Delhi Municipal Corporation

दिल्ली नगर निगम में आखिर यह क्या चल रहा है?

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Delhi Municipal Corporation दिल्ली नगर निगम में सत्ता के लिए आम आदमी पार्टी और भाजपा के पार्षदों के बीच चल रही रस्साकसी बेहद दुखद और लोकतांत्रिक परंपराओं को क्षति पहुंचाने वाली है। जनता के समक्ष तमाम मुद्दों और आश्वासनों को रखकर चुनाव जीते पार्षद किस प्रकार सदन में हंगामा कर रहे हैं, एक-दूसरे पर हमला कर रहे हैं, वह शर्मनाक है। सदन को सडक़ बनाने वाले पार्षदों के बीच लात-घूंसे चल रहे हैं और यह सब बीते तीन दिनों से जारी है। क्या कोई ऐसी व्यवस्था नहीं है कि पार्षदों को ऐसा करने से रोका जाए। वैसे, देखने में आया है कि देश की संसद और राज्यों की विधानसभाओं में भी अब बहस का स्तर गिर गया है। किसी बिल पर विरोध जताने के लिए सांसद अति पर उतर आते हैं।

राज्यसभा Rajya Sabha में कृषि कानूनों पर बिल पास होने के बाद विपक्ष के सांसदों ने हंगामा मचाया था। इसी प्रकार राज्यों की विधानसभाओं में भी हंगामे के आसार बनते हैं और विधायकों-मंत्रियों के बीच मारपीट जैसी नौबत आ जाती है। क्या यह माना जाए कि नगर निगम जैसी अपेक्षाकृत छोटी लोकतांत्रिक संस्था भी अब ऊपरी संस्थाओं की भांति संचालित हो रही हैं। वैसे, इसमें कोई दो राय नहीं है कि अब पंचायत से लेकर संसद तक सदस्यों के बीच ऐसे हालात बनने लगे हैं, जोकि चिंताजनक हैं। अब चर्चा नहीं होती, चिंतन नहीं होता, विपक्ष अपनी कहता है और सत्तापक्ष अपने ऊपर हुए हमले का जवाब देता है।

गौरतलब है कि दिल्ली नगर निगम Delhi Nagar Nigam देश का दूसरा सबसे बड़े बजट वाला निगम है। इस अमीर निगम के चुनाव के दौरान दिल्ली में विधानसभा चुनाव जैसे हालात बन गए थे। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एवं अन्य वरिष्ठ नेताओं ने जहां चुनाव में पूरा जोर लगा दिया था, वहीं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह समेत दूसरे वरिष्ठ मंत्री, सांसद, नेता भी भाजपा के लिए प्रचार करते नजर आए थे। भाजपा बीते तीन कार्यकाल से नगर निगम पर काबिज थी।

आप का आरोप रहा कि भाजपा ने नगर निगम में सत्ता होने के बावजूद देश की राजधानी में विकास नहीं किया। जाहिर है, मतदाता विकल्प पर नजर रखता है। उसकी चाह अपनी समस्याओं से छुटकारे की होती है और उसने इस बार आम आदमी पार्टी को चुन लिया। इस चुनाव में पार्टी को कुल 250 सीटों में से 134 पर जीत हासिल हुई। यह अपने आप में शानदार जीत रही। हालांकि भाजपा को भी 104 सीटें हासिल हुई। दोनों दलों के बीच सदन में यही टकराव की वजह है। दिल्ली नगर निगम में इस संघर्ष का एक और कारण चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी की शानदार जीत के बावजूद महापौर पद भाजपा द्वारा कब्जाना है।

इस समय चंडीगढ़ नगर निगम में भाजपा और आप के पार्षदों के बीच भारी द्वंद्व जारी रहता है। अब संभव है, पार्टी हाईकमान नहीं चाहेगा कि दिल्ली नगर निगम में सर्वाधिक सीटें जीतने के बावजूद आप को शिकस्त मिले। हालांकि इसी संघर्ष के बीच आप की पार्षद शैली ओबराय महापौर चुनी जा चुकी हैं।
   

सदन के अंदर मौजूदा संघर्ष की वजह स्थायी समिति सदस्यों का चुनाव है। आरोप है कि जब महापौर ने परिणाम की घोषणा करनी चाही तो भाजपा पार्षदों ने उनके समक्ष पहुंच कर हाथापाई की। इस दौरान एक पार्षद बेहोश हो गए वहीं एक महिला पार्षद की बांह पर किसी धारदार वस्तु से घाव हो गया और खून बहता देखा गया। मारपीट में कई पार्षद घायल हो गए और उन्हें अस्पताल ले जाया गया।  गौरतलब है कि भाजपा पार्षदों की ओर से यह भी आरोप लगाया गया है कि उसने और आप ने तीन-तीन सदस्यों का चुनाव जीत लिया है, लेकिन महापौर ने इसे स्वीकार नहीं किया।

हालांकि महापौर ने एक भाजपा पार्षद का वोट अवैध बताते हुए निरस्त कर दिया। यह भी सही है कि आप से एक पार्षद ने इसी हंगामे के बीच भाजपा को जॉइन किया है। सवाल हो सकता है कि आखिर इसी समय क्यों संबंधित पार्षद का मन बदला। पार्षदों में इस संघर्ष को उस भारी-भरकम बजट पर कुंडली मारकर बैठने की जुगत समझा जाए या फिर यह वास्तव में जनहित के लिए पार्षदों की जद्दोजहद है। कहना मुश्किल है कि यह क्या है, लेकिन आरोप-प्रत्यारोप का जैसा दौर जारी है और निगम सदन में जैसा माहौल बना हुआ है, लगता है कोई भी हार मानने को तैयार नहीं है।

यह वास्तव में बेहद दुखद मामला है। होना तो यह चाहिए कि चुनाव के बाद सहज तरीके से अपनी हार को स्वीकार करते हुए राजनीतिक दल विजेता को सत्ता पर काबिज होने दे, लेकिन राजनीति में ऐसा होता नहीं। नगर निगमों की सत्ता में तो ऐसा रामराज  संभव ही नहीं है। क्या आजादी के अमृतकाल का यही सबब है, क्या राजनीतिक परिपक्वता सिर्फ किताबों की बातें हैं। क्या दिल्ली के माननीयों का यह बर्ताव लोकतंत्र की बुनियाद मजबूत करने वाला है?

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