Rahul Gandhi Yatra is penance, but how will Rahul ji convince the public?

Editorial : राहुल गांधी यात्रा तपस्या है, पर जनता को कैसे विश्वास दिलाएंगे राहुल जी?   

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Rahul Gandhi Yatra is penance, but how will Rahul ji convince the public?

Rahul Gandhi Yatra is penance, but how will Rahul ji convince the public? : हरियाणा से गुजर रही कांग्रेस (Congress) नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की भारत जोड़ो यात्रा को प्रदेश में जैसा रिस्पांस मिला है, वह राज्य में कांग्रेस को उत्साहित करने वाला है। राहुल गांधी करीब 3 हजार किलोमीटर की दूरी तय करके हरियाणा में पहुंचे हैं। हरियाणा वह प्रदेश है, जहां पिछले 10 सालों से कांग्रेस सत्ता से वंचित है। बीते विधानसभा चुनावों में भी पार्टी ने पूरा जोर लगा दिया था, लेकिन वांछित सफलता हासिल नहीं हो पाई। हालांकि इस बार फिर कांग्रेस ने अपने आप को सक्रिय कर रखा है और जन सरोकार के मुद्दों को उठाकर लगातार अपनी मौजूदगी को प्रदर्शित कर रही है। भारत जोड़ो यात्रा प्रदेश में पार्टी के लिए संजीवनी का काम कर रही है, हालांकि यह अलग बात है कि राहुल गांधी की मौजूदगी में ही पार्टी के अंदर धड़ेबंदी साफ-साफ नजर आती है। कांग्रेस के दिग्गज राहुल के साथ दिखते हैं, लेकिन इस दौरान एक दूसरे के साथ नहीं नजर आते। कुछ राहुल गांधी के एकतरफ होते हैं तो कुछ दूसरी तरफ। आपस में बातचीत भी होती नहीं प्रतीत होती। खैर, यह रस्साकशी हर पार्टी में चलती ही रहती है, लेकिन सबसे बड़ा प्रयोजन पार्टी को सत्ता में लाने का है, जिसके लिए सभी प्रयत्नशील नजर आते हैं।

कुरुक्षेत्र में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने कुछ ऐसी बातें कहीं हैं, जोकि काबिलेगौर होनी चाहिएं। राहुल गांधी की विचारधारा का अभी तक अंदाजा लगाना मुश्किल ही रहा है। हालांकि इस यात्रा के जरिए उन्होंने पूरे देश को समझा है और उनका आत्मविश्वास भी अपने चरम पर है। कांग्रेस को भी यही चाहिए है, वहीं देश की जनता भी इसी की आकांक्षी है। क्योंकि लोकतंत्र को मजबूत बनाए रखने के लिए नेतृत्व की प्रखरता आवश्यक है। राहुल गांधी से पूछा गया था कि क्या यह यात्रा राजनीतिक है या फिर जन आंदोलन। जाहिर है, अभी तक देश में जितनी भी यात्राएं निकली हैं, उनका प्रयोजन जन आंदोलन का रहा है, लेकिन उन्हें निकालने वाले राजनीतिक ही थे, उनका किसी न किसी दल से वास्ता रहा। हालांकि राहुल गांधी ने कहा कि देश में फैलाए जा रहे डर के खिलाफ यह यात्रा है। वे लगभग प्रत्येक जगह इसी तरह के बयान देते आ रहे हैं। यात्रा की शुरुआत में पूछा जा रहा था कि आखिर यात्रा का एजेंडा क्या है। इसके जवाब में राहुल (Rahul) का यही जवाब होता है कि वे नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोलने आए हैं। वास्तव में एक राजनीतिक से इसकी अपेक्षा भी की जाती है कि उनके पास ठोस मुद्दे हों, यह भावनात्मक राजनीति शुरू से देश में होती आई है, लेकिन अब जनता साफ-साफ यह जानना चाहती है कि अगर किसी दल को सरकार बनाने को जनमत मिला तो वह क्या करके दिखाएगा?

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने कहा है कि वे यात्रा को तपस्या की तरह देख रहे हैं। फिर वे कहते हैं कि उनका लक्ष्य जनता, किसानों व गरीबों के साथ चलने का है। वे कहते हैं कि गीता में कहा गया है कि कर्म करो, जो होना है, होगा। इस यात्रा की वही थिंकिंग है। वास्तव में राहुल गांधी का कर्म आधारित यह ज्ञान प्रेरक है, यह भी सुनने में अच्छा लगता है कि वे अब भारतीय संस्कृति के संबंध में इतना ज्ञान बटोर चुके हैं। तथा पार्टी के अन्य नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी इस ज्ञान की तरफ ध्यान देना चाहिए।

दूसरी ओर हरियाणा में पार्टी संगठन के अभाव पर उन्होंने गेंद राष्ट्रीय अध्यक्ष के पाले में डाल दी। हालांकि यह सभी जानते हैं कि जब नियुक्तियों की बारी आएगी तो राष्ट्रीय अध्यक्ष खडग़े गांधी परिवार से ही सलाह करके तैनाती करेंगे। जब उनसे यह पूछा गया कि हरियाणा में पार्टी का मुख्यमंत्री (Chief Minister) का चेहरा कौन होगा तो उन्होंने कहा कि यात्रा से ध्यान भटकाया जा रहा है। वहीं जब राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वे इस सब में नहीं पड़ते।

राहुल गांधी (Rahul Gandhi)  ने कहा कि वे यात्रा को तपस्या की तरह देख रहे हैं। दरअसल, जीवन में प्रत्येक कार्य तपस्या ही होता है। उन्होंने कांग्रेस के हाथ चुनाव चिन्ह को अभय मुद्रा बताया है। अभय मुद्रा का अभिप्राय यह है कि डरो मत। वास्तव में कांग्रेस गीता ज्ञान, तपस्या, अभय मुद्रा का सहारा लेकर जनसरोकार के मुद्दों से नहीं बच सकती। यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि आजादी के बाद के वर्षों में सबसे ज्यादा शासन कांग्रेस सरकारों ने ही किया है, तब भी देश में गरीबी क्यों रही, किसानों की आय क्यों नहीं बढ़ी, उद्योग-धंधे क्यों नहीं विकसित हुए। चीन और पाकिस्तान को उनके दायरे तक क्यों नहीं समेट सके। क्योंकि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद सुलगता रहा, क्यों पूर्वोत्तर जल गया। क्यों धर्म के नाम पर विभाजन होते रहे। मामला किसी एक पार्टी या विचारधारा का पक्ष लेने का नहीं है, यह देश उन सभी सवालों के जवाब चाहता है जोकि अब तक अनुत्तर रहे हैं। कांग्रेस नेताओं (Congress Leaders)  को परिवारवाद के नाम पर देश को सम्मोहित करने से अब खुद को रोकना चाहिए। जिम्मेदारी सामूहिक है और कोई अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाडक़र एकतरफा होकर नहीं चल सकता। इसलिए कहा जा सकता है कि इस देश में प्रत्येक वह जोकि जनता की उम्मीदों पर खरा उतरेगा, सफलता का आशीर्वाद पाएगा। 

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