाउन के दौरान आबकारी विभाग में घोटाला भी सामने आया था, जिसकी जांच का कोई प्रतिफल नहीं निकला।
 

राज्य सरकार ने पर्ची-खर्ची बंद होने का दावा किया है, लेकिन नौकरियों में रिश्वत के आरोप खत्म नहीं हुए हैं। हरियाणा पब्लिक सर्विस कमीशन में भर्तियों के नाम पर रकम ऐंठते के आरोप में कर्मचारी गिरफ्तार हो चुके हैं। वहीं सरकार की ओर से एक लाख सरकारी नौकरी देने का दावा है, लेकिन राज्य में हर वर्ष 9 से 10 हजार कर्मचारी रिटायर भी हो रहे हैं, इसका अभिप्राय यह है कि पदों के भरने में ज्यादा फर्क नहीं है। राज्य में इस समय 1.82 लाख कर्मचारियों के पद खाली हैं। सत्ता पक्ष बेरोजगारी खत्म का दावा कर रहा है, लेकिन सीएमआई के आंकड़े बताते हैं कि हरियाणा में बेरोजगारी दर बीते अगस्त में 37.3 फीसदी तक पहुंच चुकी है। निश्चित रूप से युवाओं को रोजगार मिलना सबसे बड़ा मुद्दा होता है।

सरकार पर किसानों को एमएसपी, फसल मुआवजा, समय पर खाद-बीज देने, व्यापारियों की समस्याओं के निराकरण, प्रति व्यक्ति आय में कमी, बुजुर्गों की पेंशन कटने आदि आरोपों को भी झेल रही है। अगर संगठन की बात करें तो भाजपा के अंदर कार्यकर्ताओं में जो निराशा बढ़ी है। ऐसी चर्चा है कि निचले दर्जे के कार्यकर्ताओं की पार्टी में सुनवाई नहीं हो रही। उन्हें आगे बढऩे के अवसर प्राप्त नहीं हो रहे। निश्चित रूप से एक सफल सरकार के लिए सभी पक्षों पर काम किए जाने की जरूरत होती है।

मुख्यमंत्री मनोहर लाल और उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के समक्ष अगले दो वर्ष और हैं, जब उन्हें भ्रष्टाचार, एमएसपी, बेरोजगारी, कानून-व्यवस्था, महंगाई, शिक्षा-चिकित्सा के अलावा कार्यकर्ताओं में बढ़ रही नाराजगी की दूर करना एक बड़ी चुनौती होगी। आने वाले समय में जो कार्यकर्ता को सम्मान मिलना चाहिए था, उसमें कहां कमी रही है, उस पर आत्म चिंतन करने की जरूरत है।