Editorial: क्या इस बार आम चुनाव से पहले विपक्ष हो पाएगा एक!
- By Habib --
- Monday, 10 Apr, 2023
The opposition will be able to unite before the general elections!
Will the opposition be able to unite before the general elections this time! संभव है, महाराष्ट्र की राजनीति में अभी और उफान आना बाकी है। महाविकास अघाड़ी गठबंधन की सरकार के टूटने के बाद भाजपा के सहयोग से जिस प्रकार शिवसेना के बागियों ने नई सरकार का गठन किया, वह राज्य समेत पूरे देश को चौंका गया है। इसके बाद शिवसेना पर वर्चस्व की लड़ाई भी मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे जीत चुके हैं और अब बाला साहेब ठाकरे की बनाई शिवसेना एकनाथ शिंदे और उनके समर्थकों की हो चुकी है।
जाहिर है, राज्य में पूर्व शिवसेना, एनसीपी, कांग्रेस के लिए अब ज्यादा कुछ नहीं बचा रह गया है। ऐसी स्थिति में अगर एनसीपी प्रमुख शरद पवार अगर कोई नयी करवट लेने की तैयारी में है तो इसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए। तीन साल पहले एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने ही महाविकास अघाड़ी के निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी। जिसमें उनकी पार्टी एनसीपी समेत उद्धव गुट की शिवसेना और कांग्रेस शामिल हुई थी। अब सवाल उठाये जा रहे हैं कि क्या यह गठबंधन टूट जायेगा?
दरअसल, यह सवाल इसलिए पूछा जा रहा है, क्योंकि अब शरद पवार की पार्टी एनसीपी ने एपीएमसी (बाजार समिति) के चुनावों में लगभग पचास फीसदी जगहों पर विरोधी दल भाजपा के साथ हाथ मिला लिया है। महाविकास अघाड़ी (एमवीए) में टूट के लिए जिम्मेदार सिर्फ यही एक वजह नहीं है। इसके अलावा एमवीए में सहयोगी शिवसेना (यूबीटी) द्वारा ईवीएम से छेड़छाड़ का मुद्दा उठाया गया है। इस पर भी शरद पवार ने अलग रुख अपनाते हुए कहा कि ईवीएम से छेड़छाड़ संभव नहीं है। इसके पहले भी शरद पवार कई बार गठबंधन की विचारधारा से अलग बयान दे चुके हैं। कुछ दिन पहले शरद पवार ने वीर सावरकर मुद्दे पर राहुल गांधी के बयान से असहमति जताई थी। उसके बाद कांग्रेस द्वारा अडानी के मुद्दे पर जेपीसी के गठन की मांग पर भी अलग रुख अख्तियार किया था। पवार ने कहा कि जेपीसी से कुछ नहीं होगा मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की कमेटी से कराई जानी चाहिए। इसलिए अब यह अटकलें लगायी जा रही हैं कि क्या एमवीए में वाकई फूट पड़ चुकी है?
वास्तव में एपीएमसी यानी एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी महाराष्ट्र की शासन व्यवस्था में अहम योगदान रखती है। साल 1963 में एपीएमसी के तहत बाजार समिति का गठन किया गया था। इसका औचित्य किसानों को उनकी पैदावार का उचित दाम देने का प्रयास था। इसके अलावा बाजार समिति में फसल आने के बाद उसे सही तरीके से तौला भी जाए। जिससे किसानों के साथ किसी प्रकार की धोखाधड़ी न हो सके। यह बाजार की समिति की जिम्मेदारी होती है कि वह आने वाले की फसल को बेचने का उचित प्लेटफार्म उपलब्ध करवाए। साथ ही किसानों को रहने के लिए भी व्यवस्था करे। हालांकि अब बाजार समिति के चुनाव में जिस प्रकार एनसीपी भाजपा के साथ आकर खड़ी हो गई है, उससे कांग्रेस खेमे में चिंता बढऩा लाजिमी है। कांग्रेस पूरे देश में भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता का मंच तैयार करने में जुटी है।
हालांकि एनसीपी की ओर से अभी यह भी स्पष्ट नहीं है कि उसकी रणनीति बाजार समिति तक ही भाजपा के साथ रहने की है, या फिर विधानसभा एवं लोकसभा चुनाव में भी वह भाजपा के साथ आ सकती है। अगर ऐसा हुआ तो यह कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की शिवसेना के लिए बड़ा नुकसान होगा। गौरतलब है कि एनसीपी के नेता कांग्रेस की ओर से बुलाई गई उन बैठकों में शिरकत करते रहे हैं, जिनमें विपक्षी एकता का गठबंधन तैयार करने की जरूरत बताई जाती है। एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने बीते दिनों में कई क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं से मुलाकात की है। गौरतलब है कि तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष एवं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी इस प्रकार के गठबंधन को लेकर सक्रिय हैं। बीते दिनों राहुल गांधी की लोकसभा से सदस्यता खारिज होने के बाद विपक्षी दलों ने जिस प्रकार से विरोध प्रदर्शन किए हैं, उनमें टीएमसी के नेताओं ने भी प्रतिभागिता की है।
ममता बनर्जी स्वयं कई मौकों पर भाजपा के खिलाफ एक साझा मंच बनाने की बात कर चुकी हैं। हाल ही में उन्होंने कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत कई पार्टियों को एक तीन पन्नों का पत्र लिखा था, जिसमें एक फेडरल फ्रंट बनाने की बात कही गयी थी। ममता बनर्जी के अलावा तेलंगाना राष्ट्र समिति के समिति के प्रमुख चंद्रशेखर राव भी फेडरल फ्रंट बनाने की दिशा में काम कर चुके हैं। वास्तव में देश में विपक्षी एकता को लेकर संशय बना ही रहेगा। ऐसा बीते कई चुनावों में सामने आता रहा है। वर्ष 2014 के बाद से विपक्षी दल एक मंच पर आने का दावा करते रहे हैं, लेकिन फिर उनके निजी कारणों से यह एकता टूटती रही है। अब 2024 के लोकसभा चुनावों को लेकर फिर से विपक्ष की सक्रियता सही है, लेकिन सवाल यही है कि क्या ऐसा हो पाएगा?
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