पानी के बिना नदी बेकार है, अतिथि के बिना आंगन बेकार है: क्षुल्लक श्री प्रज्ञांशसागर जी गुरुदेव

पानी के बिना नदी बेकार है, अतिथि के बिना आंगन बेकार है: क्षुल्लक श्री प्रज्ञांशसागर जी गुरुदेव

Siddhachakra Mahamandal Vidhan

Siddhachakra Mahamandal Vidhan

Siddhachakra Mahamandal Vidhan: परम पूज्य श्रमण अनगाराचार्य श्री विनिश्चयसागर जी गुरुदेव के शिष्य परम पूज्य जिनवाणी पुत्र क्षुल्लक श्री प्रज्ञांशसागर जी गुरुदेव(Kshullak Sri Pragyanshsagar Ji Gurudev) ने सिद्धचक्र महामण्डल विधान में कहा — पानी के बिना नदी बेकार है, अतिथि के बिना आंगन बेकार है, स्नेह ना हो तो सगे सम्बन्धी बेकार है, पैसा ना हो तो पॉकेट बेकार है(Pocket is useless if there is no money) और जीवन में सद्गुरु ना हो तो जीवन बेकार है। जीवन में गुरु जरूरी है और जिसके जीवन में गुरु नहीं उसका जीवन शुरू नहीं। सड़क पर चलते हैं तो पड़े पत्थर को हर कोई पैर से ठोकर मारता है मगर वही पत्थर शिल्पी के हाथ में आ जाता है तो मूर्ति बन जाता है, सद्गुरु शिल्पी है, वे नर को नारायण बना देते हैं। गुरु चाहे पत्थर का क्यों ना हो गुरु चाहे मिट्टी का क्यों ना हो परन्तु जीवन में गुरू होना चाहिए। गुरु अन्धेरे से उजाले में ले जाने का काम करता है आपके दुर्गुणों को गुरु नष्ट कर सकता है, गुरु सदमार्ग दिखाता है, मैनासुन्दरी के लिए दिगम्बर गुरु ने ही सतमार्ग दिखाया और सात सौ कोढियों को कोढ से मुक्त करा दिया। गुरु के वचन जीवन में अमूल्य परिवर्तन करते हैं। गुरु पारस मणि के समान है। राम के जीवन में गुरु था इसलिए उसके पास गुरुर नहीं था और रावण के जीवन में सब कुछ था परन्तु गुरु नहीं था रावण बड़ा शक्तिशाली था। रावण में शक्ति तो थी मगर भक्ति नहीं। बिना भक्ति के शक्ति कितना अनर्थ करती है यह कोई रावण से सीखे। रावण ने सोचा था समुद्र का पानी मीठा कर दूंगा, चन्द्रमा का कलंक निकाल दूंगा, स्वर्ग तक सीढ़ी लगा दूंगा, पर कुछ नहीं कर पाया। रावण के पास सब कुछ था तख्त-ओ-ताज, वैभव-विलास; सब था अगर कुछ नहीं था उसके पास तो गुरु नहीं था। बिना गुरु की शक्ति, बिना गुरु के बुद्धि और बिना गुरु के सम्पत्ति कितना अनर्थ करती है इसका प्रत्यक्ष उदाहरण रावण है, कंस है, दुर्योधन है।

जैन धर्म खुद तो जबर्दस्त है मगर वह किसी के साथ जबर्दस्ती कभी नहीं करता इस धर्म को समझने के लिए दिमाग नहीं, दिल चाहिए व्यवहार में अहिंसा, विचारों में अनेकान्त और जीवन में अपरिग्रह यही जैन धर्म है। जैन धर्म व्यक्ति की नहीं व्यक्तित्व की पूजा की प्रेरणा देता है। धर्म अपने अनुयायियों को सिर्फ भक्त बन कर नहीं रखता बल्कि उसे खुद भगवान बनने की भी छुट देता है, जैन धर्म हीरा है मगर दुर्भाग्य है कि समझ नहीं पा रहे हैं। परन्तु हीरा कभी कोयला नहीं होता है, हीरा हमेशा हीरा ही रहता है। चाहे कोई उसके मूल्य को समझे या न समझे। हीरा कम दुकानों पर मिलता है परन्तु कीमत अधिक होती है आज जैन धर्म को मानने वाले भले ही विश्व में कम है परन्तु कीमत हीरों की ही होती है उसके मानने वालों की होती है जो जैन धर्म अहिंसा अर्थात सभी जीवों पर दया करने का उपदेश देता है, अपरिग्रह, अनेकान्त, स्यादवाद को मानता है। 
सिद्धचक्र महामण्डल विधान में 128 महार्घों से पूजा की गई है सिद्धचक्र विधान में आज शान्तिनाथ महामण्डल विधान किया गया है। 

दिल्ली से आए प्रतिष्ठाचार्य बाल ब्रह्मचारी पुष्पेन्द्र शास्त्री ने भक्ति मय अभिषेक, शान्तिधारा आदि कराई। यह सौभाग्य सौधर्म इन्द्र धर्म बहादुर जैन, यन्त्र अभिषेक चण्डीगढ़ जैन समाज के अध्यक्ष नवरत्न जैन, धूप चढ़ाने का सौभाग्य महामन्त्री सन्तकुमार जैन को प्राप्त हुआ। मैना सुन्दरी राजा श्रीपाल एवं धनपति कुबेर के द्वारा रत्नों की वर्षा की गई महायज्ञनायक के द्वारा श्री जी विराजमान करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ शचि इन्द्राणी मेमलता जैन अपने परिकर के साथ जिनेन्द्र भगवान की नृत्य गान करते हुए आरती की जिसकी स्वर लहरियों से चण्डीगढ़ में धूम मचा रखी है।

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