Trudeau is sacrificing Canada's interests for his own self-interest.

Editorial:अपने स्वार्थ के लिए कनाडा के हितों को बलि चढ़ा रहे ट्रूडो

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Trudeau is sacrificing Canada's interests for his own self-interest.

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का भारत पर एक खालिस्तानी आतंकी की हत्या का आरोप बेहद संगीन और दो देशों के संबंधों को खराब करने वाला है। यह समझ से परे कि बात है कि अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए प्रधानमंत्री ट्रूडो किस प्रकार अपने देश के हितों की बलि चढ़ा चुके हैं। उनका व्यवहार न केवल एक स्टेटसमैन के व्यवहार से उलट है, अपितु वे बचकाना तौर-तरीकों के लिए भी विवादित हैं। प्रधानमंत्री ट्रूडो के बयान के बाद अगर भारत सरकार ने अपने यहां से कनाडा के उच्चायुक्त को निष्कासित कर दिया है तो यह बेहद सही निर्णय है और इस मामले में देश को सरकार का साथ देना चाहिए। अगर प्रधानमंत्री ट्रूडो के देश की संसद में दिए गए बयान को ध्यान से समझा जाए तो उन्होंने उन तथ्यों की पूरी तरह से अनदेखी करते हुए यह बात कही है, जिसे भारत सरकार कनाडा सरकार के समक्ष पेश करती आई है।

भारत में खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर का जैसा रिकार्ड रहा है, वह एक कानून पसंद व्यक्ति का नहीं हो सकता। वह भारत में आतंकी गतिविधियों में लिप्त था, उस पर एनआईए ने 10 लाख रुपये का इनाम रखा था और पंजाब सरकार की ओर से कनाडा के प्रधानमंत्री को सौंपी गई खालिस्तानी आतंकियों की सूची में भी निज्जर का नाम था। इस सबके बावजूद प्रधानमंत्री ट्रूडो ने कनाडा में वोट के लिए एक आतंकी के नाम का सहारा लेते हुए भारत जैसे प्रगतिशील और आज के वैश्विक समाज में शक्तिशाली देश के साथ अपने देश के संबंधों को खराब कर लिया है।

अभी सप्ताह भर पहले ही कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो भारत में जी-20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा ले रहे थे। उनका विमान खराब हुआ तो दो दिन तक वे भारत में ही एक होटल में ठहरे रहे। इस दौरान भारत सरकार ने उन्हें प्रधानमंत्री के उपयोग में आने वाला विमान उपलब्ध कराने का ऑफर दिया लेकिन कनाडा सरकार ने इससे इनकार कर दिया। जस्टिन ट्रूडो पहले भी भारत आ चुके हैं और उनका गर्मजोशी से स्वागत होता रहा है। हालांकि ट्रूडो को इस बार मोदी सरकार ने वह तवज्जो नहीं दी जिसकी अपेक्षा संभव है उन्होंने की हो। हालांकि प्रश्न यही है कि जब भारत सरकार की चिंताओं की अनदेखी करते हुए कनाडा सरकार लगातार खालिस्तानी आतंकियों को शह दे रही हो, तब भी क्या उस सरकार को महत्व दिया जाना चाहिए।

बेशक कनाडा जी-20 का सदस्य देश है और उसे आमंत्रित करना एक मजबूरी रही होगी, लेकिन यह कूटनीति की जरूरत है कि संबंधित सरकार को इसका अहसास कराया जाए कि वह क्या भूल कर रही है। भारत में एक वह समय था, जब दूसरे देशों और विशेषकर पश्चिमी देशों के दबाव में फैसले लिए जाते थे, लेकिन मोदी सरकार ने जी-20 के जरिये एवं अपनी विदेश नीति में आक्रामकता लाकर यह जता दिया है कि भारत अब दबाव में काम नहीं करेगा और ऐसी सरकारों को उससे पुरजोर जवाब मिलेगा जोकि उसके हितों को नुकसान पहुंचाने वाले तत्वों को आश्रय दे रही हैं। कनाडा में बहुत पहले से भारत विरोधी तत्वों को संरक्षण मिलता आया है और भारत सरकार शुरुआत से कनाडा से इसकी मांग करती आई है कि वह ऐसा होने से रोके।

कनाडा के इस अप्रत्याशित रूख की वजह यह मानी जा रही है कि ट्रूडो इस समय खालिस्तान के समर्थन से ही सरकार में बैठे हैं और ऐसे में वह जानते हैं कि अगर फिर से सत्ता हासिल करनी है तो खालिस्तानियों को खुश करना पड़ेगा। ट्रूडो के भारत पर आरोप काफी बेतुके लगते हैं। लेकिन उन्हें मालूम है कि इन्ही आरोपों की वजह से उन्हें अगले चुनावों में कई भारतीय-कनाडाई नागरिकों के वोट भी हासिल होंगे। ट्रूडो के इन बेबुनियादी आरोपों ने दोनों देशों के बीच पहले से ही अस्थिर द्विपक्षीय संबंधों को और खराब कर दिया है।  

वास्तव में यह मामला बेहद संवेदनशील है और भारत सरकार को पूरी तैयारी के साथ चलना होगा। कनाडा सरकार इस मामले के जरिये दुनिया में भारत विरोधी ताकतों को एकजुट करने का प्रयास करेगी, हालांकि उसकी कुचाल का भारत पहले ही जवाब दे चुका है लेकिन भविष्य में किसी भी प्रकार से कनाडा और उसकी सरकार  के भारत विरोधी मंसूबे सफल नहीं होने देने चाहिए। भारत से संबंध खराब करने कनाडा सरकार अपने ही नागरिकों के लिए मुश्किल पैदा कर रही है। यह तय है कि भारत अपने यहां आतंकी गतिविधियों को किसी सूरत में स्वीकार नहीं करेगा और उन ताकतों को मुंहतोड़ जवाब देता रहेगा जो कि उसकी संप्रुभता को चुनौती देती हैं। कनाडा सरकार को अपनी भूल पर बाद में पछतावा होगा। उसके नागरिक यह मान भी रहे हैं, सवाल है कि शांति की बात करने वाला कनाडा क्या आतंकियों का सबसे बड़ा दोस्त नहीं बन गया है। 

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