Sammed Shikhar: The sanctity of religious places should be maintained

Editorial : सम्मेद शिखर: बनी रहनी चाहिए धार्मिक स्थलों की पवित्रता  

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Sammed Shikhar: The sanctity of religious places should be maintained

Sammed Shikhar: The sanctity of religious places should be maintained : झारखंड (Jharkhand) में जैन समाज (Jain society) के तीर्थस्थल सम्मेद शिखर (Samed Shikhar) को पर्यटन मुक्त करने का केंद्र सरकार का फैसला उचित लेकिन देर से उठाया गया कदम है। आखिर ऐसा क्यों होता है कि किसी मांग को लेकर जनता जब सडक़ पर उतर आती है, तभी सरकार को यह अहसास होता है कि उससे कुछ गलत हो गया है। आखिर ऐसे फैसले लेते समय में विशेषज्ञों से राय और जनभावनाओं का ख्याल क्यों नहीं रखा जाता। यह कितना खेद का विषय है कि आचार्य विद्या सागर जी महाराज को बोलने की जरूरत पड़ी और सम्मेद शिखर की पवित्रता को बचाए रखने के लिए एक और मुनि ने अपने प्राण त्याग दिए हैं। अब तक दो मुनि सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल बनाने के विरोध में अपने प्राण दे चुके हैं। केंद्र सरकार की ओर से जैन समाज के विरोध को देखते हुए बड़ा कदम उठाया जा चुका है, जिसमें केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने अपना 2019 का वह फैसला वापस ले लिया, जिसमें इस क्षेत्र में पर्यटन की मंजूरी दी गई थी। दरअसल, यह क्षेत्र इको सेंसिटिव जोन है और यहां पर होने वाली प्रत्येक गतिविधि के लिए केंद्र ही मंजूरी देता है।

जैन समाज (Jain society) एक बौद्धिक वर्ग है, जोकि अपनी परंपराओं का संरक्षण करते हुए जैन मुनियों की शिक्षाओं पर कर्मशील है। समाज के लिए उसके मुनि ही सर्वोपरि हैं, जोकि अपने कर्म, विचार और संकल्प से न केवल जैन समाज अपितु पूरे विश्व के लोगों के लिए जनकल्याण की भावना से संकल्पित हैं। अब जब पूरे देश में सांस्कृतिक चेतना व्याप्त है और धर्म एवं सामाजिक गतिविधियों को नए स्वरूप में देखा जाने लगा है, तब धार्मिक स्थलों की पवित्रता के लिए उन्हें अनुचित गतिविधियों से बचा कर रखा जाना बेहद आवश्यक हो गया है। सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल बनाने के खिलाफ जैन समाज ने पूरे देश में विरोध-प्रदर्शनों के द्वारा केंद्र एवं झारखंड सरकार को इसका अहसास कराया कि इस स्थल की उनके लिए क्या उपयोगिता है। जाहिर है, प्रत्येक धर्म में ऐसे स्थल होते हैं, जोकि उनके लिए सर्वोपरि होते हैं। यह मामला धर्मों में समाज को बांटकर देखने का नहीं है, क्योंकि प्रत्येक धर्म चाहे वह व्यक्ति किसी भी समाज से हो, उसे प्रदान करता है। यह विचार, सोच, संकल्प, प्रेरणा, जीवन को बेहतर तरीके से जीने की सीख आदि कुछ भी हो सकता है।

केंद्र सरकार (Central Government) के फैसला वापस लेने के बाद अभी तक झारखंड सरकार (Government of Jharkhand) की ओर से इस फैसले को वापस नहीं लिया गया है। हालांकि राज्य सरकार की ओर से भी इस संबंध में कदम उठा लिए गए हैं। सरकार ने केंद्र को कहा है कि उस अधिसूचना को वापस लिया जाए जिसमें इस जगह को इको टूरिज्म बनाने का ऐलान किया गया है, इसके बगैर सरकार सम्मेद शिखर (Samed Shikhar) को पर्यटन की सूची से बाहर नहीं कर सकती। हालांकि यह मामला तुरंत उठा लिए जाने की जरूरत थी, लेकिन फिर भी प्रशासनिक कार्यप्रणाली में न जाने कहां यह अभी तक अटका हुआ है। वहीं जैन समाज के अनशनकारी मुनि अपने प्राण त्यागते जा रहे हैं। यह इन संत-मुनियों का समाज और सरकार से मौन अनुग्रह था, जिसकी प्रतिपूर्ति के लिए उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। यह अपने आप में विस्मयकारी और बेहद द्रवित करने वाली घटना है कि बगैर किसी हिंसा और तीखे विरोध के समाज अपने पवित्र स्थल को बचाने के लिए इस प्रकार आगे आया और उसने सरकार को इसके लिए रजामंद भी कर लिया। यह जैन समाज की जीत है, हालांकि इस घटना ने सरकार को यह भी संदेश दिया है कि ऐसे मामलों को बेहद संवेदनशीलता के साथ दुरुस्त किए जाने की जरूरत होती है।

तीर्थ स्थल सम्मेद शिखर को 22 फरवरी 2019 को झारखंड (Jharkhand) की तत्कालीन रघुवर दास सरकार ने पर्यटन स्थल घोषित किया था। दरअसल, यह इलाका आदिवासी जोन में भी आता है। पारसनाथ पहाड़ी और मधुबन क्षेत्र को ए श्रेणी का पर्यटन क्षेत्र घोषित करने का अभिप्राय इस इलाके में रहने वाले लोगों के लिए रोजगार की संभावनाओं को बढ़ाना था। हालांकि इसके बाद वर्ष 2021 में हेमंत सोरेन सरकार ने पारसनाथ मंदिर क्षेत्र को धार्मिक पर्यटन स्थल बनाने की अधिसूचना जारी की थी। दरअसल, यह मामला विवादित होना ही थी, क्योंकि धार्मिक पर्यटन एक अनोखा शब्द है, बेशक आजकल इसका खूब प्रचार हो रहा है। माना जाता है कि जो धार्मिक स्थल पर घूमने आएगा, वह पर्यटक होगा और उसकी वहां मौजूदगी से अन्य गतिविधियों में इजाफा होगा। बेशक, ऐसा हो सकता है, लेकिन अगर एक समाज नहीं चाहता है कि उसके संतों-मुनियों के पवित्र स्थल पर मांस-मदिरा आदि बिके तो इसे समझा जाना चाहिए। हिंदू धार्मिक स्थलों के आसपास कई किलोमीटर तक शराब और मांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया जाता है। ऐसा ही फैसला सम्मेद शिखर (Samed Shikhar) के संबंध में भी लागू किए जाने की जरूरत है।

वैसे झारखंड (Jharkhand) में सम्मेद शिखर के आसपास रहने वाले संथाल आदिवासी समुदाय के लोगों की दलील पर भी ध्यान दिए जाने की जरूरत है। उनका कहना है कि यह पहाड़ सदियों से उनके देवता मारंग बुरु की स्थली है। उनके मुताबिक यह स्थल उनका भी आराध्य है। वास्तव में केंद्र एवं राज्य सरकार को बीच का रास्ता निकालना होगा, यह तो तय है कि यह एक धार्मिक स्थल है, तब इसे पर्यटन की नजर से देखने की बजाय एक ऐसे आदर्श स्थल के रूप में देखा जाए जहां आकर आध्यात्मिक श्रेष्ठता की प्राप्ति होती है। हर बात में पर्यटन की संभावनाएं तलाशने की बजाय कुछ जगह ऐसी भी होनी चाहिए जहां सिर्फ धर्म, अध्यात्म और जीवन की श्रेष्ठता पाने के लिए कार्य व्यवहार हो। हिमालय पर पर्यटन की अनुमति का हर्जाना यह हो रहा है कि इस प्रति वर्ष हजारों टन कूड़ा-कचरा बढ़ता जा रहा है। आखिर हमें अपने तीर्थ स्थलों को मौज-मजे की नजर से देखना चाहिए या फिर तपस्या और जीवन की श्रेष्ठता हासिल करने के गंतव्य स्थलों के रूप में। निश्चित रूप से धार्मिक स्थलों की पवित्रता बनाए रखनी होगी, ऐसे स्थल एक समाज नहीं अपितु पूरी मानवता की धरोहर हैं। 

 

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