Shah visit to Arunachal is correct

Editorial: शाह का अरुणाचल दौरा सही, चीन को मिला करारा जवाब

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Shah visit to Arunachal is correct

Shah visit to Arunachal is correct: केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का अरुणाचल प्रदेश का दौरा चीन के लिए एक सबक है। चीन पिछले कुछ समय से अरुणाचल प्रदेश को लेकर जिस प्रकार की टिप्पणी कर रहा है, उसे देखते हुए यह जरूरी था कि केंद्र सरकार की ओर से कोई सख्त संदेश विस्तारवादी सोच के इस देश को दिया जाए। शाह पहले ऐसे केंद्रीय गृहमंत्री हैं, जोकि अरुणाचल प्रदेश जाकर सीमावर्ती इलाके से सटे गांव काहो पहुंचे हैं। यह भी कितना खूब है कि काहो जिसे अभी तक देश का आखिरी गांव कहा जाता था, उसे शाह ने देश का पहला गांव करार दिया है।

यानी अब भारत की शुरुआत इस गांव से होगी। बीते दिनों चीन की ओर से अरुणाचल प्रदेश के विभिन्न स्थलों के नाम अपने मुताबिक रखे गए थे। जिसका भारत ने कड़ा विरोध किया था, हालांकि अब केंद्रीय गृहमंत्री के अरुणाचल दौरे का चीन की ओर से विरोध जताया गया है, जोकि भारत की संप्रभुता को चुनौती है। चीन अरुणाचल प्रदेश और तिब्बत पर जिस प्रकार अपना दावा जताता आ रहा है, वह अचंभित करने वाली बात है, लेकिन यह भी चिंतनीय है कि आखिर चीन को ऐसा करने का मौका मिल कैसे गया।

अपनी विस्तारवादी नीति के तहत चीन अपने पड़ोसी देशों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध नहीं रख पा रहा है। चीन आजकल ताइवान की घेराबंदी करने में जुटा है। ताइवान की राष्ट्रपति साइ इंग-वेन ने बीते दिनों अमेरिका की यात्रा की थी, जिसके विरोध में चीन ने अब ताइवान पर हमले की तैयारी की हुई है। चीन की सेना आजकल सैन्य अभ्यास में जुटी हुई है। गौरतलब यह भी है कि चीन ने अमेरिका की जासूसी करने के लिए गुब्बारे अमेरिका के आकाश में भेजे थे। इसके बाद अमेरिका वायुसेना ने इस गुब्बारे को मार गिराया था। क्वाड देशों के संगठन ने चीन की बढ़ती विस्तारवादी सोच को पूरे विश्व के लिए खतरनाक बताया है। इन परिस्थितियों में चीन को माकूल जवाब देना जरूरी हो जाता है।

भारत में मोदी सरकार के वक्त ही ऐसा नजर आ रहा है, जब चीन को उसके कुत्सित हथकंडों को करारा जवाब मिल रहा है। वह चाहे विदेश नीति हो या फिर एलएसी पर हमारे सैनिकों का शौर्य, चीन मात खा रहा है। इसे उसकी हताशा ही कहा जाएगा कि वह टकराव के रास्ते तलाशने के लिए भारत की संप्रभुता को चुनौती दे रहा है और खुद को ही दुनिया का सर्वेसर्वा समझ रहा है।

 केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का यह कहना सर्वथा उचित है कि भारत की ओर बुरी नजर से देखने के दिन लद गए और अब कोई हमारी सुई की नोक जितनी जमीन पर भी अतिक्रमण नहीं कर सकता। चीन के लिए इससे बड़ा सबक और क्या होगा कि भारत के गृहमंत्री अरुणाचल प्रदेश का न केवल दौरा कर रहे हैं, अपितु रात को सीमा से सटे गांव में ही ठहर रहे हैं। क्या चीन इसकी हिमाकत कर सकता है कि वह ऐसा करने से रोके। हालांकि उसके  विदेश मंत्रालय में बैठे बयानवीर बेशक, बयानों के बाण छोड़ते रहें, लेकिन हकीकत यह है कि चीन को इसका अंदाजा है कि अब उसका मुकाबला बदले हुए भारत से है। भारत में आम धारणा है कि चीन कभी भी उसका मित्र नहीं हो सकता।

हमारे बुजुर्ग जोकि आजादी से भी पहले से चीन की हरकतों को देखते आए हैं, यह बात सीना ठोक कर कहते आए हैं कि चीन विश्वासघाती देश है और उस पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता। हालांकि न जाने क्यों देश में 12 ऐसी विपक्षी सरकारें रही हैं, जिन्होंने चीन को न केवल महत्व दिया, अपितु उससे नरम स्वर में बात करते हुए अपनी खोखली विदेशी नीति का ढिंढोरा पीटा। संभव है, उन सरकारों के वक्त ही अगर चीन को इसका अहसास करा दिया जाता कि भारत के साथ उसके संबंध सौहार्दपूर्ण नहीं हो सकते हैं तो आज तिब्बत भारत का अंग होता और अरुणाचल प्रदेश पर चीन की अनाधिकार  चेष्टा खत्म हो जाती। आखिर इससे पहले कब ऐसा हुआ है कि भारत ने भगवान परशुराम के साथ अरुणाचल प्रदेश को जोड़ा हो। शाह ने इतिहास के हवाले से दावा किया है कि भगवान परशुराम ने अरुणाचल प्रदेश को यह नाम दिया था।

वास्तव में अमेरिका समेत पूरी दुनिया अब यह बखूबी समझ रही है कि चीन के मंसूबे क्या हैं। भारत और पूरी दुनिया के लिए यह जरूरी है कि वह चीन को उसके दायरे तक सीमित रखे। इसके लिए उसके कारोबार को जहां नियंत्रित करने की आवश्यकता है वहीं कूटनीतिक स्तर पर भी चीन को रोकना जरूरी है। चीन सरकार की मानसिकता विश्व बंधुत्व के खिलाफ है, ऐसे में उसे रोका जाना वैश्विक जरूरत है। चीन की हरकतों के खिलाफ विश्व के सभी देशों को एक मंच पर आना चाहिए। 

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