टैरिफ पर लगा झटका तो दौड़े-दौड़े सुप्रीम कोर्ट पहुंचे डोनाल्ड ट्रंप, किस फैसले को दी चुनौती?

US Supreme Court

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वॉशिंगटन: US Supreme Court: ट्रंप प्रशासन ने टैरिफ को लेकर लड़ाई बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में ले जाकर न्यायाधीशों से अनुरोध किया कि वे जल्द से जल्द यह फैसला सुनाएं कि राष्ट्रपति के पास संघीय कानून के तहत व्यापक आयात कर लगाने का अधिकार है.

गौर करें तो यूएस में कई मुकदमे टैरिफ और अनियमित कार्यान्वयन को चुनौती दे रहे हैं. अमेरिकी टैरिफ ने वैश्विक बाजारों को हिलाकर रख दिया है. साथ ही अमेरिकी व्यापारिक साझेदारों और सहयोगियों को अलग-थलग कर दिया है.

ट्रंप सरकार ने अपील अदालत के उस फैसले को पलटने का अनुरोध किया है, जिसमें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ज़्यादातर टैरिफ को आपातकालीन शक्तियों वाले कानून का अवैध इस्तेमाल बताया गया है. यह ट्रंप प्रशासन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में की गई कई अपीलों में से एक है, जिसे आकार देने में उन्होंने मदद की थी. साथ ही उम्मीद है कि ये अपील राष्ट्रपति की व्यापार नीति के एक अहम पहलू को न्यायाधीशों के सामने रखेगा.

गौर करें तो अमेरिकी संघीय सर्किट अपील अदालत ने फिलहाल टैरिफ को यथावत रखा है. लेकिन प्रशासन ने उच्च न्यायालय से बुधवार देर रात इलेक्ट्रॉनिक रूप से दायर और एसोसिएटेड प्रेस को उपलब्ध कराई गई याचिका में तुरंत हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया है. उम्मीद है कि गुरुवार को इस पर औपचारिक रूप से सुनवाई होगी.

सॉलिसिटर जनरल डी. जॉन सॉयर ने न्यायाधीशों से नवंबर की शुरुआत में इस मामले पर सुनवाई करने और दलीलें सुनने का अनुरोध किया. उन्होंने लिखा, "इस फैसले से उन विदेशी वार्ताओं पर अनिश्चितता का साया मंडरा रहा है, जिन्हें राष्ट्रपति पिछले 5 महीनों से टैरिफ के जरिए आगे बढ़ा रहे हैं. इसकी वजह से पहले से तय किए गए फ्रेमवर्क समझौते और चल रही बातचीत, दोनों ही खतरे में पड़ गए हैं. इस मामले में दांव इससे ज़्यादा बड़ा नहीं हो सकता."

लिबर्टी जस्टिस सेंटर के वरिष्ठ वकील और मुकदमेबाजी निदेशक जेफरी श्वाब ने कहा कि टैरिफ और अनिश्चितता से जूझ रहे छोटे व्यवसायों के लिए भी दांव ऊंचे हैं.

उन्होंने कहा, "ये गैर कानूनी टैरिफ छोटे व्यवसायों को गंभीर नुकसान पहुंचा रहे हैं और उनके अस्तित्व को खतरे में डाल रहे हैं. हम अपने ग्राहकों के लिए इस मामले के शीघ्र समाधान की आशा करते हैं।" व्यवसायों को दो बार जीत मिली है, एक बार व्यापार पर केंद्रित संघीय अदालत में मिली है. और अब अपील अदालत के 7-4 के फैसले से.

उनका मुकदमा उन कई मुकदमों में से एक है जो टैरिफ और अनियमित कार्यान्वयन को चुनौती देते हैं. इसने वैश्विक बाजारों को हिलाकर रख दिया है. अमेरिकी व्यापारिक साझेदारों और सहयोगियों को अलग-थलग कर दिया है. साथ ही उच्च कीमतों और धीमी आर्थिक वृद्धि की आशंकाओं को बढ़ा दिया है.

लेकिन ट्रंप ने यूरोपीय संघ, जापान और अन्य देशों पर नए व्यापार समझौतों को स्वीकार करने के लिए दबाव डालने के लिए भी इन शुल्कों का इस्तेमाल किया है. अगस्त के अंत तक टैरिफ से यूएस का कुल राजस्व 159 बिलियन डॉलर था, जो पिछले साल इसी समय की तुलना में दोगुने से भी अधिक है.

संघीय सर्किट के लिए अमेरिकी अपील न्यायालय के अधिकतर न्यायाधीशों ने पाया कि 1977 का अंतर्राष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्ति अधिनियम, या IEEPA, ट्रंप को टैरिफ निर्धारित करने की कांग्रेस की शक्ति का अतिक्रमण करने की अनुमति नहीं देता. हालांकि, असहमति जताने वालों ने कहा कि यह कानून राष्ट्रपति को आपातकाल के दौरान बिना किसी स्पष्ट सीमा के आयात को विनियमित करने की अनुमति देता है.

इस फैसले में दो प्रकार के आयात कर शामिल हैं. इसको ट्रंप ने राष्ट्रीय आपातकाल घोषित करके उचित ठहराया है. अप्रैल में पहली बार घोषित टैरिफ और कनाडा, चीन और मेक्सिको से आयात पर फरवरी में टैरिफ लगाए गए.

गौर करें तो अमेरिकी संविधान कांग्रेस को टैरिफ सहित कर लगाने की शक्ति देता है. लेकिन दशकों से, सांसदों ने राष्ट्रपति को अधिकार सौंप दिए हैं. इसके साथ ही ट्रंप ने इस शक्ति शून्यता का भरपूर फायदा उठाया है. ट्रंप द्वारा लगाए गए कुछ टैरिफ, जिनमें विदेशी स्टील, एल्युमीनियम और ऑटोमोबाइल पर शुल्क शामिल हैं. ये सब अपीलीय अदालत के फैसले के दायरे में नहीं थे. इसमें ट्रंप द्वारा अपने पहले कार्यकाल में चीन पर लगाए गए टैरिफ भी शामिल नहीं हैं. चीन पर लगाए गए टैरिफ को डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बरकरार रखा था.

ट्रंप अन्य कानूनों के तहत टैरिफ लगा सकते हैं, लेकिन उनमें उनकी कार्रवाई की गति और गंभीरता पर अधिक सीमाएं हैं. सरकार का तर्क है कि अगर टैरिफ हटा दिए जाते हैं, तो उसे वसूले गए कुछ आयात कर वापस करने पड़ सकते हैं, जिससे अमेरिकी खजाने को भारी नुकसान होगा.