Such Villages which are still away from the eyes of the Government

हरियाणा के ऐसे गांव जो अभी तक सरकार की नजरों से हैं दूर, पढ़ें क्या बोल रही पंचायतें

Such Villages which are still away from the eyes of the Government

Such Villages which are still away from the eyes of the Government

Such villages which are still away from the eyes of the government- केंद्रीय सरकार ग्रामीण विकास (Central Government Rural Development) को लेकर जितनी गंभीरता से योजनाओं को जन जन तक पहुंचाने में दिन रात एक कर रही है, उतना ही हरियाणा सरकार (Haryana Government) की ग्रामीण अंचलों को हाईटेक बनाने की कवायद धरातल पर नजर आ रही है। लेकिन कई गांव ऐसे हैं जहां ग्रामीण बसों की सीटी सुनने को बेताब हैं और अदद सडक को तरस रहे हैं। एकतरफ देशभर में आजादी के 75वें वर्षगांठ के उपलक्ष्य में अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। वहीं आज भी जिले कालका, मोरनी, बरवाला और रायपुररानी के कई गांव ऐसे हैं जहां के बाशिंदेे समस्याओं से जकड़े हुए हैं। यहां सडक-पानी-बिजली (Roads & Electricity) जैसी मूलभूत सुविधाएं तक नहीं पहुंच सकी हैं। पहाड़ अंचल में बसे मोरनी के लोग विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर हैं। तहसील बरवाला से 25 किमी दूर रायपुररानी के जिला परिषद के वार्ड 8 अंतर्गत गांव के लोग वर्षों से समस्याओं से जूझ रहे हैं। सडक, पानी, मेडिकल और परिवहन जैसी सुलभ जीवनयापन के लिए कोई सुविधा इन्हें उपलब्ध नहीं हैं।

हरियाणा के ऐसे गांव जहां आज भी नहीं आती हैं बसें (Such villages of Haryana where even today buses do not come)

र्ड प्रमुख प्रतिनिधि बहादुर राम ने अर्थ प्रकाश से बातचीत करते हुए बताया कि उन्हें मताधिकार तो मिला है लेकिन इसका फायदा चुनाव लडऩे वालों तक सीमित है। चुनाव (Haryana Election) जीतने के बाद सरपंच से लेकर विधायक-सांसदों को इस गांव की बेहतरी के लिए समय नहीं मिला। ये हालात यकायक नहीं बने, बल्कि आजादी के बाद से ही उपेक्षा का दंश इस गांव के लोग भोगते आ रहे हैं। ग्रामीणों के अनुसार एक से दूसरे गांव की कनेक्टिविटी (Connectivity) कच्चे रास्तों से है, जिसे पक्का करने के ग्रामीण पिछले 20 सालों से मांग करते आ रहे हैं। बरवाला ब्लॉक में पड़ते जाजपुर से बतौड़ के संस्कृति स्कूल (School) जाने में बच्चियों को कई किलोमीटर पैदल तय करना पड़ता है। ग्रामीण यहां बस सेवा शुरू करने की मांग करते करते थक चुके हैं। बहादुर कुमार ने कहा कि कोविड के बाद बसों के चलने की उम्मीद थी लेकिन वह भी पूरी नहीं हो सकी। वे जीएम ट्रांसपोर्ट को लिखित में देकर बेटियों को राहत देने का आग्रह करते आये मगर प्रशासन में सुनने वाला कोई नही। ग्रामीणों के लिए मेडिकल सुविधाएं सपनो तक सिमट कर रह गयी हैं।

यहां भी बेटियों के नसीब में लिखे धक्के 

कालका तहहसील के अतर्गरत गांव नवानगर-सिंसवा, बद्दी, नवानगर -चारनिया व पिंजोर (Navanagar-Sinswa, Baddi, Navanagar-Charnia and Pinjore) की आबादी लिंक रोड को सालों से तरस गयी है। पिंजौर ब्लॉक के नवानगर के मनदीप सिंह ने बताया कि नवानगर, सिसवां-बददी मार्ग या चरनिया का कालका में लिंक रोड खस्ता हाल हैं। नानक पुर ब्लॉक 3 के सरपंच पम्मी नेगी बताते हैं कि कोल फतेह सिंह के सरकारी स्कूल में पहुंचने के लिए बच्चियों को जंगल के रास्ते 6 किलोमीटर तय कर जाना पड़ता है। खस्ता हाल रास्तों में रोड़ी पत्थरों से ढकी सडक़ों की तरफ कोई झांकने वाला नही है। गांव खोलमोला के सरपंच जगतार सिंह बताते हैं कि गांव में न तो पेयजल की उपलब्धता के लिए कोई सरकारी योजना (Government Scheme) संचालित है, न ही गांव से शहर की ओर जाने के लिए पक्का मार्ग ही यहां निर्मित हो सका है। इसके अलावा उनका जीवन नरक समान है। यदि किसी घर में कोई बीमार पड़ जाए तो यहां पर एंबुलेंस (Ambulance) आदि का आना नामुमकिन है। ग्रामीण ही अपने बीमार स्वजन को चारपाई पर लेटाकर उसे कांधे पर रखकर शहर की ओर भागते हैं। बात करने पर ग्रामीणों का आक्रोश भी सामने आ जाता है। उनके अनुसार देश की आजादी को भले ही 75 साल से अधिक का वक्त हो गया हो लेकिन उन्हें इसका कोई फायदा नहीं मिला है।वे आज भी समस्यारूपी गुलामी में जीने को विवश हैं। उनका कहना है कि सरकार द्वारा दर्जनों योजनाएं चलाई जा रहीं हैं। ग्राम विकास के दावे किए जा रहे हैं लेकिन इसका लाभ भी नानकपुर, नयागांव, चारनिया, खोलमोला के लोगों को नहीं मिला है।

दशकों से मौन हैं मोरनी वासी

कई सरकारें (Government) आयी और चली गई लेकिन मोरनी के लोग आवाज देते रह गए लेकिन पहाड़ों में उनकी आवाज कहीं खोती। वर्तमान में भीषण सर्दी (Winter) के चलते यहां पर गंभीर पेयजल संकट बना हुआ है। ग्रामीण (Village) बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं। पंप हैं लेकिन वह सभी हवा उगल रहे हैं। प्रशासनिक अधिकारी(Administration)  समस्याओं पर तमाशबीन बने हुए हैं। जनप्रतिनिधियों की तरह अधिकारी भी सिवाय कोरी घोषणाएं करने के अलावा कोई राहत नहीं दे सके। पहाड़ी पर निर्मित सैकड़ों घर गांव में 1947 की आजादी के बाद से अमृत महोत्सव के दौर तक ग्रामीण एक अदद सडक के लिए तरस रहे हैं। मोरनी की ढाणियां भी कुछ इन्ही दौर से गुजर रही हैं। सडक़ नहीं होने के कारण ग्रामीणों को खेतों की पगडंडी, उबडखाबड़ रास्तों से दूसरे गांव आना-जाना पड़ता है। ग्रामीणों के साथ-साथ यहां के मवेशियों के सामने भी जलसंकट की स्थिति है। स्वास्थ्य केंद्र, न आंगनबाड़ी: सुदूर गांवों में निवासरत गरीब, पोषण आहार, स्वास्थ्य लाभ की उपलब्धता के दावों के बीच मोरनी के गांव अपवाद उदाहरण पेश कर रहा है। कई किलोमीटर गांव में न तो कोई स्वास्थ्य केंद्र है, न ही बच्चों को पोषण आहार उपलब्ध कराने के लिए आंगनबाड़ी केंद्र ही खोला जा सका है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा गांव-गांव ग्रामीणों के स्वास्थ्य परीक्षण के लिए शिविर लगाए जा रहे हैं, लेकिन इससे भी कई गांव आंगनवाड़ी सुविधाओं से अछूते हैं। ग्रामीण बताते हैं कि यहां गर्भवती महिलाओं से लेकर किसी घर में कोई बीमार पड़ जाए तो उसकी खैरियत का सहारा सिर्फ ईश्वरीय प्रार्थना है। गांव के लोगों ने जिला प्रशासन से इस गांव में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने की मांग की है।

इनका भी दर्द सुनिए

बरवाला तहसील के गांव बटवाल और टंडारडू़ की पंचायतों की अपनी समस्याएं हैं। बटवाल गांव के सरपंच विधी चंद, टंडारड़ू के सरपंच रवि शर्मा ने कहा कि गांवों का विकास धीमी गति से हुआ है लेकिन उनकी कोशिश रहेगी कि सरकार की योजनाओं का भरपूर लाभ उठा कर ग्रामीणों की हर इच्छा पूरी की जाए। हालांकि यहां भी हालत शहर के अन्य कोनों के समान हैं। गांव बटवाल के सरपंच विधिचन्द बताते हैं कि ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं से अब भी वंचित हैं। इसी तरह गांव टनडारडु के सरपंच ने रवि शर्मा ने कहा कि गांवों में ड्रेनेज ओवर फ्लो हो चुका है जिसकी तरफ अब तक प्रशासन ने ध्यान नही दिया। गांव की सडकें टूटी पड़ी हैं। लोग सरकार को परेशानी बात तकर थक चुके थे। अब देखना होगा कि नई पंचायते गठित होने के बाद विकास कितनी गति से आगे बड़ता है। बटवाल में बसस्टैंड की जरूरत को प्रशासन अब तक नजरंदाज करता आया है। बटवाल के पंच राम गोपाल ने कहा कि चिकित्सा सुविधाओं के लिए लोगों को कई किलोमीटर दूर रायपुररानी में जाना पड़ता है।

 

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